आखिरी चैप्टर
इस उठने—उठाने की प्रक्रिया के बीच पंकज का पारा हाई हो गया और वे तनावग्रस्त होने लगे। तनाव बढ़ने के साथ उनकी बड़बड़ाहट बढ़ती जा रही थी कि न जाने नई पीढ़ी कब समय का पालन करना सीखेगी! फिर इस मोबाइल फोन ने भी लोगों की जिंदगी बर्बाद करके रख दी है। न रात को चैन, न दिन को। बस कोई भी किसी भी समय कॉल कर देता है। अब सामने वाला किस हाल में है, वह सो रहा है या जग रहा है, यह जानने की कोशिश कोई नहीं करता। बस जैसे ही सुबह हुई बैठ गए मोबाइल फोन लेकर और कर दिया किसी को भी कॉल! पता नहीं बातें करने की कितनी तलब लगी रहती है इन लोगों को!
हंसिका ने जब पति की बड़बड़ाहट सुनी तो वह समझ गई कि आज मामला गड़बड़ है। पति की तबियत बिड़ने का पूरा अंदेशा है। यही सब सोचकर वह जल्दी से उठी और पहले कमरे में रखी ब्लड प्रेशर चेक करने की मशीन लेकर आ गई। उसने पति से शांत रहने का अनुरोध करते हुए उनका बीपी चेक करने की प्रोसेस शुरू की। वह सही थी। बीपी की मशीन में बीपी की रीडिंग 179/ 107 आ रही थी। उफ! इनका बीपी तो हाई हो गया। उसने मन ही सोचा और फिर बोली —डियर, आप जल्दी से अपनी बीपी की दवा ले लो। मैं अभी आपके लिए नींबू पानी लेकर आती हूं।
हंसिका के नींबू पानी बनाने के लिए किचन में जाने के बाद पंकज सीना थामकर नीचे बैठ गया। इसके बाद करीब आधा घंटे तक पचौरी परिवार पंकज का बीपी डाउन करने की मशक्कत में लगा रहा। इस बीच, संदीप के अतिरिक्त नंदिनी के दो और दोस्तों के फोन बार—बार आए पर नंदिनी ने उन सबको यह कह कर ओपेनहाइमर का फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने जाने से मना कर दिया कि पापा की तबियत अभी ठीक नहीं है। वह यह फिल्म बाद में जब पापा की तबियत ठीक हो जाएगी, देख लेगी। इसके साथ ही वह चेहरे पर बगैर कोई शिकन लाए पापा की तबियत ठीक करने के लिए मम्मी की मदद में जुट गई।
पापा की तबियत और बिगड़ती देखकर नंदिनी ने फ़ौरन फ़ोन लगाकर पास के अस्पताल में जाने के लिए टैक्सी बुक कर ली। हंसिका और नंदिनी पंकज को जल्दी-जल्दी अस्पताल ले गए। कुछ देर में पंकज की ढेर सारी जांचे डॉक्टर ने करा दी। जांच की रिपोर्ट देखकर डॉक्टर मोहित सक्ससेना ने बताया कि पंकज को माइल्ड हार्टअटेक आया था। इसके बाद पंकज को दो दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। जब वो ठीक हो गए तो डॉक्टरों ने डिस्चार्ज कर दिया।
घर आने के बाद पंकज ने नंदिनी की सराहना करते हुए कहा।
पंकज — बेटी! तुमने सही वक्त पर सही निर्णय लिया। फिल्म का शो तो बाद में देख सकती हो। और अगर बाद में तुम इसे हॉल में नहीं देख पाओगी तो मैं उसे घर पर ही अपने सिस्टम पर दिखाने की व्यवस्था कर दूंगा। तुमने यह बहुत अच्छा किया कि पापा की तबियत को देखते हुए ओपेनहाइमर देखने का अपना प्रोग्राम कैंसिल कर दिया। तुमने फिल्म देखने के बजाय मेरी तबियत संभालने में मम्मी की हेल्प करना ज्यादा उचित माना। इससे मेरी हिम्मत बढ़ गई और दिल को सुकून मिला कि चलो मुसीबत के समय मेरी बेटी मेरे साथ है। बेटी! मुझे तुम पर गर्व है।
यह सुनकर नंदिनी की आंखों में आंसू आ गए और वह भावुकता भरे स्वर में बोली— पापा! आप मेरे लिए सबसे बढ़कर हो। आप ही की मदद करने के लिहाज से मैंने नौकरी पकड़ी थी। फिल्में तो आती—जाती रहती हैं पर जब किसी की जिंदगी दांव पर लगी तो सबसे पहले उस पर ध्यान देना और तबियत को सुधारना जरूरी है। नहीं तो फिर हाथ में कुछ भी नहीं रह जाता है। आपकी तबियत का अच्छा रहना मेरे लिए बेहद जरूरी है। आपके बिना मैं हरगिज नही रह सकती।
हंसिका — बेटा! तुम्हारी यही बातें तो हमारा संकट में सहारा हैं। तुम जो भी करती हो अच्छा ही करती हो। भगवान तुम्हारा भला करे! हमारी दुआएं सदैव तुम्हारे साथ हैं।
नंदिनी ने आंखें पोंछते हुए कहा — ममा! मेरे लिए यही काफी है। आप लोगों की खुशी मेरी खुशी है। क्यों न इस खुशनुमा मौके पर एक खुशनुमा डिश ब्रेकफास्ट में बना ली जाए?
मम्मी समझ गईं कि उनकी बेटी ब्रेकफास्ट में सैंडविच टोस्ट खाना चाहती है और पंकज को भी ये बेहद पसंद हैं। अत: वे सैंडविच टोस्ट बनाने के लिए फौरन किचन में घुस गईं।
(काल्पनिक कहानी )