आखिरी चैप्टर
इसी बीच भीड़ को चीरकर एक गरीब सा व्यक्ति निकला उसने बूढ़े को धक्का दिया और उसकी पोटली छीन ली। इस अचानक हुए घटनाक्रम से बूढ़ा और वहां मौजूद भीड हतप्रभ रह गई। उस गरीब व्यक्ति ने बूढ़े को एक और धक्का देकर गिराने की कोशिश की। इस धक्का-मुक्की में बूढ़े की नकली दाढ़ी चेहरे से फिसल गई। सिर पर ओढ़ा लबादा खिसक गया।
वह गरीब व्यक्ति बोला – अरे! अग्रवाल ग्रुप के मालिक जमनालाल साहब आप!
यह सुनकर वह बूढ़ा व्यक्ति कुछ सकपका गया और उसने गरीब व्यक्ति से पूछा -तुम कौन हो, तुम्हें पहले कभी इस बस्ती में नहीं देखा। तुमने मुझे कैसे पहचाना।
गरीब बोला – अरे सर! आपको कौन नहीं जानता। मैं दैनिक खुलासा का जर्नलिस्ट मनोज हूं। मैंने अग्रवाल ग्रुप के बारे में कई बार रिपोर्टिंग की है पर आपको इस तरह से वेश बदलकर इस झुग्गी में आधी रात को आते पहली बार ही देखा है। यह माजरा क्या है जमनालाल साहब!
इस नए घटनाक्रम से भौंचक जमनालाल साहब कुछ देर बाद संयत हुए तो बोले – मनोज, यह एक सीक्रेट है। मैं तुम्हें अकेले में बताउंगा। पहले मैं अपना काम कर कर लूं। मुझे मेरी पोटली दे दो।
इसके बाद मनोज ने वह भारी सी पोटली जमनालाल साहब को थमा दी। जमनालाल साहब ने उसे खोला। फिर वहां मौजूद लोगो को आवाज दे-देकर तोहफे देने लगे। किसी को नकद रुपए, किसी को साड़ी, किसी को कुर्ता , किसी को दवाइयां, किसी को मिठाई! बस्ती वाले आते और जमनालाल साहब को आशीष देकर जाते। करीब आधा धंटे तक उनका यह उपहार वितरण का काम चलता रहा।
फिर जब भीड़ छंट गई और रात का सन्नाटा गहराने लगा तो जमनालाल साहब मनोज को बस्ती के मंदिर के पास एकांत में ले गए और फिर बताने लगे – मनोज, तुमने मुझे रंगे हाथों पकड़ ही लिया है। पर मेरी एक गुजारिश है कि इस वाक्ये के ज्यादा चर्चे मत करना। दरअसल, मेरे मन में बचपन से गरीबों और लाचार लोगों की सेवा का भाव रहा है और अभाव भरी जिंदगी मैंने भी झेली है। अतः मैं इन झुग्गीवालों का दुख दर्द समझ सकता हूं। जब मैंने अपने उद्योग को अच्छी तरह से जमा लिया तो ठान लिया था कि मैं अपनी आय का दस प्रतिशत गरीबों, वंचितों में बांटूंगा। यदि ऐसे दान की चर्चा हो जाए तो वह किस काम का। अतः मैंने अमावस की स्याह रातों में यह गुप्त दान करने का बीड़ा उठाया। आशा है तुम मेरी बात समझ गए होगे।
मनोज बोला- आप वाकई में महान है। मैं आपकी दानशीलता का कायल हूं। यदि आप जैसे सामर्थ्यवान लोग ऐसी दानशीलता अपनाते हैं तो समाज का भला होने लगेगा और इंसानियत तथा तरक्की की नई मिसालें कायम हांगी।
जमनालाल बोले – मनोज, दरअसल समाज की हमें धन-दौलत, वैभव देता है। अतः हमारा फर्ज बनता है कि हम उससे लेकर उसे कुछ तो लौटाएं। केवल अपने लिए जीना, अपनी दौलत को अपने ऐशो आराम पर खर्च करना मुझे ठीक नहीं लगता।
अब सारा माजरा समझकर मनोज नई ऊर्जा से सराबोर होकर घर लौटा और उसने रामगोपाल को झुग्गीबस्ती में हर अमावस की रात लगने वाले मजमे के बारे में फोन करके संक्षिप्त रूप में समझा दिया। लेकिन इस बातचीत के दौरान ना तो अग्रवाल ग्रुप का नाम लिया और न ही जमनालाल साहब का। आाखिर गोपनीयता रखने के लिए एक जर्नलिस्ट के धर्म को भी तो उसे निबाहना था।
मोरल ऑफ द स्टोरी: समाज से हमें जो कुछ धन-दौलत मिलती है उसका एक हिस्सा समाज के काम में अवश्य लगाना चाहिए।
(काल्पनिक कहानी )