चैप्टर – 1
पापा, पापा! चार दिन बाद मेरा बर्थडे है। इस बार मुझे गिफ्ट के तौर पर क्या दिलाओगे? — टीनएजर मुकेश ने अपने पिता प्रशांत देव के गले मे बांहें डालकर पूछ ही लिया। मुकेश को हर बार की तरह इस बार भी अपने बर्थडे का इंतजार था। आखिर हो भी क्यों न? उसे यह दिन साल का सबसे अच्छा दिन लगता थां! हर बार की तरह उसे उम्मीद थी कि इस दिन उसे अपनी फेवरेट चीजें खाने—पीने मिलेंगी, पापा किसी शानदार होटल में जबर्दस्त पार्टी देंगे और पार्टी में आने वाले मेहमान उसके लिए एक से बढ़कर एक गिफ्ट लाएंगे।
मुकेश बीबीएस कॉलेज से एमबीए की पढ़ाई कर रहा था और उसके पिता कृषि विभाग में हेड क्लर्क के पद पर थे। अपने बेटे की खुशी देखकर देव के चेहरे पर लंबी मुस्कान तैर गई। वे बोले — बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो। तुम्हें अपनी जरूरतों के बारे में मुझसे ज्यादा पता होगा। तुम्हीं बता दो न तुम्हें क्या चाहिए।
यह सुनकर मुकेश की बांछें खिल गईं। उसे लगा कि उसे मनचाही मुराद मिल गई हो। वह चहकते हुए बोला — पापा, आपने मेरे पिछले बर्थ डे पर अच्छा हाई क्वालिटी का मोबाइल फोन दिलाया था। इससे मेरी बहुत बड़ी समस्या हल हो गई थी। मैं पढ़ाई के लिए अपनी जरूरत की सामग्री इंटरनेट से तलाश लेता हूं। अपने दोस्तों के टच में बना रहता हूं और कॉलेज, कोचिंग आदि के लिए घर से बाहर जाने पर भी आप सब लोगों के संपर्क में बना रहता हूं। पापा अपनी व्यस्त दिनचर्या में मुझे कभी—कभी गाने सुनने की इच्छा होती है। मैं चाहता हूं कि मेरे इस शौक के कारण अन्य किसी को कोई डिस्टरबेंस न हो। अत: आप यदि चाहें तो मुझे किसी अच्छे से ब्रांड का हेडफोन दिला देना।
देव साहब अपने बेटे की छोटी सी ख्वाहिश जानकर हैरान रह गए। बोले— बस, इतनी सी बात? जिस कंपनी का हेडफोन चाहोगे, कल दिला देंगे। अब मुझे लग रहा है कि मेरा बेटा उमर बढ़ने के साथ समझदार होता जा रहा है।
अपनी फरमाइश पर पापा की मोहर लगते ही मुकेश बेहद खुश हो गया। इस खुशनुमा बातचीत में कब उसके कोचिंग जाने का समय हो गया, उसे पता ही नहीं चला। इस बीच, देव साहब की नजर घड़ी पर पड़ी। वे बोले— बच्चे, तुम्हारी कोचिंग का टाइम हो रहा है। अब, जल्दी से कोचिंग पहुंच जाओ। नहीं तो लेट हो जाओगे।
अपने पापा की बात सुनकर मुकेश मानो नींद से जागा और वह कोचिंग की ओर चल पड़ा। उसका कोचिंग इंस्टीट्यूट घर से सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर था। वह वहां हर रोज पैदल ही आना—जाना करता था। हां, इस किलोमीटर के रास्ते में सिर्फ एक ही दिक्कत थी कि घर और कोचिंग के बीच वाली रेलवे की क्रासिंग पर कोचिंग जाते समय कहीं ट्रेन न आए। अन्यथा उस क्रासिंग पर ट्रेन के गुजरने के चक्कर में करीब दस—पंद्रह मिनट खराब हो जाते थे। खैर। मुकेश की किस्मत उस दिन अच्छी थी कि कोई ट्रेन उस दिन क्रासिंग पर नहीं आई और वह सिर्फ पांच मिनट की देर से कोचिंग इंस्टीट्यूट पहुंच गया।
अगले दिन देव साहब की छुट्टी थी। वे शाम को अपनी श्रीमती सुहासिनी और मुकेश को लेकर सनशाइन मॉल में पहुंचे और उन्होंने उसे उसकी पसंद का मेड इन चाइना हेडफोन और दो अच्छी सी ड्रेंसें दिला दीं। फिर वहीं काफी देर तक घूमना—फिरना किया और नवीन्स के मशहूर छोले—कुलछों का लुत्फ उठाया और रात 10 बजे के करीब घर आ गए।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )