रचनाकार : विजय कुमार तैलंग,जयपुर
तस्वीर बोलती नहीं
सोचा तुझे बनाकर, मैं तुझसे बात कर लूँ!
तस्वीर में उतारा पर, तस्वीर बोलती नहीं!
लाने को कशिश आँखों में, हर रंग भर के देखा,
पर नजरों की वो रौशनी, क्यूँ मुझ को तौलती नहीं?
मुस्कान उन लबों पर, खींची गई लकीर थी!
तस्वीर तेरी मुझसे, क्यूँ राज खोलती नहीं?
रंगों से भर दिया था चेहरे का गुलाबीपन,
शरमाई हुई रंगत, रुख पर क्यूँ डोलती नहीं?
गिर आई जो रुखसार पर, वो जुल्फ़ भी बनाई,
तू उँगलियों से उसको, कानों पे मोड़ती नहीं!
श्वासों और धड़कनों को किस रंग से बनाऊँ?
जज्बात से क्यूँ मुझको, तस्वीर जोड़ती नहीं?
हर लम्हा इस तन्हाई में, मैं तुझसे मुखातिब हूँ!
खुदाई मगर मुझको, क्यूँ तुझसे जोड़ती नहीं?
जिद थी तुझे मैं कर दूँ, जिन्दा तेरी तहरीर में!
मैयत पे तेरी, जाने की आदत ये छोड़ती नहीं!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आवरण
सूरत नहीं बदलती, कुछ लोगों की आमरण,
बिन ढँके, हम पाते, कई चेहरों पर आवरण!
विभिन्नता पहनावों की औ’ रंगों की चमक,
देती है प्रदेशों की, अलग-अलग सी, झलक!
वाणी से दिखती है आचरण में सादगी,
वरना कहाँ अनावृत होता है आदमी?
लोभ पर परदा कहीं, ढक्कन कुकर्म पर,
चढ़ा है रहता चश्मा आदमी के धर्म पर!
पहचान पहनावे की है गफलत में डालती,
पर आदमी की नीयत, हरकतों में झाँकती!
निर्दोष भी हैं, संत, निष्कपट है आदमी!
आँखों में सत्य की लिए चलता है रौशनी!
केवल मनुष्य में ही चेतना है जहां में,
वरना ये आवरण पशु – पक्षी में कहाँ है?
परदों से है उन्मुक्त कहीं आधुनिक समाज,
संगीन की ताकत पर चल रहा कहीं रिवाज़!
नियमों का है प्रतिबंध कहीं, रिश्तों का परदा,
रहता है आदमी सदा दुनिया में बापरदा!
ओ-जोन से ढँका हुआ कुदरत ने था “प्रचण्ड”,
उसको भी रख उघाड़, आदमी बना उद्दण्ड!
शहीदों के शरीर पर जो ध्वज है लिपटता,
सबसे महान “आवरण” वो ही है बन जाता!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नारी स्वतंत्रता
नारी की स्वतंत्रता क्या जब, असुरक्षा का खतरा है?
आधुनिकता स्वीकार्य नहीं, उसपर सामाजिक पहरा है!
विधि विधान में नर नारी को एक समान अधिकार मिले!
किंतु नारी तब हुई प्रताड़ित जब जब उसके पैर खुले!
वर्जनाओं का कर प्रतिकार जब नारी ने इतिहास रचा!
देख प्रगति नारी की बहुल क्षेत्र में,पुरुष समाज चौंका!
अभी सामाजिक सोच में आधुनिक परिवर्तन आना है!
खुले मन से जब नारी के विकास को आगे लाना है!
वही नारियाँ आगे आईं, पारिवारिक प्रतिबंध हटे!
जिनको किसी नर के संरक्षण में उनके अधिकार मिले!
रूढ़िवाद का रहा दायरा, नारी प्रतिभा पर भारी!
पिंजरे में आबद्ध आधुनिक नारी की ये गति न्यारी!