चैप्टर – 1
अमावस की काली रात का सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसे में सूनी सड़क पर एक रिक्शा सरपट दौड़ा जा रहा था। उस रिक्शे में सवार था एक बुड्डा व्यक्ति जिसके पास एक बड़ी सी पोटली थी। यह रिक्शा रोहित नगर की एक झुग्गी बस्ती के सामने रुका। बूढ़ा व्यक्ति रिक्शे से उतरा। उसके वहां आते ही बस्ती में हलचल मच गई। उस बूढ़े के पास लोग एक-एक कर आने लगे। धीरे-धीरे वहां अच्छी खासी भीड़ इकट्ठी हो गई।
उस बस्ती के पास ही रामगोपाल जी एक कवर्ड कैम्पस में रहते थे। आधीरात को जब वे लघुशंका करने के लिए उठे तो पास की बस्ती का यह नजारा देखकर दंग रह गए। उन्होंने बहुत दिमागी घोड़े दौड़ाए पर माजरा कुछ समझ में नहीं आया।
रामगोपाल अब हर रात जगकर पास की बस्ती पर नजर रखने लगे। करीब दो माह रतजगा करते हुए तब जाकर उन्हें समझ में आया कि वह बूढ़ा हर अमावस की रात को ही बस्ती में आता है और उसके आने पर मजमा लग जाता है। वे उस रहस्यमय बूढ़े के बारे में जानने को बैचेन हो उठे। उस अमावस की रात उनसे रहा नहीं गया तो उन्होंने अपने खोजी जर्नलिस्ट दोस्त मनोज को फोन लगाया। रामगोपाल ने हर अमावस झुग्गी बस्ती में लगने वाले मजमे की जानकारी दी और मनोज से कहा ।
रामगोपाल – यार जरा पता तो लगाओ कि यह लफड़ा क्या है, वह बूढ़ा कौन है, उसका मकसद क्या है, उसके आते ही झुग्गी वाले क्यों उसे क्यों घेर कर खड़े हो जाते हैं।
मनोज बोला – यार यह सारा वाक्या मुझे दिलचस्प लग रहा हैं। मैं अगली अमावस की रात को इसके बारे में पता करता हूं। इसके साथ ही मनोज यह प्लान बनाने लगा कि उस बूढ़े के राज पर से पर्दा कैसे हटाया जाए।
अगले दिन सुबह जब मनोज अपने घर पर चाय की चुस्कियां ले रहा था तो वह कुछ अनमना सा दिख रहा था। अपने पति के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखकर उसकी पत्नी सरिता से रहा नहीं गया। सरिता ने पूछा।
सरिता – क्या बात है मनोज , आज बहुत खोये-खोये से लग रहे हो किस बात ने तुम्हें चिंता में डाल रखा है।
यह सुनकर मनोज ने रात में रामगोपाल से हुई अपनी बात के बारे में सरिता को बताया। फिर बोला ।
मनोज – डियर, झुग्गी बस्ती में हो रहे इस वाक्ये के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है, तुम इस बारे में क्या सुझाव देना चाहोगी कि मैं उस बूढ़े के बारे में कैसे पता करूं।
सरिता बोली – तुम नैशनल लेवल के मशहूर अखबार दैनिक खुलासा के नामी-गिरामी जर्नलिस्ट हो। मेरे खयाल से तुम्हारे लिए उस बूढ़े की गुत्थी सुलझाना बाएं हाथ का खेल होना चाहिए।
मनोज ने पूछा – यही तो मेरे दिमागी घोड़े थके जा रहे हैं कुछ समझ में नहीं आ रहा है क्या करूं झुग्गी बस्ती में होने वाला यह पूरा घटनाक्रम मेरे लिए अनूठा है।
सरिता- फिक्र मत करो, तुम थक गए हो तो मैं कुछ सोचती हूं। अपन मिल-जुलकर कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे।
इसके बाद मनोज और सरिता आगे की प्लानिंग करने के बारे में सोचने लगे। आखिरकार दोनों ने मिलकर एक प्लान तैयार किया और यह तय किया वे इस पर अगली अमावस को अमल करेंगे।
अगली अमावस की आधी रात को फिर वही नजारा उस झुग्गी बस्ती में दिखा। वह बूढ़ा अपनी पोटली लेकर रिक्शे से उतरा और अपने इर्द-गिर्द जमा भीड़ का आशीर्वाद लेने लगा। इसी बीच भीड़ को चीरकर एक गरीब सा व्यक्ति निकला उसने बूढ़े को धक्का दिया और उसकी पोटली छीन ली। इस अचानक हुए घटनाक्रम से बूढ़ा और वहां मौजूद भीड़ हतप्रभ रह गई। उस गरीब व्यक्ति ने बूढ़े को एक और धक्का देकर गिराने की कोशिश की। इस धक्का-मुक्की में बूढ़े की नकली दाढ़ी चेहरे से फिसल गई। सिर पर ओढ़ा लबादा खिसक गया।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )