चैप्टर – 2
पर्यटन प्रेमी
ये पैदाइशी घुमक्कड़ होते हैं। इनके लिए मरीज के पास जाने का मतलब होता है कि पूरे मेकअप और नई—नई ड्रेस के साथ इतराते हुए पहुंचना फिर सेंट आदि की खुशबू बिखेरते हुए मरीज का हालचाल जानना। अगर मरीज अस्पताल में भर्ती है तो और भी बढ़िया। अस्पताल उनके लिए उम्दा सैरगाह हो जाती है। ये लोग भरी गर्मी में अपने कूलर का बिल का बचाने के लिए अस्पताल के एसी रूम में बैठकर समय बिताना ज्यादा पसंद करते हैं।
पत्रकार टाइप
ऐसे लोग मिजाजपुर्सी कम करते हैं, सवालों की झड़ी ज्यादा लगाते हैं। इनका मकसद मरीज की हिस्ट्री, ज्योग्राफी से लेकर सहनशीलता और माली हालत तक का जायजा लेना होता है। ये लोग जब मरीज से मिलने पहुंचते हैं तो सवालों की एकदम बौछार करने लगते हैं। मसलन— और भाईसाहब कैसे हैं? डॉक्टर को दिखाया कि नहीं? दवा—दारू ली या नहीं? भाभीजी को कोई परेशानी तो नहीं है? रात में नींद तो ठीक से आती है या नहीं? डॉक्टर तो ठीक है? उसकी डिग्री तो सही है? उसके पास मरीज तो आते है? जहां से दवाइयां लीं वह दुकान तो सही है? डॉक्टर के पर्चे पर लिखी उसकी घसीटामार राइटिंग को समझ पा रहे हैं या नहीं? दवाइयां, परहेज आदि तो ठीक तरह से हो रहा है न? किसी चीज की जरूरत तो नहीं है? इसके पहले आप कुछ बोल पाएं या अपनी जरूरत बता पाएं वे फौरन चलने की तैयारी कर लेते हैं।
भाग्यवादी
ये लोग मरीज से मिलने के पहले पूजा—पाठ करके जाते हैं। फिर मरीज के पास पहुंचकर कहते हैं आप तो दवा खाओ, आराम करो। रामजी बेड़ा पार लगा देंगे। बीमारी का क्या है? जब भगवान की मर्जी होगी तब ठीक हो ही जाएगी। आप तो बस अपनी किश्ती की पतवार मालिक के हाथ में छोड़ दो। वह भव सागर से पार लगा ही देगा। फिर यह भी ध्यान करना कि पिछले छह—सात साल में कोई पाप—वाप तो नहीं किए थे। उन पापों के लिए प्रायश्चित का यही सही समय है। जब भी उल्टी, खांसी, दस्त से राहत मिले ऊपरवाले को जरूर याद कर लेना!
यदि जरूरत पड़े तो काली माता के पुजारी जी से पूजा—पाठ करा लेना। वे इस जन्म और पुराने जन्मों के सब पापों से गारंटीड मुक्ति दिला देंगे।
मिडास टाइप
मिडास गोल्ड प्रेमी रोमन राजा था। उसे वरदान मिला हुआ था कि वह जिस चीज को छुएगा वह सोना हो जाएगी। उसे गोल्ड की इतनी चाहत थी कि इस वरदान के मिलने के बाद उसने छू—छूकर अपने महल, अपनी तलवार, अपने रजाई—गद्दे, कपड़े और यहां तक कि बेटी को भी सोने में बदल लिया था। ऐसे ही इस श्रेणी के मिजाजपुर्सी वाले होते हैं। इन्हें इससे मतलब नहीं होता कि बीमार कौन है? उस पर क्या बीत रही है? उसके फैमिली वालों की आर्थिक—मानसिक स्थिति क्या है? आदि—आदि। इन लोगों के दिमाग में पैसा ज्यादा हावी होता है। ये लोग भले ही आपकी दो कौड़ी की भी मदद नहीं करेंगे पर आपकी जेब और बैंक एकाउंट में कितना पैसा है, कितनी सैलरी आपको मिल रही है और उस सैलरी को कैसे इलाज में फूंकना है, सब बता देते हैं। ऐसे लोगों के अक्सर ये डायलाग होते हैं — पैसा तो हाथ का मैल है फिर आ जाएगा। आप तो इलाज कराने में कोई कंजूसी मत करो। जो पैसा है उसका सदुपयोग करो। अगर जान रहेगी तो कमाई के और रास्ते अपने—आप निकाल लोगे। वे यह भी हिसाब लगा लेते हैं कि यदि बीमार व्यक्ति भगवान को प्यारा हो गया तो विरासत में किसको क्या मिलेगा? ऐसे विरासती लालों से वे कैसे फायदा उठा सकते हैं, उन्हें चूना कैसे लगाना है यह सब गणित बैठा लेते हैं ऐसे मिजाजपुर्सी करने वाले!
क्रमशः (काल्पनिक )