आखिरी चैप्टर
यह सब कोई एक-डेढ़ साल चला। हमने पंडित की शरण ली, कई टोटके आजमाए पर उनसे कोई लाभ नहीं हुआ। अंत में हमारे कुछ रिश्तेदारों ने सलाह दी कि तुम लोग जाॅब पर जाना शुरू करो। इससे ध्यान भी बंटेगा, इनकम बढ़ेगी और काम सीखने को भी मिलेगा।
अतः मैंने इंजीनियरिंग का सपना छोड़कर एक परिचित की स्टेशनरी की दुकान में काम शुरू कर दिया। मैंने सोचा कि अगर इंजीनियरिंग की डिग्री को लेकर नौकरी मिलने का इंतजार करता रहा तो पता नहीं कब तक दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी। शीतल ने भी अपने एक परिचित के जरिए एक मिडिल स्कूल में साइंस के टीचर के रूप में नौकरी पकड़ ली। इसके बाद हम न ये नौकरियां छोड़ सके और न ही ऐसे मौके आए कि हम उन्हें छोड़ सकें।
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अब जब शीतल का फोन आया तो मुझे आश्चर्य हुआ। उसे मेरा नंबर कैसे मिला? क्योंकि उन हादसों से मानसिक तौर पर उबरने में ही हमें एक साल से अधिक समय लग गया। फिर तीन.चार साल बाद मेरी शादी मौसमी के साथ हो गई और शीतल की सुयश चोपड़ा से।
मौसमी के साथ रहते हुए मुझे पिता बनने का सौभाग्य मिला और मेरे दो बेटे हैं . अक्षत और आयुष। अक्षत दस साल का है और आयुष उससे दो साल छोटा है। शीतल और सुयश की एक बेटी है कोेई 11 साल की ! उसका नाम दामिनी रखा हैए उन दोनों ने!
अब आप सोच रहे होंगे कि मुझे यह सब कैसे पता चला? यह भी दरअसल संयोगवश हुआ। सुयश ने हाल ही में अपनी बेटी का डांस करता हुआ एक वीडियो यू.ट्यूब पर डाला था। मुझे वह वीडियो बहुत पसंद आया। मैंने कमेंट में लिख दिया. काश! यह मेरी बेटी होती! बसए इस कमेंट को देखकर सुयशका खून खौल उठा। उसने मेरा ई.मेल एड्रेस निकाला, पहले तो नरम भाषा में गोलमाल बातें करके मुझे विश्वास में ले लिया और इसके साथ ही मेरा मोबाइल नंबर उसके पास ई.मेल के जरिए पहुंच गया। बस, जैसे ही उसके पास मेरा मोबाइल नंबर पहुंचा उसने मुझे मेरी पुरानी प्रेयसी यानी शीतल से धमकी भरा फोन काॅल कराया।
उस दिन शीतल ने घबराए हुए स्वर में मुझसे कहा था -मैं शीतल बोल रही हूं तुम्हारी ग्रैजुएशन की दोस्त! तुमने वो कमेंट करके मेरे सुखी वैवाहिक जीवन में आग लगा दी है। मालूम है उस कमेंट से सुयश कितना दुखी और आक्रोश में है। वह सोच रहा है कि तुम्हें मरवा डाले! तुम्हारे नाम की सुपारी किसी ओमप्रकाश नामके पेशेवर गुंडे को दे दे! अगर तुम अपनी जान की खैर चाहते तो प्लीज उससे माफी मांग लो! उसका गुस्सा शांत करने का उपाय करो! नहीं तो पता नहीं क्या अनर्थ हो जाएगा?
उसकी ये बातें सुनकर मैं भी बुरी तरह घबरा गया। मेरे माथे पर पसीना झलक आया। मैंने अपने बेड के बगल में रखे गिलास से पानी पिया तब थोड़ी बैचेनी कम हुई।
मैंने कहा – शीतल! तुम अपने हालचाल बताओ! मुझे अच्छा लगा कि 15 साल बाद तुमने कम से कम उस कमेंट के बहाने बात की। अब सुयश को जो करना है, कर ले। मैं तो तुम्हारी आवाज सुनकर मर मिटने को तैयार हो गया हूं।
मेरा इतना कहना था कि शीतल ने रोते.रोते फोन काट लिया। मैं समझ गया कि शीतल की हालत इस समय रावण की कैद में सीता जैसी हो रही है। भले ही वह पवित्र थी, हमारा प्रेम पवित्र था पर सुयश को वह कमेंट इतना नागवार गुजरा है कि वह पूरा युद्ध छेड़ने पर उतारू हो गया है।
मैं समझ गया कि जैसे सीताजी ने लक्ष्मण रेखा के दायरे में अपने को बांध रखा है वैसा ही आचरण शीतल को करना होगा। वरना या तो मुझे अपनी जान गंवानी होगी या सुयश शीतल को बदनाम करके छोड़ेगा।
मैं इसी सोच.विचार में डूबा हुआ था कि तभी मौसमी मेरी घबराहट और बैचेनी को भांपकर जग गई। वह आंखें मतली हुई उठी और बोली- क्या हुआ मिस्टर? आप इतने घबराए हुए क्यों हैं?
मैंने अगले कमरे का दरवाजा खोलकर अपने दोनों बच्चों पर नजर डाली और फिर एक ठंडी सांस छोड़कर बोला – कुछ नहीं! एक बुरा सपना आया था! मैं उससे घबरा गया था। अब कुछ ठीक लग रहा है। तुम भी सो जाओ और मैं भी सोने की कोशिश करता हूं।
(काल्पनिक कहानी)