चैप्टर – 2
योगेश — क्या कर रही है हमारी प्यारी बिटिया?
अनिता बोली— पापा! राखी आने वाली है। मुझे भइया की बहुत याद आ रही है। सच कितना अच्छा लगता था जब मेरी आंखें भी ठीक थीं और भइया और हम घर में या कभी—कभी बाहर भी छुपन—छुपाई खेला करते थे। हम दोनों के बीच भले ही कभी—कभी तकरार भी होती थी पर प्यार भी बहुत था। मुझे वह सीन बार—बार याद आता है जब मैं टेबल पर बैठकर होमवर्क कर रही थी। तभी शरारती अजीत ने पीछे से आकर मेरी चोटी खींच दी थी। मैं झुंझला गई थी पर उसकी शरारत भरी खिलखिलाहट सुनकर अपना दर्द भूल गई थी। कहते—कहते अनिता की आंखों से आंसू टपकने लगे।
योगेश भी अपनी बच्ची की यह हालत देखकर भावुक हो गए। पर उन्होंने अपने आप को जैसे—तैसे संभाला और लड़खड़ाती आवाज में बोले।
योगेश — बेटा! सब्र से काम लो। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि इस बार तुम्हारी राखी सूनी नहीं जाए। साथ ही मैं तुम्हारी आंखों के इलाज के लिए पैसे का जुगाड़ करने में लगा हूं। उम्मीद है कि जल्द ही तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा।
इस बीच, गोमती देवी किचन में जाकर चाय बनाकर ले आईं और उसे पति को देते हुए बोलीं — यह सुबह से ही दुखी है। मैं इसे और दुखी नहीं देखना चाहती। भगवान करे अपने घर की खुशियां जल्द ही वापस लौट आएं।
योगेश पूरे आत्मविश्वास से भरे स्वर में बोले— डियर! जिंदगी में जब भी गम आते हैं नई राह निकलती ही निकलती है। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं। अपनी बिटिया की आंखों की समस्या का जब तक पूरा समाधान नहीं हो जाता तब तक हम चैन से थोड़े ही बैठेंगे।
अगले दिन योगेश के आफिस में रविवार की छुट्टी थी। योगेश ने सोचा क्यों न झांसी कैंट के पास बेतवा नदी पर बने सुकवां—ढुकवां बांध पर पूरी फैमिली को घूमने—फिराने ले जाया जाए। घूमने—फिरने से, जगह बदलने से मन थोड़ा हल्का हो जाएगा और फैमिली का ध्यान अपनी समस्याओं से हट जाएगा। जब उन्होंने अपना यह प्रस्ताव मां—बेटी के सामने रखा तो मंजूरी मिल गई।
अगले दिन सुबह से ही पूरी तिवारी फैमिली आटो में सवार होकर बांध की ओर निकल पड़ी। बांध शुरू होने से पहले और खत्म होने की जगह पर आर्मी की दो चेकपोस्ट थीं। वहां दो—दो जवान तैनात थे। उन्होंने आटो के कागजात चेक कर आगे जाने दिया। योगेश ने प्लान बना रखा था कि बांध के उस ओर जो पिकनिक रेस्तरां हैं वहीं हाल्ट किया जाएगा और आटो को भी वहीं शाम तक रुकवा लेंगे। फिर घूम—फिर कर रात होने से पहले घर पहुंच जाएंगे। पर वहां तो और कुछ ही होना था।
नदी को देखकर अनिता का मन उसमें नहाने का हो गया। वह नहाने के लिए जैसे ही नदी के घाट पर पहुंची कि वहां जमी काई नजर धुंधली होने के कारण उसे दिखी नहीं और उसका पैर फिसल गया। वह फिसलकर नदी में गिर गई। उसने घबराकर आवाज लगाई— पापा! मम्मी!! बचाओ! बचाओ!!
उसने अपनी चुन्नी फेंककर पास की एक छोटी सी चट्टान को अपनी गिरफ्त में लेने की कोशिश की पर उसे कामयाबी नहीं मिली। यह दृश्य देखकर योगेश और गोमती देवी भी घबरा गए। वे भी बड़ी जोर से गुहार लगाने लगे— अरे! कोई हमारी बेटी को बचाओ! वह नदी में डूब रही है! !
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )