चैप्टर – 1
भगवान न करे कि आप कभी बीमार पड़ें। यदि बाइचांस पड़ भी जाएं तो आपको भांति—भांति के मिजाजपुर्सी करने वालों को झेलना पड़ सकता है। ये मिजाजपुर्सी वाले अलग ही किस्म के इंसान होते हैं। इनकी बातें और व्यवहार देख—सुनकर कई बार तो ऐसा लगता है कि ये दूसरे किसी ग्रह से आए हैं। ये न केवल ज्ञान देते हैं बल्कि बातों ही बातों में आपको लोक—परलोक, सद्लोक—यमलोक तक की सैर करा सकते हैं। हो सकता है कि आपको बीमारी तो बहुत मामूली हो पर ये अपनी बातों से आपको इतना डरा सकते हैं कि आपको लगेगा कि यदि पहले ही जीवन बीमा करा लिया होता तो कम से कम अपने बाद बीबी—बच्चों का गुजर—बसर तो अच्छे से हो जाएगा!
यह भी मुमकिन है कि आपको कोई बड़ी बीमारी हो और आपकी सेहत दिन पर दिन गिरती जा रही हो, तभी कोई अच्छा मिजाजपुर्सी वाला आपको मिल जाए। उसकी बातों से आप अपनी बीमारी भूलकर चंगा महसूस करने लगें। कुल मिलाकर जितने लोग, उतनी ही बातें। अब यह आपके ऊपर है कि आप इन लोगों की बातों को हल्के में लेते हैं या दिल और दिमाग में बैठाकर अपनी सेहत को और बिगाड़ लेते हैं।
ये लोग आपका हालचाल जानने के अलावा बहुत सारी बातों में दिलचस्पी रखते हैं। कुछ तो इसी बहाने पता कर लेते हैं कि आपके पास माल कितना है। हो सकता है कि आपसे भेद लेकर इनकम टैक्स वालों को इन्फार्म कर दें तो आपको एक की जगह दो—दो परेशानियां हो जाएं। एक तो बीमारी का खौफ और दूसरा छापा पड़ने का डर!
कुछ लोग तो प्रोफेशनल मिजाजपुर्सी वाले होते हैं। वे आपकी बीमारी से अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। ऐसे लोग अक्सर बीमा एजेंट, बैंक एजेंट या दवाई की दुकान वाले होते हैं। ये आपके दिमाग में ऐसी—ऐसी बातें डाल देते है कि आप इनके प्रोडक्ट्स या सेवाओं का लाभ उठाने के लिए मजबूर हो जाएं। यहां नीचे पेश हैं कुछ मिजाजपुर्सी करने वालों का चाल—चरित्र! हो सकता है कि इनमें से कभी कोई आपसे भी टकराया हो
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भूतिया
अक्सर इंसान भूत—प्रेतों से डरते हैं। आपको तो मालूम है कि भूत—प्रेत भले ही हों या नहीं हो लेकिन उनका नाम ही लोगों को डराने के लिए काफी होता है। भूतों के बारे में कहा जाता है कि वे लोगों को डराकर मजे लेते हैं। ऐसे ही इस कैटेगरी के मिजाजपुर्सी करने वाले मरीज को डराकर उसके मजे लेते हैं। भले ही आपको मामूली सा सर्दी—जुकाम हो गया हो पर भूतिया टाइप मिजाजपुर्सी करने वाले आपके मन में शक का कीड़ा काफी गहराई तक बिठाकर ही मानते हैं। वे कहेंगे— जांच—वांच तो करवा ली न? यह तो पक्का है न कि सर्दी—जुकाम ही है? कहीं मुगालते में मत रह जाना। ऐसा न हो कि निमोनिया हो गया हो और समय रहते इलाज न करा सको। मालूम है निमोनिया में फेफड़े गल जाते हैं! मेरे पडोस में चक्रवर्ती जी रहते थे। उनके बेटे को भी शुरू में सर्दी—जुकाम ही हुआ था। बेचारे वे गलतफहमी में रह गए और एक साल बाद उनके बेटे ने वेंटिलेटर पर तड़प—तड़प कर दम तोड़ा था। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे।
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फरमाइशी लाल
ऐसे मिजापुर्सी करने वाले आपसे मिलने आपके घर आते हैं तो पूरा हिसाब—किताब बैठाकर आते हैं। यदि उन्हें लगता है कि मरीज से मिलने में 100 रुपये से ज्यादा का खर्चा बैठेगा तो वे अपने बीबी—बच्चों के साथ आपके पास आ सकते हैं। फिर हाल—चाल तो कम पूछेंगे पर फरमाइशों की झड़ी लगा सकते हैं। ये लोग अक्सर ऐसी बातें करते नजर आते हैं — अरे भाभीजी! बरसात के मौसम में चाय बिस्किट से थोड़े ही काम चलता है! कुछ गरमा—गरम समौसे—वमौसे या मूंग की दाल की कचौड़ी—पकौड़ी बना लीजिए न! बनाने में कोई दिक्कत हो तो पड़ोस की शिवशक्ति स्वीट्स से कुछ मंगा लीजिए। हमारा मन खुश हो जाएगा और बीमार पड़े भाई साहब भी उसकी खुशबू से तृप्त हो जाएंगे।
क्रमशः (काल्पनिक )