रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा
आमंत्रण है अधरों का
ललिता, विशाखा – हे राधिके प्रेम की पराकाष्ठा है क्या?
यदि प्रेम है , बग़ैर उनके जीना एक पल दूभर नहीं है क्या?
कैसे बताऊँ जो कह ना पाई ,प्रेम उसी को कहते हैं क्या ?
साँसों पे तेरे मै जीती हूँ चलना थमना प्रेम नहीं है क्या?
कान्हा हम कितने क़रीब हैं , आमंत्रण है काँपते अधरों का,
नाज़ुक गौरांग अर्पण मेरे अधरों का,प्रेम नहीं है क्या?
कान्हा रिझाना चाहती हूँ मैं , तुम्हारे पास आना चाहती हूँ ,
अंह रहित समर्पित काया में श्रीहरि बाँसुरी नहीं है क्या?
सुधानंद हिय में अविरल,अनंत महिमा तुम्हारी गाती हूँ
दर्शन को अधीर कान्हा भाव में बहना , भक्ति नहीं है क्या?
मर्यादित हूँ , आते पास चित्तचोर मुरली अधरों पर देती हूँ
व्रजराज-किशोर निरंतर हृदय में हरि सुमिरन नहीं है क्या?
मुरलियाँ बैरन भई , निंद्रा में माथे पर अधर तुम्हारे पाती हूँ
नन्दकिशोर प्रेममयी दृष्टि पे लरजना स्वीकृति नहीं है क्या?
अखियों में अनकही सी चाहत है ,कुछ बेचैनी सी राहत है
मुझ मूढमति की मधुर मिलन की चाहत,आकुलता नहीं है क्या?
सदा सनातन संचित भावों में अनुपम प्रेम करता है निहाल
प्राणेश्वर की नयन ज्योति से धवल पथ पूरण नहीं है क्या?
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दीपशिखा सी जलती हूँ
यह स्नेह भरा दीप हमारा प्रेम गर्व से मदमाता था
मधुरस यामिनी जीवन कामधेनु सा अमृत पान करता
यह प्रबुध्द श्रध्दामय दीप विसर्जित बना काल का ग्रास
आँसूवन तेल काजल की बाती रही अकेली दीपशिखा
जो खिलता है वो मुरझाता पर क्यूँ अचानक टूट पड़े
फिर चिरकाल काँटे से चुभते अब संयम ही जीवन है
भोग इन्द्रियों विधानविहित अब कर्मों कि कुशल मनाऊँ
नहीं संताप ह्रदय कोई , फिर क्यूँ नयनों से नीर बहाऊँ
प्रेमू कमल चरणों में दीप जला दीपशिखा सी जीती हूँ
आलौकित करती पथ परम्परा का गीत तेरे ही गाती हूँ
प्रतिपल व्याकुल उर जले ,करती शीतल जल्द सजल
द्वार खुला है आमंत्रण यमराज लेके आना मुक्ति सफल
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नारी सशक्तिकरण
नारी सशक्तिकरण का करते है प्रचार
पर कितनी हम नारी का अबतक किए उद्धार
जहाँ भूख से आत्मग्लानि ,बहती अश्रु धार में
ले चलती हूँ आप सभी को, रूप के उस बाजार में
पल पल मरती जहाँ जिंदगी घुंघुरू की झंकार में
लाज का गहना उतर गया है , तबले और सितार में
सज धज कर जो खड़ी है बिकने सोचो किसकी बहना है
किसकी माँ है,किसकी बेटी बोलो किसे क्या कहना है
कल तक थी ये कली सभ्य मानव के ही उपवन की
लगा रही है आज बैठ कर मोल स्वयं निज यौवन की
यहाँ पुत्र और पिता भी आते , आते भाई भैया भी
यही एक अबला तब बनती ,बहु ,बहन और मैया भी
जीवन के कुछ अर्थ ढूंढिए , इनकी करुण पुकार में
ले चलती हूँ आप सबों को जिस्म के उस बाजार में
मानव सबसे सभ्य ज़मी पर , हम यह दावा करते हैं
शाम ढले जा इसकी गोद में मुँह को काला करते है
लोभ काम के नींव पे ,कब तक कोई राष्ट्र टीक पाएगा
चरित्र पतन हो गया हो जिसका, क्या आगे बढ़ पाएगा
तन आखिर ये बेचने बैठी है क्यों वहाँ बाजारों में ?
“ क्यों”में उत्तर मिल जायेगा ढूँढो जरा विचारों में
चाह रही सीता की बेटी, कब निकले इस नर्क से
चाह रही छुटकारा पाने ; रूप के लोभी कर्क से
आज मदद को नहीं उठे तो ,निश्चित ये कर गुजरेगी
झूठे कामी पुरुष समाज के ,कल ये मुँह पर थूकेगी
एड्स और टी बी, बीमारी पाती ये अभिसार में
ले चलती हूँ आप सबों को जिस्म के उस बाजार में
नारी सशक्तिकरण करना हो तो ; बंद करो झूठा प्रचार
उसकी अशिक्षा दूर करो ; और जीवन में ला दो बहार
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शबनम मेहरोत्रा : एक परिचय
जन्म – सम्भ्रांत कुलीन व्यापारिक परिवार में 26 अगस्त 1949 में मध्य प्रदेश के जबलपुर नगर में द्वितीय पुत्री के रूप में ।
माता – स्व. नीना सेठ पिता – स्व. मदन मोहन सेठ पति – स्व. प्रेम नारायण मेहरोत्रा, पाँच सितारा होटल मेघदूत, पेप्सी बॉटलिंग प्लांट ( मगरवारा ) AES Exports ( उन्नाव ) , चमन धर्मशाला चौक , पूर्णा बिहारी मार्केट चौक कानपुर, बाबू बिहारीलाल धर्मशाला बिठुर, पति – एडवोकेट ( Bar Association ) शिक्षाविद ( Honorary Internationals law) क्राइस्ट चर्च कालेज कानपुर , रिलायंस एजेंसी यू पी एंड बिहार, डिस्ट्रिब्यूटर गोदरेज होलसेल एंड रिटेल कानपुर.
पुत्र – चि. प्रशांत मेहरोत्रा , चि. गौरव मेहरोत्रा
पुत्री – सौ. नूपुर कपूर
शिक्षा – सेंट नॉर्बट कॉन्वेंट गर्ल्स हाई स्कूल बी एस सी – मोहनलाल हरगोविंददास कॉलेज ऑफ़ साइंस एंड होमसाइंस ( प्रथम )
शादी- 1968 – गृहणी
प्रकाशित कृतियाँ-
प्रेम पथ ( काव्य संग्रह) भावांजलि काव्य संग्रह शबनमी गीत ( गीत संग्रह )
साझा संग्रह- स्वर्णाभ (काव्य ) साझा संग्रह- दौर ए हयात ( लघुकथा )
साझा संग्रह- कथालोक ( लघुकथा )