आखिरी चैप्टर
बेड रेस्ट कर रहा विनायक हर रोज देखता कि स्मिता कैसे सुबह जल्दी उठकर उसका ध्यान रखती है। दवाई, परहेज वाला खाना, पानी आदि उसे मुहैया कराती है। फिर तीमारदारी से जब कभी फुर्सत मिलती वह लेखन करने बैठ जाती। धीरे—धीरे उसने अपनी जिंदगी के रोचक वीडियो बनाकर यू—ट्यूब पर भी डालने शुरू कर दिए। जैसे—जैसे स्मिता मशहूर होती गई उसका सोशल मीडिया नेटवर्क बढ़ता गया और लेखन कार्य नई उचाइयों को छूने लगा। दस महीनों के भीतर उसके एक लाख से ज्यादा फैन—फालोवर्स हो गए।
समय बीतने के साथ बेहतरीन तीमारदारी होने के कारण विनायक की हालत तेजी से ठीक होने लगी। साल बीतते—बीतते वह अपने पैरों पर खड़ा होने लगा और उसका प्लास्टर भी खोल दिया गया। उसने वर्जिश आदि करके अपनी सेहत व कार्य क्षमता को और बेहतर बना लिया। इसके बाद उसने दूसरी कंपनी में नौकरी शुरू कर दी और आफिस जाना शुरू कर दिया।
इन तमाम अनुकूल होते हालात के बीच आखिरकार स्मिता के जीवन में वह दिन भी आ गया जिसका इंतजार वह लंबे अरसे से कर रही थी। उसे राज्य सरकार ने साहित्य के सबसे बड़े पुरस्कार साहित्य निधि के लिए चुन लिया। मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर जब पांच लाख रुपये का यह पुरस्कार पाने के लिए स्मिता का नाम पुकारा गया तो सम्मान—स्थल पर मौजूद बेशुमार पब्लिक के साथ स्मिता के परिजन रोमांचित हो गए। मुख्यमंत्री के हाथों से पुरस्कार लेते हुए स्मिता की आंखों में आंसू आ गए। इसके बाद उसे मंच पर दो शब्द कहने के लिए बुलाया गया। इस मौके पर स्मिता ने कहा ।
स्मिता — इस पुरस्कार को मैं अपने पापा और ससुरालवालों को समर्पित करती हूं। न ये लोग मेरा विरोध करते और न ही मेरे मन में लेखन कार्य करके, कुछ करके दिखाने की चाहत ओर मजबूत होती। इनके विरोध के कारण ही मेरी इच्छा को नए पंख मिले और विनायक के एक्सीडेंट से भले ही मुश्किलें बढ़ीं पर घरवालों ने सहयोग करके उन मुश्किलों पर विजय पाने का रास्ता खोला। मैं अपने दम पर कुछ नहीं कर सकती थी। यह सब इनके आशीर्वाद का नतीजा है कि मैं इस काबिल बन सकी।
यह सुनकर समारोह स्थल पर मौजूद अन्य सब लोगों के अलावा कोमल सिंह की भी आंखें भर आईं। जब स्मिता पुरस्कार लेकर नीचे उतरी तो वे अपनी भावनाओं के आवेग को रोक नहीं सके। उनकी डबडबाई आंखों ने बहुत कुछ कह दिया था पर मुंह से यही निकल सका।
कोमल सिंह — शाबाश! बेटा! तुम तो सिंह की सच्ची सपूत निकलीं। तुमने जो ठाना था वह कर दिखाया! हमें गर्व है तुम पर! इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी को गले लगा लिया और भर्राए स्वर में बोले— मुझे माफ कर दो बेटा! मैंने तुम्हारी प्रतिभा को अंडरस्टीमेट किया!
स्मिता — पापा! यह आप क्या कह रहे हो? आपने तो मुझे व्यवहारिक नसीहत दी थी कि घर—गृहस्थी को संभालने में अपने को समर्पित कर दूं। पर पापा मुश्किल हालात ने मुझे एक नई राह दिखा दी! यह आपके आशीर्वाद का परिणाम है कि ये सब मुश्किलें हल हो गईं और जिंदगी भी संवर गई। स्मिता के मुंह से अस्फुट से बोल निकले।
विनायक भी अपने आप को रोक नहीं सका और वह बोला — स्मिता! तुमने आज साबित कर दिया है कि यदि किसी औरत में हिम्मत और कुछ करने का जज्बा हो तो वह घर—गृहस्थी की बेड़ियों को तोड़कर नई उड़ान भर सकती है। तुम अब अपने पंखों को और खोल दो। और नित नई उड़ान भरो। सच में हम लोग कितने गलत थे जो कि तुम्हारी काबिलयित को कुचलकर उसे घर— गृहस्थी के बंधनों में बांधकर धार कमजोर कर रहे थे। आज से मैं कोशिश करूंगा कि अपना अधिक से अधिक काम खुद कर सकूं। मैंने तुम्हें इतने दिन तक परेशान किया, आई एम सॉरी, डियर! तुमने अपनी इस उपलब्धि से हम सबको हैरान कर दिया है!
जब स्मिता को लगा कि भावनाओं का आवेग बढ़ता जा रहा है और माहौल गंभीर होता जा रहा है तो उसने फौरन टोकते हुए कहा —जो हुआ अच्छा हुआ! चलो इसी खुशी में हम सब कूल डाउन होकर कोक पीते हैं! यह सुनते ही गंभीरता के बादल छंट गए और हंसी की फुहारें फूट पडीं। इसके बाद स्मिता और उसके सभी परिजन जोरदार सेलिब्रेशन के लिए ताप्ती रेस्टोरेंट की ओर बढ़ गए।
(काल्पनिक कहानी )