चैप्टर—1
बंसी ने एक मुर्गी और मुर्गे को बाजार से खरीदा। समय के साथ मुर्गा और मुर्गी का प्यार परवान चढ़ा। कुछ ही समय में मुर्गी पेट से हो गई। बंसी की तो बांछें खिल गईं। वह खूब खुश रहने लगा। उसे लगा कि जैसे उसकी लॉटरी लग गई हो।
वह सोचने लगा कि इस मुर्गी के ढेर सारे अंडे होंगे। उनमें से आधे अंडे वह बेच दिया करेगा। बाकी बचे अंडों से जब चूजे होंगे और फिर वे चूजे मुर्गा-मुर्गी में बदलेंगे तो वह उन्हें बेच दिया करेगा। वह इतनी मेहनत करेगा कि कुछ समय बाद उसका एक मुर्गी फार्म हो जाएगा और वह मालामाल हो जाएगा।
लेकिन हाय री किस्मत। कुछ समय बाद मुर्गी ने केवल एक अंडा दिया- बिलकुल पीले रंग का चमकता हुआ। बंसी बड़े चक्कर में पड़ा। उसने ऐसा अंडा पहले कभी नहीं देखा था।
बंसी ने अंडा हाथ में उठाया, उसे हिलाया-डुलाया। वह बहुत भारी और ठोस-सा प्रतीत हुआ।
उसने वह अंडा अपनी पत्नी अनारकली को दिखाया। पत्नी देखते ही समझ गई कि माजरा क्या है। वह पागलों जैसी हंसने लगी। बंसी ने पूछा – ‘क्या हुआ भागवान! ऐसे क्यों हंस रही हो?’ तो उसकी पत्नी बोली – ‘ओ मुन्नी के पापा! तुम रहे बुद्धू के बुद्धू! अरे अपनी मुर्गी ने सोने का अंडा दिया है!!!’
बंसी हैरान रह गया। उसे तो यकीन ही नहीं हुआ कि वह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का मालिक बन गया है। उसके मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे। पर उसे चूंकि थोड़ा सा संदेह था। अत: उसने निश्चय किया कि वह उस अंडे को किसी जानकार को दिखाएगा। यदि जानकार पुष्टि कर देता है कि यह सोने का ही अंडा है तो वह 100 फीसदी यकीन कर लेगा।
यही सब सोचकर बंसी पास के रूपश्री ज्वैलर को वह अंडा दिखाने पहुंच गया। ज्वैलर उस अंडे को देखते ही बोला – ‘बड़ा ही सॉलिड सोना है। पूरे 24 कैरेट। अरे यह अंडा तो कम से कम 2 लाख रुपये का है।’
बंसी ने कहा – ‘ज्वैलर भइया! मुझे अभी पैसों की सख्त जरूरत है। तुम इसे खरीद लो न।’
ज्वैलर ने वह अंडा खरीद लिया। तुरंत दो लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया। वह पैसे लेकर खुशी-खुशी घर आ गया। फिर बंसी ने अपनी पत्नी और बच्ची के साथ जमकर शॉपिंग और मौज-मस्ती की।
उसने अपनी पत्नी को नई—नई साड़ियां और महंगी वाली आर्टिफिशियल ज्वैलरी दिलवाई और मुन्नी को भी ढेर सारे खिलौने तथा कपड़े खरीदवा दिए। उसने अपने लिए सिर्फ एक नया कुर्ता लिया ताकि कोई यह न कहे कि इतना पैसा आने के बाद उसके पास ढंग के कपड़े भी नहीं हैं।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)