आखिरी चैप्टर
यही सब सोचकर वे समारोह खत्म होने के बाद आयोजक बिदकी पांडे के पास पहुंचे। वे मंच के पास खड़े होकर चायपान कर रहे थे।
नमस्कार चमत्कार के बाद अपने राम ने कहा — पांडेजी! मैं पिछले बीस वर्षों से कलम घिस रहा हूं। मेरी कविताएं, कहानियां आदि स्टेट लेवल और नेशनल लेवल के अखबारों में जगह पाती रही हैं। पर मुझे आज तक कोई सम्मान नहीं मिला। मुझे लगता है कि आपके पास मेरी समस्या का समाधान है। ये बताइए न कि सम्मानित कैसे हुआ जाता है?
बिदकी पांडे— अरे! बबुआ सम्मान चाहीं। इ लो हमरा कारड रात को दस बजे फोन करना। हम सब समझा देंगे।
अपने राम वह कार्ड बड़ी ही सावधानी के साथ कुर्ते की उपर की जेब में रखकर घर आ गए। उन्हें लग रहा था मानो वह कार्ड ऐसे किसी बड़े खजाने की चाबी है जो जल्द ही उनके हाथ लगने वाला है। फिर उन्होंने सम्मान मेले के पूरे वाकये के बारे में सपना को बताया। सम्मान मेले का विवरण सुनकर सपना बेहद खुश हो गई। उसने कहा — चलो अच्छा है! हो सकता है कि अगली बार सम्मान मेले के मंच पर चढ़ने की बारी तुम्हारी हो! बिदकी पांडे से रात में बात जरूर कर लेना। अपना मोबाइल फोन का स्पीकर भी फुल रखना ताकि मैं भी बातचीत को सुन सकूं।
रात में खाने—पीने के बाद अपने राम ने कार्ड में दिए गए नंबर पर रात के ठीक 10 बजे धड़कते दिल के साथ फोन लगाया। उधर से आवाज आई— जय—जय! आप कौन बोल रहे हैं?
अपने राम — नमस्कार पांडेजी! हम अपने राम बोल रहे हैं। सुबह आप से बात हुई थी! हम भी अपना सम्मान कराना चाहते हैं।
पांडे — कौनो दिक्कत नहीं है। बस थोड़ा इंतजार करना होगा।
अपने राम — क्यों?
पांडे — हम इस सम्मान मेला के छह महीने बाद साहित्यकार सम्मान मेला आयोजित करेंगे। उसमें आपका नाम डलवा सकते हैं।
अपने राम — हां, ठीक है। हमे वैसे भी जल्दी नही है। हम एक उपन्यास लिख रहे हैं। वो तब तक पूरा हो जाएगा।
पांडे — तो उसी उपन्यासे पर सम्मान दिलवा देंगे।
अपने राम — ये तो और भी अच्छा है।
पांडे — पर आप तो जानते ही हैं कि महंगाई कतना बढ़ गया है। ऐसे फंक्शन पर खरचा बहुत होता है।
अपने राम — तो?
पांडे — बस, ज्यादा कछु नाहीं। आप थोड़ा सा खरचा कर देना। थोड़ा हम कर देंगे!
अपने राम — यानी?
पांडे — हम आपको साहित्य रतन सम्मान दिला देंगे। 40 हजार का है। भीड़—भाड़ जुटाने और मंच आदि का खरचा बीसेक हजार पड़ जाएगा। कुल मिलाकर 60 हजार हमे दीजिए हमसे सम्मान ले लीजिए।
अपने राम — तो क्या आप सम्मान बेचते हैं?
पांडे — उसमें का हरजा है? अरे! हर लेखक को कभी न कभी खुजली होती है कि उसे सम्मान मिल जाए! हम उस खुजली को मिटाने का चारज ही तो लेते हैं। लेखक—लेखिका का बढ़िया फोटो—शोटो अखबारों और मीडिया में आ जाता है। नाम हो जाता है कि फलां—फलां इनाम मिला! हमें तो बस सार्टिफिकेट, चेक का एमाउंट और फूलमाला का इंतजाम करना पड़ता है। विधायकजी से टाइम लेना पड़ता है। अब जब इतना सरदर्द हम मोल लेते हैं तो राइटर को उसका मोल देने में का जाता है?
अपने राम और सपना समझ गए कि बिदकी पांडे का सम्मान मेला चलाने का धंधा है। दोनों के चेहरे पर एक साथ कई रंग आए और कई उड़े। अंत में अपने राम ने पांडेजी को अदब के साथ नमस्कार करके फोन पटक दिया।
इस बातवीत को सुनकर सकते में आई सपना को वे गले लगाते हुए बोले — सपना! निराश मत हो! मैं खुद को इतना बुलंद करूंगा कि सम्मान देने वाले पूछेंगे कि बता तेरी रजा क्या है? बस, तुम मेरा साथ देना। मैं ईमानदारी से कोशिश करके अपने लिए बढ़िया सम्मान लेकर आउंगा और बेईमानों से सम्मान कभी नहीं खरीदूंगा!
यह सुनकर सपना बोली — मुझे तुम पर पूरा भरोसा है प्रियतम! और फिर वे दोनों एक नई सुबह के इंतजार में सो गए।
(काल्पनिक कहानी)