अरे! अनामिका तुम 40 साल की हो गई हो फिर भी तुम्हें अब तक नजर का चश्मा नहीं लगा? दीप्ति ने अपनी आंखों से चश्मा हटाते हुए पूछा।
फिर उसने कहा, आज मालूम है मुझे बॉस से डांट पड़ गई। मैंने जिंदगी का सैलाब नामक किताब के प्रूफ चेक करते समय ध्यान नही दिया था। उसमें भयंकर मिस्टेक थी। ‘रहमत की गाय’ शब्द की जगह गलती से ‘अहमद की गाय’ टाइप करने वाले ने टाइप कर दिया था। मुझे यह बारीक सा फर्क चश्मा लगे होने के बावजूद नहीं दिखा और मिस्टेक छूट गई। वो तो भला हो बॉस का जिन्होंने भले ही झाड़ पिलाई पर गलती की तरफ ध्यान दिलाकर इस किताब की भद्द पिटने से बचा ली।
अनामिका और दीप्ति दोनों ही कमल पब्लिकेशन में प्रूफ—रीडर हैं। ये दोनों बचपन की सहेली हैं। अनामिका ने तीन साल पहले इस प्रकाशन हाउस में नौकरी पकड़ी थी जबकि दीप्ति ने पांच साल पहले। दीप्ति अनामिका से एक साल बड़ी है और उसे छोटे अक्षर देखने में तकलीफ होती है। अत: उसने आई स्पेशलिस्ट के मशविरे के अनुरूप चार साल पहले चश्मा लगवा लिया था और तब से हर बार उसका नंबर हर साल महंगाई की दर जैसा बढ़ता ही जा रहा था।
दीप्ति के सवाल पर अनामिका बोली— वैसे तो मुझे भी सात साल पहले आंखों के डॉक्टर ने चश्मा लगाने को कहा था। पर मैंने एक किताब में पढ़ा था कि आप जैसी मानसिक दशा बनाओगे आप वैसे ही हो जाओगे। जब डॉक्टर ने चश्मा लगाने की सलाह दी थी तो मैंने सोच लिया था कि मुझे चश्मा नहीं लगाना है, तो नहीं लगाना। इसके बाद मैंने हैल्दी डाइट लेना शुरू किया। चमकीली स्क्रीन वाली चीजों, जैसे— मोबाइल फोन, कंप्यूटर आदि पर नजर गड़ाकर काम करना बंद किया। मैं जब भी काम करती हूं हर डेढ़ घंटे बाद अपनी आंखें ठंडे पानी से धो आती हूं। फिर रात में सोने से पहले आई ड्राप या गुलाबजल डाल लेती हूं। इससे भी बहुत सुकून मिलता है। तुम्हें पता है जब मेरी अमृतांशु से शादी की बात चली थी तो वे यह जानकर हैरान रह गए थे कि मैं चश्मा नहीं लगाती जबकि उन्हें तो बचपन से ही चश्मा लग गया था। अब उनका भी हर साल नंबर बदल जाता है और उन्हें हर साल पहले से कहीं अधिक मोटे ग्लास का चश्मा बनवाना पड़ता है। इससे वे समय से पहले ही कहीं ज्यादा बूढ़े दिखने लगे हैं।
दीप्ति और अनामिका की ये बातें रजत दीक्षित भी सुन रहा था। वह कमल पब्लिकेशन की लाइब्रेरी का काम संभालता है। वह दीप्ति और अनामिका दोनों से ही करीब 10 साल छोटा है और उसकी एक साल के भीतर राधिका से शादी होने वाली है।
रजत— अनामिका जी आपने बड़ी अच्छी बात बताई। मैं नए जमाने के फैशन के अनुरूप चश्मा लगाने में शान समझता था पर आज आपने मेरी आंखें खोल दी हैं। मैंने भी किताबों में पढ़ा है कि जिंदगी का सही मजा वही ले पाता है जिसकी आंखें सही—सलामत हों। हालांकि आजकल की भागमभाग भरी जिंदगी में बहुत कम लोग आंखों पर ध्यान देते हैं। ऐसे में आपकी चश्मा नहीं लगाने की प्रतिज्ञा बेहद प्रासंगिक है। मैं भी अब फैशनेबल चश्मे लगाना बंद कर दूंगा और कोशिश करूंगा कि दुनिया के जैसे रंग असली रंग हैं उन्हें बिना कलर्ड चश्मे लगाए फील किया जाए। इससे कुदरत के साथ मेरा तालमेल भी बैठेगा और दुनिया का सच्चा स्वरूप भी मैं समझ पाउंगा।
अनामिका — अच्छा है! मुझे बिना सोशल मीडिया पर ही गए एक फॉलोवर मिल गया। आओ इसी खुशी में गाजर का जूस पीते हैं!
इस पर दीप्ति और रजत बोले — वाह! वाह! क्या बात है!
उधर, अनामिका ने पब्लिकेशन के पियून धर्मेंद्र को जूस लेने भेज दिया।