आखिरी चैप्टर
मयंक— मैं उनकी तरह शुष्क नेचर का बनना नहीं चाहता। पर बच्ची और गांव तेलियापाड़ा में रहने वाले रिटायर्ड माता—पिता की जिम्मेदारी मेरे सिर पर है क्योंकि उनकी पेंशन बहुत मामूली है। हालांकि मुकुल सहयोग करता है पर घर का बड़ा होने के नाते मेरा फर्ज ज्यादा है।
इसी चिंतन—मनन और फाइलों को निपटाने के चक्कर में कब दोपहर के तीन बज गए मयंक को पता ही चला। जब मुकुल ने सदाशिव रेस्तरां से दोपहर का खाना मंगाकर डाइनिंग टेबल पर उसे सजाते हुए सबको खाना खाने के लिए बुलाया तब उसकी काम की खुमारी उतरी। इस बीच, सुकृति बेडरूम में आराम करती रही। उसे शिप्रा ने जाकर हिलाया तो वह अनमने ढंग से डाइनिंग टेबल पर पहुंची।
सुबह के वाक—युद्ध की स्मृति फिर से ताजा नहीं हो जाएं इसलिए सब सिर झुकाकर बिना कुछ ज्यादा कहे—सुने खाना खाते रहे।
शाम को जब मयूरी और योगेश जवान मूवी देखकर लौटे तो कुछ ही देर बाद मयंक उनके घर पहुंच गया। मयंक ने उनके ड्राइंग रूम पर एक नजर घुमाई। सब सामान जमा—जमाया, व्यवस्थित! जबर्दस्त साफ—सफाई! सीलिंग फैन तक एकदम साफ! उनका रहन—सहन का स्तर देखकर मयंक को बहुत अच्छा लगा।
योगेश और मयूरी ने मयंक का स्वागत किया। नमस्ते—वमस्ते होने के बाद मयंक ने नरम स्वर में पूछा— कैसी लगी आप सबको जवान?
योगेश — बिलकुल मस्त!
मयूरी — बहुत शानदार! भाई इसमें शाहरुख ने क्या कमाल की एक्टिंग की है।
अब मयंक को लगा कि कहीं उन लोगों की बातचीत जवान फिल्म पर ही केंद्रित नहीं हो जाए, तो यहां आने का उसका मकसद चौपट हो जाएगा। अत: वह थोड़ी—बहुत इधर—उधर की बातें करके अपने मेन हिडेन एजेंडे पर आ गया। वह बोला — आप लोग दोनों ही सर्विस क्लास हो! दो—दो बच्चे हैं। काम का बोझ भी है और गृहस्थी का भी! ऐसे में कैसे इतना बैलेंस बनाकर चलते हो कि आप लोग संडे को या अन्य छुट्टी वाले दिन भरपूर एंजॉय करने का मौका निकाल लेते हो?
मयंक की बातों में छिपे तारीफ से सुर को भांपकर योगेश और मयूरी दोनों ही बेहद खुश हो गए। वे उत्साहित स्वर में बताने लगे — मयंक जी! हमारी रूटीन व्यवस्थित है। हमने हर काम का वक्त तय कर रखा है। तय वक्त में काम निपटाने के लिए कुकर, कड़ाही से लेकर हर जरूरी चीज को मय विकल्पों के तैयार रखते हैं। मयूरी जब रोटी बनाती हैं तो मैं सब्जी काट देता हूं। हमारे दोनों बच्चे सुनीता और सुनील हर घरेलू काम में मम्मी—पापा का हाथ बंटाते हैं। न हम कोई चीज फैला कर रखते हैं और बच्चों को फैलाने देते हैं। हमारी कोशिश यही रहती है कि आफिस का काम आफिस में ही स्पीड से निपट जाए और हम उसे घर में लाकर पूरा करने से गुरेज करते हैं। छुट्टी—छपाटी के दिन हमने बाहर जाकर एंजाय करने का नियम बना रखा है। इसके खर्चों का इंतजाम करने के लिए हमने जाइंट नेम से मासिक आय योजना का सहारा ले रखा है। हमारे द्वारा जमा 9 लाख रुपये पर हर महीने करीब 6000 रुपये से अधिक ब्याज मिल जाता है। उसे हमलोग एंजॉय करने या ट्रैवलिंग या वार—त्यौहार के खर्चों के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं। इससे मौज—मस्ती भी हो जाती है और छुट्टी—छपाटी के दिन मयूरी को आराम मिल जाता है।
मयंक — वाह साहब! वाह!! आपने तो मेरी आंखें खोल दीं। मैं और सुकृति आपके नक्शे—कदम पर चलकर जिंदगी को एंजॉय करना सीखेंगे। उसे और शिप्रा को भी संडे या छुट्टी के दिन घुमाने—फिराने और एंजॉय कराने ले जाया करूंगा। आप दोनों को यह जानकारी देने के लिए बहुत—बहुत धन्यवाद! मैं अगले संडे से पहले अपने सब काम आफिस टाइम में ही निपटाकर फ्री रहा करूंगा और संडे को बीबी तथा बच्ची को बाहर ले जाया करूंगा।
जब मयंक ने मयूरी और शिप्रा के सामने अगले संडे से जिंदगी को एंजॉय करने का प्रपोजल रखा तो सबने जोर से ”हुर्रे!” कहते हुए उसे मंजूरी दे दी!
(काल्पनिक कहानी)