आखिरी चैप्टर
यह सब देखकर आरती बेहद चिंता में पड़ गईं। संजना बार—बार पेट को दबाकर दर्द के मारे कराह रही थी।
तुमने अपनी ऐसी हालत कैसे कर ली, बेटा? उन्होंने घबराकर पूछा।
संजना कुछ कहना चाहती थी पर पेट दर्द ने उसके मुंह पर मानो जिप लगा दी थी। तब प्रिंसिपल ने पूरे वाकये के बारे में बताया।
सारी बात जानकर अंकित बोला— आपने अच्छा किया जो हमें फोन लगा दिया। आपके इस सहयोग के लिए धन्यवाद, मैडम जी! अब हम इसे फौरन पास के अस्पताल ले जा रहे हैं।
स्कूल की फार्मल्टी पूरी करने के बाद अंकित और आरती संजना को लेकर एमकेएम अस्पताल पहुंचे। वहा के डाक्टरों ने संजना को भर्ती करने की सलाह दी।
संजना को अस्पताल में भर्ती कराने के साथ ही आरती ने राकेश के आफिस फोन लगाया। अपनी बेटी की हालत के बारे में जानकर राकेश फौरन अपने साहब से घर जाने की बात बोलकर अस्पताल की ओर रवाना हो गए।
जब राकेश को संजना के पेट दर्द की वजह मालूम चली तो वे गुस्से में आ गए। लेकिन उन्होंने संजना की तबियत का लिहाज करते हुए ज्यादा कुछ नहीं कहा और पास में बैठकर सिर को सहलाते रहे।
करीब 24 घंटे अस्पताल में बिताने और दो ड्रिप चढ़ने के बाद संजना की तबियत सुधरी। इसके बाद राकेश ने करीब 10 हजार रुपये का बिल भरा तब संजना का डिस्चार्ज पर्चा बना।
जब वे घर पहुंचे और संजना की हालत धीरे—धीरे और बेहतर हो गई। तब पापा ने उसे प्यार से समझाया — बेटा! यह सब अखरोटों को थोक में खाने का नतीजा है। किसी खाने—पीने की चीज के पीछे इतना पडना ठीक नहीं होता। तुमने अति की, तुम्हें सजा मिली। तुम्हें पेट दर्द झेलना पड़ा और मुझे अस्पताल का बिल!तुम्हीं सोचो तुम्हें इतने सारे अखरोट खाने से क्या फायदा हुआ?
हां, संजना तुम्हें अब अपनी जीभ पर कंट्रोल करना सीखना ही होगा। वरना अस्पताल के ऐसे चक्कर तो आए दिन लगाने पड़ेंगे। आरती आंखों में आंसू भरकर बोली।
दीदी, गलती मेरी ही थी। मैं न संजना को अखरोट देता न यह समस्या होती।— अंकित पछतावे भरे स्वर में बोला।
अंकित, गलती तुम्हारी नहीं है। हमारी बेटी की है। उसे इतना लालची नहीं बनना चाहिए। एक ही दिन में इतने सारे अखरोट नहीं खाने चाहिए थे।— राकेश ने नरम सुर में कहा।
पापा, मैं अपनी गलती के लिए माफी मांगती हूं। अब से मैं किसी भी चीज को इतना नहीं खाउंगी—पिउंगी कि अपने परिवार और मेरी तबियत को किसी तरह का नुकसान पहुंचे। मैं बेहद शर्मिंदा हूं।— यह कहते—कहते संजना की आंखें छलछला आईं।
राकेश ने देखा कि उनकी बेटी रोने—रोने को हो रही है तो उन्होंने प्यार से उसे पुचकाराते हुए कहा— बेटा! अच्छा है तुम्हें अपनी गलती समझ में आ गई। अब तुम्हारी पनिशमेंट यही है कि मुझे हिसाब लगाकर बताओ कि अगर केवल दो—दो अखरोट हर दिन खातीं तो वह पैकेट कितने दिन चलता? और हां, यह भी सोचना कि 10 हजार रुपये में अखरोट के ऐसे कितने पैकेट आ जाते?
पाप के यह कहने के साथ ही घर में तीनों के जोरदार ठहाके गूंज उठे।
(काल्पनिक कहानी)