चैप्टर-1
और शीतल कैसी होघ् अरे! बड़े दिनों के बाद फोन किया, न खत.न खबरिया! मुझसे ऐसा क्या हो गया जो तुमने 15 साल बाद मुझे याद करने की जहमत उठाई?
मैंने ये बातें अपनी बी टेक कक्षा की सहपाठी शीतल से उसके द्वारा सुबह .सुबह किए गए फोन के जवाब में कहीं। दरअसलए शीतल से कोई डेढ़ दशक पहले मेरा बिछुड़ना हुआ था। और यह बिछुड़ना जो कुछ भी आप कह सकते हैं कि संयोगवश या दैवी विधान के कारण हुआ था।
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मुझे वह दिन याद आया जब हम सचदेवा इंजीनियरिंग काॅलेज, रतलाम में आखिरी बार मिले थे। उस दिन हमारा बी टेक का रिजल्ट आया था। हम दोनों ही फर्स्ट डिवीजन से पास हुए थे। अपनी मार्कशीट देखकर हमारी खुशी का पारावार नहीं था। शीतल को दो सब्जेक्ट में डिस्टिंकशन मिला था। और मुझे भी दो सब्जेक्ट में। इस रिजल्ट को देखकर लग रहा था कि हम दोनों की आगे की जिंदगी संवर जाएगी। इंजीनियरिंग को करियर के रूप में चुनने का सपना साकार हो जाएगा। पर सपने अगर सच होने लगें, तो वे सपने ही क्यों कहलाएं। उसी दिन ऐसा कुछ घटा कि हम दोनों को अनायास रतलाम से निकलना पड़ा और शीतल अपने माता.पिता के घर नीमच चली गई और मैं अपने पैतृक निवास सीधी में जाकर रहने लगा।
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मुझे जब उस दिन की याद आती है तो मेरी रूह कांप जाती है। उस दिन सीधी में हुए जबर्दस्त सड़क हादसे में मेरी माता और मेरे पिता बुरी तरह घायल हो गए थे। दरअसल, एक पियक्कड़ ट्रक वाले के कारण यह हादसा हुआ था। मेरी माता कलावती और पिता चंद्रभान सब्जी वगैरह लेने शाम को सब्जी मंडी मोटरसाइकिल से गए हुए थे। जब वे सब्जी लेकर घर की तरफ लौट रहे थे तो अचानक ट्रक अनियंत्रित हो गया और उसकी टक्कर से मोटरसाइकिल चकनाचूर हो गई। पिताजी उस दिन हेलमेट घर पर भूल गए थे। मां सिर के बल सड़क पर धड़ाम से गिरने वाली थीं कि तभी पास एक साइकिल वाला अपनी साइकिल पर रुई के दो गद्दे रखकर ले जाता हुआ निकला। मां सिर उन गद्दों से टकराया जिससे उन्हें कम चोट लगी पर हाथ.पैर छिलने से खून उनका भी निकलने लगा।
पिता के सिर में जबर्दस्त चोट लगने से उन पर बेहोशी छाने लगी थी। काली-काली सड़क उसके जबर्दस्त घायल होने के बाद खून के धब्बों से तर होने लगी। ट्रक वाला तो ट्रक वहीं छोड़कर फरार हो गया। दुघर्टना के बाद इकट्ठे हुए तमाशबीनों में से एक समझदार व्यक्ति ने बाकी लोगों को प्रेरित किया। मेरे मम्मी.पापा को एंबुलेंस बुलाकर जैसे-तैसे अस्पताल पहुंचाया। पापा को आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा।
मम्मी को तो डाॅक्टरों ने जनरल वार्ड में रखा था। उनकी हालत में सुधार के कारण दुर्घटना के अगले दिन ही डिस्चार्ज कर दिया था जबकि पिता की स्थिति दिन पर दिन गंभीर होती जा रही थी।
मेरा छोटा भाई नीलेश तब अपने दोस्तों के साथ महाराष्ट्र घूमने गया हुआ था। उसका इतनी जल्दी लौटना मुमकिन नहीं था।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)