आखिरी चैप्टर
दरअसल, सपना ने सिर पर हेलमेट के नीचे चुन्नी ऐसे लपेट रखी थी कि वह सरदार जैसी लग रही थी। वह उन लड़कों की बात सुनकर मन ही मन बोली – बच्चू मैं सरदार नहीं, असरदार हूं। अगर मेरे हत्थे चढ़ गए तो नानी याद करा दूंगी।
थोड़े आगे बढ़ने पर उसे सड़क पर आवारा घूमते मवेशियों से बचकर बाइक निकालनी पड़ी। जब करीब पांच किलोमीटर का रास्ता तय हो गया तो उसे एक पान की दुकान के पास लाल बत्ती होने से उसे रुकना पड़ा। तब कुछ लोग बेहद पैनी निगाहों से उसे घूरते दिखे। वे उस पर कटाक्ष करते हुए अजीब ढंग से मुस्करा रहे थे। उन लोगों में से एक ने कहा – भई वाह! आजकल की लड़कियां कितनी एडवांस्ड हो गई हैं, जो बाइक भी चलाने लगी है। अरे! इनके मम्मी-पापा ही इन्हें बिगाड़ रहे हैं। इन्हें स्कूटी-बिस्कूटी चलानी चाहिए। बाइक चलाना तो लड़कों का काम है।
सपना को इन लोगों की दकियानूसी सोच पर हैरानी हुई। वह सोचने लगी ऐसे लोग ही स्त्री-पुरुष की बराबरी के विरोधी होते हैं। ये यह नही समझते कि वह खुद पापा के काम से और मम्मी की आज्ञा लेकर ही बाइक चलाते हुए आफिस की तरफ जा रही है।
फिर सपना संभाजी चौक तक पहुंच कर लाल बत्ती पर रुकी तो वहां पर खड़े लोग यह कहते सुनाई दिए – देखो न! यह लड़की हेलमेट लगाकर कितनी अजीब दिख रही है। जरूर यह सुंदर नहीं बंदर होगी जो इसने हेलमेट के काले कांच के पीछे अपनी सूरत को छिपा रखा है।
यह सुनकर सपना को बड़ी झुंझलाहट हुई उसने जैसे ही हेलमेट का कांच हटाया उन सबके मुंह पर ताले जड़ गए। उसकी सुंदर आंखें और मोहिनी मूरत देखकर उन लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि यह लड़की किसी फिल्मी हीरोइन की तरह सुंदर होगी!
जब इन लोगों के मुंह बंद हो गए तो सपना हरी बत्ती होते ही आगे की ओर बढ़ गई।
श्री गणेश चौराहे पर पहंचने पर कुछ कॉलेज लड़कियां उसकी तरफ हाथ हिलाते हुई दिखीं। उसे लगा कि ये लड़कियां उसकी हौसला अफजाई कर रही हैं। इसी समय उसका बॉय फ्रेंड आकाश अपनी बाइक पर दिखा। उसने सपना को हाथ से रुकने का इशारा किया और जब वह रुकी तो दोनों ने रोड की एक तरफ अपनी बाइक्स खड़ी कर दीं।
आकाश- हाय सपना! तुम्हें सलाम! आज तुम यह क्या कर रही हो? तुम्हें बाइक चलाते देखकर मुझे बेहद खुशी हुई।
सपना – धन्यवाद! आकाश! थैंक्स फॉर मोरल सपोर्ट। दरअसल, मुझे पापा का यह बैग उनके आफिस तक पहुचाना है।
आकाश – श्योर! चलो साथ चलते हैं।
इसके बाद उन्होंने अपनी-अपनी बाइक्स उठाईं और पापा के ऑफिस पहुंच गए। वहां जब सपना ने अपने रास्ते के संस्मरण सुनाते हुए पापा को उनका बैग सौंपा तो पापा खुशी से झूम उठे। वे बोले – शाबाश बेटा! लोग कुछ भी कहें, तुम्हें अपनी मंजिल की तरफ सफर जारी रखना है तभी तुम अपनी मंजिल और मकसद को हासिल कर सकती हो! अगर लोगों की बातें और तानेबाजी सुनकर तुम अपने प्रयासों को छोड़ देगी तो जिंदगी मुश्किल हो जाएगी।
आकाश – हां, अंकल! आप कुछ भी करो, चाहे कितना भी अच्छा काम करो, लोग तो कमेंटस करते ही हैं। हमें उन सबमें से केवल अपने हित की बात मानने को तरजीह देनी चाहिए, बाकी निस्सार बातों को छोड़ देना चाहिए।
रजत – वलो! सपना तुम बाइक चलाकर थक गई होगी। क्यों न इस मौके पर एक कॉफी ऑफिस की कैंटीन में पी ली जाए़?
आकाश और सपना – हां, हां क्यों नहीं? यह कहकर वे तीनों कैंटीन की तरफ चल पड़े।
(काल्पनिक कहानी)