चैप्टर—3
मुझे लगा कि मैं जिंदगी की रेस में रोहित से काफी पीछे रह गया हूं। वह झांसी में फोर बीएचके का मालिक बन चुका है और मैं अभी भी अपने और अपने परिवार के लिए सिर पर एक छत की भी जुगाड़ नहीं कर पाया हूं।
मैंने रोहित की आवाज में झलकती खुशी में अपनी खुशी की तलाश करते हुए कहा — भई बधाई हो! बड़ी जल्दी फोर बीएचके के मालिक बन गए! कितने का पड़ा यह फ्लैट?
रोहित — बस, सब ईश्वर की कृपा है। 30 मेरे पास हो गए थे और दस का मैंने लोन लिया है। रजिस्ट्री वगैरह मिलाकर 40 का पड़ा है।
पाठक यह समझ ही गए होंगे कि इन अंकों में उन्हें लाख शब्द जोड़ना है। यानी रोहित ने 40 लाख का फ्लैट लिया है, वो भी झांसी के सीपरी बाजार में। मेरा सिर चकराने लगा। एक पंचरवाला 40 लाख की प्रापर्टी का मालिक? यह कैसे हुआ? क्या भाई की कोई लॉटरी खुल गई? या उसे कहीं से गड़ा खजाना मिल गया? या उसने ऐसे ही गप्प ठोक दी मुझे इम्प्रेस करने के लिए? या उसके पिताजी विरासत मे काफी बड़ी रकम दे गए हैं?
ऐसे—ऐसे सवाल मेरे मन में उमड़ने लगे। मैंने सोचा कि अभी इतना कुछ पूछना ठीक नहीं होगा क्योकि मुझे अपनी कक्षा के बच्चों के मंथली टेस्ट के पेपर भी तैयार करने थे।
अत: मैंने कूटनीतिक अंदाज में पूछा — अच्छी बात है रोहित! मुझे न्यौता भेज रहे हो न? कब है गृह प्रवेश?
रोहित— इसी महीने 11 तारीख को। बस, तुम टिकट करा लो और सपरिवार जरूर आ जाना।
मैंने श्योर कहा और फोन काट दिया। मैंने सोचा कि जब रोहित से मिलूंगा तब उससे जानूंगा उसकी कामयाबी का राज!
बच्चों के मंथली टेस्ट होने के बाद मैंने ट्रेन वगैरह के टिकट बुक कराए और 11 तारीख से एक दिन पहले रोहित द्वारा दिए गए पते पर पहुंच गया।
वह फ्लैट कितना आलीशान था। एक—एक कमरा बिलकुल पर्फेक्ट तरीके से बना हुआ। फर्श पर चमचमाती टाइल्स! ड्राइंगरूम में शानदार झूमर तथा सोफासेट! तीन लेट—बाथ, 24 घंटे पानी—बिजली और पावर बैकअप की सुविधा! कैंपस के बाहर दो सशस्त्र गार्ड! तो यह है मेरे दोस्त रोहित का नया ठिकाना! ठाठ—बाट और शानो—शौकत से भरपूर!
रोहित और उसकी फैमिली ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया। दोपहर में पूजा—पाठ शुरू हुआ और करीब दो घंटे तक चलता रहा। फिर हवन हुआ और अंत में बफे। तीन तरह की मिठाइयां, चार तरह की रोटियां और पूड़ियां! दो तरह के रायते! मिक्स वेज, पनीर लवाबदार, मटर पुलाव और जाने क्या—क्या? ऐसा लग रहा था मानो किसी करोड़पति की शादी में आए हुए हों। सबने इस शानदार लंच का जमकर आनद लिया। खाने—पीने और मेहमानो की आवभगत का दौर देर शाम तक चलता रहा।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)