चैप्टर – 2
वृंदा – वाह! यह तो बहुत अच्छी खबर है! पर प्रवीण की पढाई का क्या होगा? वृंदा चिंता भरे स्वर में बोली।
बाबूराव शिंदे – देखो भी प्रवीण 18 साल का है। मुझे भरोसा है वह आगे जाकर सब संभाल लेगा। अच्छा चलो, चाय—वाय पिला दो! अपने आस—पड़ोस में रहनेवाले को यह खुशखबरी देनी है। मैं अभी बाजार जाकर एक किलो बूंदी के लड्डू लेकर आता हूं।
इस बातचीत के करीब आधा घंटे बाद बाबूराव अपने पड़ोसियों में मिठाई बांटने निकल पड़े। छह—सात घरों में लड्डू बांटने के बाद वे शरद के घर पहुंचे। मिठाई देखते ही शरद के मुंह में पानी आ गया। उन्होंने बाबूराव को कुर्सी पर बिठाने के बाद चार पीस लड्डू उनके डिब्बे में से निकाल लिए और फिर पूछा।
शरद – क्या बात है बाबूराव, जो आज मिठाई बांट रहे हो।
बाबूराव शिंदे – गणपति बप्पा की कृपा से मेरी एक बहुत बडीबड़ी समस्या हल हो गई है। प्रवीण अग्निपुंज बनने वाला है।
अग्निपुंज वाली बात सुनकर शरद के चेहरे पर कई तरह के भाव उमड़ने लगे। ऐसा लगा मानो उन्होंने कोई कड़वा करेला निगल लिया हो। वे बाबूराव की तरफ हिकारत भरी नजरों से घूरकर बोले।
शरद – अरे बाबूराव यह क्या गजब कर रहे हो? क्यों अपने लड़के की जिंदगी बर्बाद कर रहे हो? क्या उसे अभी से ही फौज में धकेल दोगे! अभी उसकी उमर ही क्या है? कौन सा तीर मार लेगा वह अग्निपुंज बनकर! चार साल बाद जब रिटायर होगा तो उसे पेंशन भी नहीं मिलेगी। बस सरकार एक छोटा—मोटा सा एमाउंट थमा कर चलता कर देगी। अपने बेटे की जिंदगी से खिलवाड़ मत करो बाबूराव!
बाबूराव शरद की बातें सुनकर बेहद गुस्से में आ गए पर मुंह से कुछ नहीं कहा और अपने घर की ओर चल दिए।
फिर उनके चेहरे पर दोबारा मुस्कान तब आई जब प्रवीण अपने आई और बाबा से मिलने घर आ गया। उस दिन तो वृंदा और बाबूराव को लग रहा था कि मानो बहुत बड़ा खजाना मिल गया हो। वृंदा ने प्रवीण की पसंदीदा पूरण पोली और कढ़ी बनाई। उसे अपने हाथ से खाना खिलाया। बाबूराव प्रवीण को खुश होकर खाना खाते देख फूले नहीं समा रहे थे। पर उनके मन में शरद के शब्द भी गूंज रहे थे — अपने बेटे की जिंदगी से खिलवाड़ मत करो बाबूराव!
शरद के शब्द जब उनके दिमाग में हथौड़े की तरह बजने लगे तो उनसे रहा नहीं गया। वे अपने बेटे से पूछ बैठे ।
बाबूराव शिंदे – बेटा! यह फैसला तो तुमने ठोक—बजाकर किया है न? इस बारे में अच्छी तरह से सोच लिया है न कि बाकी जिंदगी कैसे कटेगी? आगे कोई दिक्कत तो नहीं आएगी।
वृंदा – हां बेटा! हम तुम्हारी खैरियत चाहते हैं और चाहते हैं कि तुम्हारी बाकी की जिंदगी पूरे सुकून से बीते । तुम्हें किसी तरह की तकलीफ नहीं हो। वृंदा कुछ उदासी का भाव लिए हुए बोलीं।
प्रवीण ने कहा — आई, बाबा! मैंने अच्छी तरह से सोच लिया है। मैं अग्निपुंज ही बनूंगा। मैं अपनी जिंदगी को किसी आफिस में चपरासी बनकर या किसी जिले का कलेक्टर बनकर बिताना नहीं चाहता। मुझे इतनी कम उम्र में देशसेवा का मौका मिल रहा है। यही क्या कम है!
बाबूराव शिंदे – वो तो ठीक है, बेटा पर सैलरी, पेंशन का क्या? वो शरद कह रहा था कि इस नौकरी में कोई ज्यादा फायदा नहीं है। बाबूराव ने शरद द्वारा उठाई गई शंकाओं को मन में छिपाए बगैर सवाल दाग ही दिया। फिर उन्होंने प्रवीण को शरद से हुई अपनी बातचीत के बारे में बताया।
प्रवीण – बाबा आप भी शरद की बातों में आ गए? पता नहीं उन्हें क्या गलतफहमी है इस नौकरी के बारे में।
फिर प्रवीण ने थोड़ी देर रुक कर कहा — बाबा ऐसा करते हैं कि हम इस बारे में माथापच्ची करने के बजाय किसी जानकार की मदद ले लेते हैं।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )