आखिरी चैप्टर
उन दोनो की ऐसी बातें सुनकर कर्नल साहब थोड़े तैश में आ गए । वे अपनी रौबदार आवाज में बोले ।
कर्नल साहब – प्रवीण ने फैसला समझदारी भला किया है। रही आगे की बात तो यदि वह प्लानिंग से चलेगा तो न केवल भविष्य सुरक्षित रहेगा बल्कि बाकी जिंदगी भी सुकून से कट जाएगी। यदि अभी से ही फौज की नौकरी कर लेगा और चार साल बाद जब फौज छोड़ेगा तो उसके लिए नौकरियों की कोई कमी नहीं होगी। भूतपूर्व फौजी का ठप्पा लगा होने से नौकरी भी आसानी से मिल जाएगी और यदि पढ़ाई करना चाहेगा तो पढ़ाई कर लेगा।
शरद – पर माफ कीजिएगा कर्नल साहब! इस स्कीम से जुड़ने वालों को रिटायर होने के बाद पैसा बहुत कम मिलेगा। क्या बाकी जिंदगी में कोई परेशानी नहीं आएगी?
शरद ने दबे सुर में पूछा। उसे कर्नल साहब के सामने ज्यादा कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी।
शरद की ऐसी बातें सुनकर कर्नल साहब का पारा हाई हो गया। वे गरजकर बोले ।
कर्नल साहब – अपना—अपना नजरिया है। लेकिन मेरा मानना है कि फौज की नौकरी को पैसे से नहीं तौला जाता, शरद! यदि यही सोचकर मैं फौज में नहीं जाता, तो न ये मैडल मिल पाते और न ही जो नेकनामी मिली वह कमा पाता। फिर जिस भारत माता की गोद में हम पले—बढ़े उसके प्रति हमारा कोई फर्ज है कि नहीं। देश और समाज के प्रति हमारा कोई कर्तव्य है कि नहीं। अग्निपुंज बनने का एक फायदा यह भी है कि चुने गए जवानों में से 25 फीसदी की फौज में आगे भी नौकरी करने का अवसर रहेगा। यदि प्रवीण के लक ने साथ दिया तो उसे कहीं और जाने की जरूरत नहीं होगी। वह चार साल बाद भी फौज में रह सकता है।यदि प्रवीण रिटायर होने के बाद पढ़ाई करना चाहेगा तो कोई पाबंदी थोड़े ही रहेगी। वह जहां तक चाहे पढ़ सकता है। रही बात पैसे की तो रिटायरमेंट के बाद जो 14—15 लाख रुपये मिलेंगे, उन्हें अगर समझदारी से निवेश कर दिया जाए तो अच्छी खासी आमदनी हो सकता है जिंदगी भर मिलती रहे। फिर सेवा के दौरान अग्निपुंज के शहीद होने या दिव्यांग होने पर आर्थिक मदद का प्रावधान भी है। अगर कोई अग्निपुंज देश सेवा के दौरान शहीद हो जाता है तो उसके परिजनों को सेवा निधि समेत एक करोड़ से ज्यादा की राशि ब्याज समेत मिलेगी। इसके अलावा बची हुई नौकरी का वेतन भी दिया जाएगा।
हर वाक्य के साथ कर्नल साहब का स्वर जितना उंचा होता जा रहा था उतने ही नीचे शरद की गर्दन झुकती जा रही थी। वह झेंपते हुए बोला।
शरद – सॉरी कर्नल साहब! मुझे समझ में आ गया है कि देश सेवा के जज्बे के आगे रुपये—पैसे का कोई मोल नहीं होता। रुपया—पैसा तो आता—जाता रहता है पर यह जीवन देश के लिए काम आ जाए यही ज्यादा बेहतर होगा।
बाबूराव कृतज्ञता भरे स्वर में बोले – आपकी बातें सुनकर मेरी आंखें खुल गई हैं,कर्नल साहब! जो कुछ शंकाएं थीं, उनका भी समाधान हो गया है। अब अपने बेटे की अग्निपुंज बनने की राह में मैं रोड़ा नहीं बनूंगा।
यह सुनकर प्रवीण की आंखें मारे खुशी के छलछला आईं। वह अपनी मुट्ठी हवा में तानकर जोश भरे स्वर में बोला।
प्रवीण- भारत माता की जय!
वह अपने फैसले पर कर्नल साहब की मोहर लगने की खबर अपनी आई को सुनाने के लिए जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था।