रचनाकार : विजय कुमार तैलंग, जयपुर
सरदार जी अस्पताल की आई.सी.यू. वाली कॉरिडोर में बेचैनी से टहल रहे थे। सोच रहे थे – हे वाहे गुरु, जो अंदर है, उसका पता चल जाए कि वह कौन है तो उसके पिंड (गाँव) उसे छोड़कर मैं अपने पिंड जाऊँ। कल बिट्टो से कुड़माई भी है मेरी। न जाने कैसे वो बुजुर्ग मेरे ट्रक के सामने आने पर घबरा कर ढलान पर कूद गया। वहाँ बड़े से पत्थर से उसका सिर टकराया और बेहोश हो गया।
डॉक्टर आई.सी.यू. से बाहर आया तो सरदार जी लपक कर उसके पास आये।
“डॉक्टर साब? “
“मरीज ठीक है लेकिन उसकी याददाश्त चली गई। उसे ले जा सकते हो। “
सरदार जी के सामने धर्मसंकट खड़ा हो गया। अब उसे कहाँ ले जाकर छोडूँ? उन्होंने उसकी जेबें पहले ही तलाश ली थी। न कोई कागज मिला, न मोबाइल मिला, केवल डेढ़ सौ रुपये मिले। कल उन्हें पिंड जाना ही जाना था, उनकी बिट्टो के साथ कुड़माई (सगाई) जो थी। बिट्टो बहुत सुन्दर थी और वो बिट्टो से प्यार करते थे। वो बिट्टो से रिश्ता जोड़ने में किसी तरह की कोताही नहीं चाहते थे। बिट्टो उन्हें पसंद करती थी या नहीं करती थी, इसका बिट्टो ने उन्हें कोई संकेत नहीं दिया था। काफी ना नुकुर के बाद बिट्टो से उनकी सगाई निश्चित हुई थी। घरवाले तो ठीक, खुद बिट्टो ने भी सगाई के लिए ‘हाँ’ करने में काफी नखरे दिखाये थे। बिट्टो के पापा ने तो साफ मना ही कर दिया था, ये तो भला हो उनके प्राजी (बड़े भाई) का जिन्होंने दोनों तरफ बात करके, बमुश्किल तमाम बात जमा दी थी।
वे अभी उस बुजुर्ग को लेकर किसी निर्णय पर पहुँच पाते कि तभी सरदार जी की मोबाइल की रिंग घनघनाई। सरदार जी दे प्राजी (बड़े भाई) का फोन था –
“ओये तूं ओत्थे की करदा प्या सी? ” (तू वहाँ क्या कर रहा है?)
“कुछ नई प्राजी, आउँदा प्या।” (आ रहा हूँ!)
“ओ छेत्ती कर, इत्थे लफड़ा हो गया है!”
“की लफड़ा, प्राजी? “
“तूं आयेगा तद् दसना!” (तू आयेगा तो बताऊंगा!)
फोन कट। सरदारजी चक्कर में ?? उन्हें अब जल्द से जल्द अपने पिंड पहुँचना था। पता नहीं वहाँ क्या लफड़ा हो गया? वे अगर इस बुजुर्ग व्यक्ति को पुलिस के हवाले करते हैं तो बहुत सी औपचारिकताओं में काफी समय लग जायेगा और उनका कल पिंड पहुँचना नहीं हो पायेगा। पता नहीं वहाँ क्या लफड़ा हो गया? बहरहाल, उन्होंने निर्णय लिया कि वे उस बुजुर्ग को अपने ही साथ पिंड ले जायेंगे। बाद में उसके घर का पता करके उसे छोड़ आयेंगे। उन्होंने बुजुर्ग को अस्पताल से छुट्टी दिलाई और अपने ट्रक में बैठा लिया। बुजुर्ग उन्हें ही अपना हितैषी समझकर मुस्कुराने लगा।
पिण्ड जाकर सरदारजी को पता चला कि उनकी बिट्टो से कुड़माई टल गई है क्योंकि उनकी होने वाली सासू जी के पतिदेव जो बिट्टो की सगाई सरदारजी से नहीं करना चाहते थे लेकिन सासुजी अड़ी हुई थी, वे नाराज होकर दूसरे किसी शहर बिना बताये चले गए। वे अपना मोबाइल भी साथ नहीं ले गए। इसी वजह से सब चिंतित हो रहे थे और फिलहाल कुड़माई का कार्यक्रम स्थगित कर दिया था।
सरदार जी बिना समय गंवाये, तुरन्त बिट्टो के पिंड गए जहाँ बिट्टो का घर था। सरदारजी ने वहाँ बिट्टो के पिताजी का फोटो देखा और हैरान रह गए। ये तो वही बुजुर्ग था जिसे वो अपने साथ लेकर आये थे। क्या ये ही बिट्टो के पापा हैं?
“ये बुजुर्ग तो मेरे साथ आये हैं!” सरदार जी बोले।
सब चौंक पड़े। सरदारजी ने बिट्टो के घरवालों को पूरा वाक्या सुनाया।
वस्तुस्थिति को समझते हुए सबने दो दिन बाद सरदार जी की बिट्टो के साथ कुड़माई करवा ही दी।
(काल्पनिक कहानी)
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रचनाकार विजय कुमार तैलंग का संक्षिप्त परिचय
मैं विजय कुमार तैलंग, पुत्र स्वर्गीय श्री देवकी नंदन तैलंग, हिंदी (विशेष) से स्नातक हूँ। मैंने दिल्ली विश्व विद्यालय से स्नातक की उपाधि ली है। मेरा जन्म व शिक्षा दिल्ली में सम्पन्न हुई। वहाँ मैंने निजी संस्थानों में सेवाएं दी हैं। लेखन में मेरा शौक विधार्थी जीवन से ही रहा है। मैंने कभी अपनी रचनाएँ किसी मैगजीन या समाचार पत्रादि में प्रकाशित नहीं करवाईं क्योंकि निजी संस्थानों में कार्यरत रहने से समयाभाव रहा था।
विवाहोपरांत मैं जयपुर आ बसा। यहाँ ऑनलाइन साहित्यिक मंचों में मैंने अपनी रचनाएँ भेजनी शुरू कीं और उनकी प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया। मेरी रचनाओं पर मुझे कई