चैप्टर-2
ये ग्रंथ मनुष्यों की स्मरण शक्ति और बुद्धि के द्वारा माने गए हैं न की श्रुति की तरह ईश्वरीय। इसीलिए श्रुति का महत्व ऊपर माना जाता है।
मुझे याद आ रहा है अपना बचपन। मेरे दादाजी रामायण, महाभारत आदि के पौराणिक पात्रों की कहानियाँ अपने ढंग से सुनाया करते थे जो हमें बहुत ही रोचक लगती थीं। उनमें जिज्ञासु तत्व भरपूर होते थे। इसीलिए ध्रुव भगत या प्रहलाद आदि की कहानियाँ आज भी स्मृति में हैं।
बचपन में ही मुझे लाल बुझक्कड़, चुडैल, परी, भूत-प्रेत, जादू-टोना, शकुन-अपशकुन, वशीकरण आदि की भी चमत्कारों से भरी कहानियाँ सुनने को मिलती थीं। बाद में तेनालीराम, बीरबल, गोपाल भांड, शेखचिल्ली, अरब की कहानियाँ आदि के किस्से भी सुनने को मिले। पंचतंत्र, हितोपदेश, कथासरित्सागर, जातक कथाएँ, ईशप की कथाएँ आदि की कहानियाँ भी सुनो और सुनने की परम्परा से ही मिली थीं। सभी कहानियों का बुनियादी लक्ष्य मनोरंजन के साथ-साथ कोई न कोई शिक्षा, सूझबूझ, साहस का भाव, सच का मार्ग और उसकी जीत आदि होता था।
मुझे याद आ रही है सत्यनारायण की कथा भी और व्रत आदि के अवसर पर व्रत करने से जुड़ी कुछ कहानियाँ भी। कह्ने का अर्थ यह है कि सुनो कहानी परम्परा के वाहक कम से कम मेरे समय में दादा-दादी या नाना-नानी, चाचा-चाची, मामा-मामी आदि रिश्ते हुआ करते थे। आज के समय में यह भूमिका, कम से कम एकल परिवारों में, बालसाहित्य की पुस्तकें निभा रही हैं या निभा सकती हैं। देश और विदेश की लोककथाओं की प्रकाशित पुस्तकों की जरूरी भूमिका भी सब जानते हैं।
आज तो सर्वविदित है कि जहाँ हमारे देश में अलग-अलग जातियों और समुदायों की अलग-अलग लोकगाथाएँ हैं उसी प्रकार विभिन्न देशों के पास भी अलग-अलग लोकगाथाओं का खजाना है। वह प्रकाशित रूप में भी उपलब्ध है।
हमारे पास राजस्थान की वृहत लोकगाथा के रूप में ‘ढोला मारू’ उपलब्ध है तो वीरगाथा के रूप में ‘आल्हा’ भी है। यह भी उल्लेखनीय है कि लोकथाओं में गद्य और पद्य का झगड़ा नहीं है। चित्र कथाएँ, भित्ति चित्र, कठपुतली, लोक नृत्य जैसे सांग, तमाशा, जात्रा, नौटंकी, कर्नाटक की खानदानी परंपरा भूत कोला, कर्नाटक और केरल का यक्षगान, आदि कितने ही रूप हैं जो लोक का ही वैभव अधिक हैं। सुनाने-सुनने की लोक परम्परा में पढ़े-लिखे कथावाचकों और पंडितों की भी भूमिका आज तक देखी जा सकती है।
देश और विदेश की लोक कथाओं तक पहुँचना आज बहुत आसान हो गया है। एक दिलचस्प अनुभव भी बताना चाहूँगा। कोरिया में एक बार एक छात्रा ने कोरियाई लोककथा के रूप में एक कहानी सुनाई।सुन कर समझ गया था कि कहानी पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानी ‘बंदर और मगरमच्छ’ है जिसके पात्र बदल कर खरगोश और ड्रैगन कर दिए गए थे। भारत से विदेश में पहुँचने के बाद, वहाँ के पाठकों को ध्यान में रखकर पात्रों को वहाँ के प्रसिद्ध पात्रों के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था। तो लोककथाओं की यात्रा इस रूप में भी हो सकती है।
इतिहास और साहित्य के विद्यार्थियों के लिए तुलनात्मक शोध के लिए भी ऐसी यात्रा प्रेरक हो सकती है।
(क्रमशः )