रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा
देवी दुर्गा के नौ नामों का वर्णन (गीत)
पापियों से तारने ये संसार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
बेटी जो मैया बन के हिमालय की तू आई
तुम शैल पुत्री इसलिए धरती पे कहाई
सुनती हो झट भक्तों की पुकार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ,,,, ,,
फिर ब्रह्मचारिणी का तेरा रूप निराला
माँ चंद्रघंटा रूप तेरा दिव्य है आला
भव से करती नैया सबकी पार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा मॉं ,,,,,
कुष्मांडा के रूप में ब्रह्मांड बनाई
संक्ध माता कार्तिकेय नाम से पाई
इस रूप में तू मोक्ष का आधार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
कात्यायनी,कालरात्रि भी है तेरा नाम
माता महागौरी सिद्धिदात्री प्रणाम
शबनम को नहीं देना विसार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
पापियों से तारने ये संसार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
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दुर्गा भजन
हुई सिंह पर सवार बांध लाल चुनरी
लाल चुनरी माँ कमाल चुनरी,,,हुई सिंह,,,
जैसे महिषा का हो यह काल चुनरी
लाल चुनरी माँ कमाल चुनरी,,,,,,,,,,
दस हाथों में लेके आयुध चली माँ
करने महिषा से घोर युद्ध चली माँ
हुई दैत्यों के खातिर ये काल चुनरी
लाल चुनरी माँ कमाल चुनरी
शुंभ को मारी निशुंभ को मारी
दैत्यों पे माता अकेली थी भारी
मॉं के रूप संग हुई विशाल चुनरी
हुई दैत्यों के खातिर ये काल चुनरी
हुई सिंह पर सवार बांध लाल चुनरी
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भजन
चौकी नही आसन को सजाओ माता रानी आयेंगी
नौ दिवस तक निज भक्तों पर अपनी दया बरसायेंगी
प्रथम दिवस तुम शैलपुत्री के
नाम से माते आओगी
द्वितीय दिवस तुम ब्रह्मचारिणी
का एक रूप दिखाओगी
तृतीय रूप में माँ चंद्रघंटा तेरा
रूप सुहावन है
चतुर्थ रूप में कुष्मांडा का रूप
अति मनभावन है
पंचम दिवस को स्कंदमाता
ये नाम तुम्हारा है
षष्ठी को कात्यायनी मैं करती
लो प्रणाम हमारा है
सप्तमी दिवस को कालरात्रि
रूप में माँ तुम आ जाना
भक्त तेरी प्रतीक्षा रत हैं अपना
रूप दिखा देना
अष्टम दिन माँ महागौरी के
रूप में माँ तुम आओगी
मुझे पता है इसी दिवस में
सामने तुम आजाओगी
नवमी को सिद्धिदात्री के
स्वरूप में आओगी
उसी रात्रि दुर्गा बनकर महिषा
वध कर पाओगी
शबनम घर आंगन लिपवाओ
माता रानी आयेंगी
नो दिवस तक निज भक्तों पर अपनी दया बरसाएगी
नहीं पता था मुझसे अपने नौ नाम लिखवाएगी
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मां दुर्गा भजन (गीत)
करने महिषासुर संहार माता दुर्गा चल पड़ी , हा,, हा दुर्गा चल पड़ी,,,
जब जब भारत की धरती पर
असुरों का प्रकोप बढ़ा
तब दुष्टों के शमन की खातिर
देवी ने अवतार लिया
लेकर हांथ गदा तलवार ,माता दुर्गा चल पड़ी,,,हा हा दुर्गा चल पड़ी,,,
मधु और केतव ब्रह्मा जी की
हत्या को तैयार हुवा
जगा के विष्णु को माता ने
ब्रह्मा पर उपकार किया
जब बढ़ा पाप का भार ,,माता दुर्गा चल पड़ी,,,हा हा दुर्गा चल पड़ी,,,
चिक्षुर, चामर,उदग्र उद्धत
महिषा का था वीर रथी
मां दुर्गा के कोप से लेकिन
उनकी सारी शक्ति जली
सुन करुणा भरी पुकार,,, माता दुर्गा चल पड़ी हा हा दुर्गा चल पड़ी,,
इस कलयुग में भी मां दुर्गा
भक्त बुलाए आती है
सच्चे भक्तो पर शबनम अपनी
दया बरसाती है
देने को सुखद बयार माता दुर्गा चल पड़ी हा हा माता दुर्गा चल पड़ी