चैप्टर—2
अंकित भी संजना के अखरोट प्रेम को देखकर हैरान हो रहा था। उसने अपने जीजाजी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा —बेटा! जल्दी तैयार हो जा। नहीं तो घर का अच्छा खासा माहौल खराब हो जाएगा।
मामा की बात सुनकर संजना की मौज—मस्ती पर थोडा ब्रेक लगा। वह कुछ सकुचाते हुए बोली — मामा! ठीक है, मैं आज स्कूल चली जाती हू। पर क्या आप मुझे अखरोट का पैकेट बैग में रखकर ले जाने दोगे?
मामा ने सोचा कि यदि मै उसे अखरोट नहीं ले जाने दूंगा तो व्यर्थ में ही संजना का दिमाग दिनभर खराब रहेगा। अत: उन्होंने संजना को अखरोट का पैकेट स्कूल ले जाने की इजाजत दे दी। इसके फौरन बाद संजना तैयार होने के लिए अपने कमरे में भागी और आनन—फानन में तैयार होकर मम्मी—पापा को बाय—बाय कहकर बस स्टाप पहुंच गई। उसे बस स्टाप तक छोडने के लिए मामा भी आए।
स्कूल में भी संजना का अखरोट खाना बदस्तूर जारी रहा। क्लास में तीन—चार बार संजना की मैडम जया ने उसे टोका। संजना का मन पढ़ाई की जगह इस बात की ओर ज्यादा लग रहा था कि कैसे वह कम से कम समय ज्यादा से ज्यादा अखरोट कैसे खा ले।
मैडम ने उसकी कुटुर—कुटुर की आवाज सुनकर अखरोट खाने के लिए मना किया पर वह नहीं मानी। इससे नाराज होकर मैडम ने उसके हाथ से अखरोट का पैकेट छीन लिया और उसे क्लास से बाहर निकाल दिया। तब तक पैकेट के आधे से अधिक अखरोट संजना के पेट में समा चुके थे।
अखरोट खाने से वंचित कर दी गई संजना मन मसोसकर क्लास की दीवार से टिककर खड़ी हो गई। थोड़ी देर में उसे लगा कि उसका पेट फूल रहा है। फिर समय बीतने के साथ उसकी बैचेनी बढ़ती गई। उसे लगने लगा कि पेट का भारीपन बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही पेट में दर्द शुरू हो गया।
उसने अपने दर्द को काबू में करने के लिए कभी उठने तो कभी बैठने का सिलसिला शुरू कर दिया। वह ज्यों—ज्यों दर्द को काबू में करने की कोशिश करती, त्यों—त्यो वह और भी बढ़ता जाता। आखिर में उसने हारकर स्कूल के पियून पवन को आवाज लगाई।
पवन ने देखा कि संजना मारे दर्द के कराह रही है तो उसने प्रिंसिपल गीतांजलि भट्ट को उसकी हालत के बारे में जानकारी दी। पहले तो प्रिंसिपल ने समझा कि संजना नौटंकी कर रही है तो उन्होंने उसे डांट दिया। पर जब उन्होंने देखा कि उसकी हालत वाकई खराब है तो वे भी चिंता में पड़ गईं और पिघल गईं और उन्होंने उसके मम्मी—पापा को फोन लगवा दिया।
तब तक पापा आफिस जा चुके थे अत: अंकित अपनी दीदी को आटो से लेकर संजना के स्कूल पहुंचा। उसने जैसे—तैसे संजना को संभाला। उसे पेट दर्द कम करने की दवा दी पर संजना को आराम नहीं पड़ा।
दस्त वगैरह लगने से उसकी हालत और नासाज हो गई। यह सब देखकर आरती बेहद चिंता में पड़ गईं। संजना बार—बार पेट को दबाकर दर्द के मारे कराह रही थी।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)