चैप्टर – 1
यह निपट देहात की (अ) सत्य घटना है। हुआ यूं कि मुकुंदी लाल ने 22वें साल में क्या कदम रख दिया कि उन्हें ब्याह रचाने की पड़ गई। एक रात उन्होंने सपना देखा कि एक मुंबइया टाइप की मोटी—ताजी हीरोइन ललिता सहकार ने उनकी तारीफों के पुल बांधते हुए एक चिट्ठी कबूतर के जरिए भिजवाई है। इंटरनेट के जमाने में कबूतर से मिली चिट्ठी पढ़कर उनके रोंगटे खड़े हो गए। वे सोचने लगे कि लगता है यह हीरोइन मुझसे ही शादी करना चाहती है। फिर क्या था वे एक मरियल सी घोड़ी पर अपनी 90 किलो की काया को सजाधजाकर पहुंच गए मुंबई और ललिता से शादी करने का ऐलान भोंपू बजाकर करने लगे। अब यह बात अलग है कि सपने में ही ललिता के पड़ोसी उनकी भोंपू की आवाज सुनकर ऐसे भौंके कि बस घोड़ी लगाम तुड़ाकर भाग गई और मुकुंदी लाल चारों खाने चित्त हो गए। घोड़ी से टपकते ही चिल्लाने लगे।
मुकुंदी लाल— बचाओ! बचाओ! अरे हमारी कमर टूट गई। इसके बाद मचे कोहराम से मुकुंदी लाल की नींद खुल गई और यह जानकर उन्हें तसल्ली मिली कि चलो शादी का सीन तो सपने का ही हिस्सा था।
यह सपना देखने के बाद मुकुंदी लाल ने बड़े शरमाते हुए अपने मन की इच्छा पिता बसंती लाल को बताई।
बसंती लाल ने उनका सपना सुनकर माथा ठोक लिया और बड़े ही मनहूसियत भरे सुर में बोले— बेटा! शादी का लड्डू खाने की इच्छा हो रही है। सोच—समझकर फैसला करना! नही तो बात में मेरी तरह पछताना पड़े! अब देखो न। हम तुम्हारी अम्मा को तुम्हारे बचपन से झेल रहे हैं। पता नहीं, कौन से अच्छे करम करे थे जो कम से कम वह रोज सुबह एक कप चाय तो हमें पिला देती है। बाकी सब काम तो हमें निपटाना पड़ता है। ढोर—डंगर, बर्तन—भांड़े, खाना—पीना वगैरह से जुड़े सब काम हमें ही करने पड़ते हैं। पूरे 1200 गज के दो मंजिला मकान में झाडू लगा—लगाकर हमारी कमर दोहरी हो जाती है। फिर खेतों को अलग संभालना पड़ता है।
मुकुंदी लाल— आपकी यही परेशानी तो हमसे देखी नहीं जाती। आपकी बहू आ जाएगी तो आपको आराम हो जाएगा। सच बताएं बाबूजी हम ये शादी आपके आराम के लिए ही करना चाहते हैं। अपनी सुविधा के लिए नहीं।
बेटे का ऐसा पिता—प्रेम देखकर बसंती लाल की आखें डबडबा गईं। पर इस भावुकता भरे मौके पर भी वे बाप टाइप की नसीहत देने से नहीं चूके! वे बोले— बेटा! तुम्हीं हो सच में हमारे बुढ़ापे का सहारा! पर पहले कुछ कमाने—धमाने तो लगो! सुबह 11 बजे सोकर उठते हो। रात को दो बजे सोते हो। न घर के काम से मतलब है और न कमाई की चिंता! बेटा, एक से दो हो जाओगे फिर तीन—चार! तब कैसे गृहस्थी का बोझ संभालोगे?
मुकुंदी लाल — बाबूजी!रंग में भंग मत डालो! मैंने सब सोच रखा है। जब मेरी शादी हो जाएगी तो लक्ष्मी के रूप में बहू वैसे ही आ जाएगी। फिर जब घर में साक्षात लक्ष्मी आ जाएगी तो हमें रुपये—पैसे की कमी कैसे होगी? दस—बीस लाख रुपये दहेज में मांग लेंगे! न मुझे कुछ करना होगा, और न आपको! सच बड़ी सुकून भरी जिंदगी हो जाएगी।