झांसी रेलवे स्टेशन पर आज नजारा कुछ बदला-बदला सा था। हुआ यूं कि प्लेटफार्म नंबर 1 पर नई दिल्ली से शताब्दी एक्सप्रेस आने का टाइम हो रहा था और मुसाफिर बेसब्री से शताब्दी के आने का इंतजार कर रहे थे। इसी बीच न जाने कहां से प्लेटफार्म पर एक आवारा सांड़ घुस आया।
अच्छा-खासा हट्टा-कट्टा, लंबी—चौड़ी कद—काठी, नुकीले सींगे, चेहरे और आंखों में गुस्सा झलकता हुआ। उसके हावभाव देखकर मुसाफिरों के होश उड़ गए। दहशतजदा लोग सांड़ के कोप से बचने के लिए इधर—उधर भागने लगे।
वह सांड़ जिधर अपना मुंह घुमाता लोगों में भगदड़ मच जाती। इसी कोहराम के बीच कुछ लोग स्टेशन मास्टर के पास पहुंचे तो वह बोला – ‘सांड़ भगाना मेरा काम नहीं है। मैं तो यहां गाड़ियों की आवाजाही की मॉनिटरिंग और स्टेशन की अन्य व्यवस्थाओं को संभालने के लिए बैठा हूं।’
अब दहशदजदा लोग सांड़ को भगाने में मदद लेने के लिए जीआरपी के थाने में गए। लोगों ने प्लेटफार्म पर सांड़ की धमाचौकड़ी के बारे में बताया तो जीआरपी के अधिकारी ने कहा – ‘हमारा काम रेलवे संपत्ति की रक्षा करना है। वह सांड़ रेलवे को तो नुकसान पहुंचा ही नहीं रहा। वह सांड़ कितना अच्छा है और आप लोग उसे बुरा साबित करने में लगे हो। अरे वह शिव का वाहन है। आप लोगों को तो उसकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए।’
यह टके सा जवाब सुनकर लोग सकते में आ गए। सांड़ से आतंकित लोग इधर-उधर भागते रहे। सांड़ इधर-उधर मुंह मारता रहा। कभी किसी ठेलेवाले के फल खा लिए तो कभी किसी कैटरर की इडलियों पर धावा बोल दिया।
एक बारगी तो सांड़ ने लाल साड़ी पहने लेडीज को भी धक्का दे दिया। वह उई मां कहते हुए प्लेटफार्म पर ही गिर गई। कुछ लोग उसे उठाने में लग गए। कुछ लोग थोड़ा साहस दिखाते हुए सांड़ को हड़काते हुए उसे भगाने की कोशिश में जुट गए। लेकिन उनकी कोशिशें कुछ खास कामयाब नहीं हो पा रही थीं। ऐसा लग रहा था मानो वह सांड़ लोगों को चुनौती देने में लगा है कि हिम्मत है तो मुझे भगा कर दिखाओ!
उसका रूप—रंग, क्रोध से फड़कते नथुने और बड़े—बड़े सींग देखकर लोगों की डर के मारे हालत खराब थी। वह बीच—बीच में फुंफकारता भी जा रहा था। उसने एक मुसाफिर को तो मय सूटकेस अपने सींगों पर उठा कर प्लेटफार्म पर पटक दिया। उस मुसाफिर की तो डर के मारे चीख निकल गई और हड्डियों में चोट लगने से कराहता हुआ जैसे—तैसे भाग निकला।
इसी बीच, जब शताब्दी आने में एक मिनट से भी कम का समय रह गया तो संयोगवश प्लेटफार्म नंबर 1 पर एक गाय आ गई। सांड़ ने उसे देखा। गाय से उसकी आंखें चार हुई। फिर वह उसकी ओर बढ़ लिया और गाय के पीछे-पीछे चलकर स्टेशन से बाहर निकल गया। यह दृश्य देखकर मुसाफिरों ने राहत की सांस ली।
मोरल ऑफ द स्टोरी : जहां काम आवे सुई, कहा करै तलवार! यानी कभी—कभी बड़ी समस्या का भी छोटा—सा हल निकाल कर समाधान किया जा सकता है।
(काल्पनिक कहानी)