रचनाकार : यशवन्त कोठारी ,जयपुर
जब जब गर्मी सताती है, मुझे कूलर की याद आती है।
कूलर यानी एक ऐसा दर्द जो मैंने अपने सीने में दफन कर रखा है। गालिब के षब्दों को तोड़ मरोड़ कर कहू तो-
कूलर ने गालिब निकम्मा कर दिया।
वरना हम भी आदमी थे काम के।।
किस्सा ये है श्रीमान् कि पिछली गर्मियों में जब थर्मामीटर का पारा चालीस डिग्री को पार कर गया तो मेरे दिमाग का पारा भी चढ़ने लगा। पत्नी और बच्चों की दिली ख्वाहिश थी कि अगर घर में कूलर आ जाए तो यहीं पर मसूरी या शिमला या नैनीताल या फिर माउंट आबू का मजा लिया जा सकता है। बात मेरी समझ में कुछ कुछ आ रही थी मैंने अपनी जिन्दगी में कभी कोई पहाड़ नहीं देखे थे, बर्फ गिरते भी नहीं देखा था सोचा यदि दो तीन हजार में घर पर ही पहाड़ का वातावरण बनाया जा सकता है तो क्या बुरा है। आम के आम गुठलियों के दाम।
तो साहब सबकी सहमति पाकर मैंने कूलर विज्ञान को बुद्धिजीवी के नजरिये से देखना षुरु किया। कूलर साहित्य छान मारा। कूलरों की सब दुकानें-फैक्ट्रियां टटोल डाली। रोज शाम को घर आकर अपने कूलर ज्ञान का बखान करने लगा। घर वाली समझ गई अब तो कूलर-साइन्स के प्रोफेसर बनकर ही रहेंगे।
सबसे पहले मैंने यह तय किया कि कूलर कैसा हो। वाटर कूलर, डेजर्ट कूलर या फिर और कोई कूलर। डेजर्ट कूलर में बाॅडी स्टील की हो लोहे की या स्टेनलेस स्टील की हो या फिर फाइबर ग्लास की। यदि फाइबर ग्लास की हो तो विद्युत और उप्मा की कुचालक हो या नहीं। यदि प्लास्टिक पिघल जाए तो कोई खतरा तो नहीं।
हर दुकानदार अपने यहां के कूलर को सर्वश्रेप्ठ बताता, दूसरी दूकान के कूलर के दस नुक्स बताता। एकाध जगह मैंने एक दुकानदार के बताये नुक्सों को दूसरे दुकानदार को बताया तो दोनों आपस में जूतम-पैजार पर उतर आए, मैं जान बचाकर भागा।
डेजर्ट कूलर के बाद बारी आई, पंखों की। कूलिंग फैन और एक्जास्ट फैन के बीच की दूरी को कम करने के लिए कोई उपाय निकालना आवश्यक था।
इधर देवीजी ने पत्र-पत्रिकाओं में कूलर सम्बन्धी लेखों की कतरनों का एक विशाल संग्रह बना लिया। अपने कूलर की सार,-संभाल, कूलर की देखभाल जैसे पचीसों लेख घर में हो गए मगर कूलर का कहीं दूर-दूर तक पता न था।
पास-पडो़स में लगभग हर घर में एक अदद कूलर जरुर था जो हमारी आखों में शूल सा चुभता था। रात्रि में गरमी में जब पड़ोस के कूलर की आवाजें आती तो मन मसोसकर रह जाते हम।
कूलर खरीदना बड़ी बात नहीं थी, मगर सही कूलर की पहचान का संकट था, जिसे मैं अपने छोटे से परिवार के साथ झेल रहा था। इधर हमारे कालेज के हरीसिंह का स्थानांतरण अन्यत्र हो गया, वे अपना कूलर बेचना चाहते थे। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा उनकी पत्नी ने मेरी पत्नी से कहा, मेरी पत्नी ने मुझसे कहा मैंने पहली बार में ही बात खारिज कर दी।
सैकिन्ड हैन्ड कूलर से तो नया पंखा ही ठीक है। बात पत्नी के समझ में आ गई। इधर गरमी में वृद्धि के साथ-साथ कूलरों की दरों मेें भी वृद्धि हो रही थी जो कूलर शुरु में दो हजार का था वह अब पच्चीस सौ का हो गया था। खस,पम्प आदि के भाव भी बढ़ रहे थे। आधी से ज्यादा गरमियां बीत चुकी थीं और घर में कूलर नहीं आया।
इधर-उधर से रोज ताने सुन-सुनकर मैं परेशान था। इसी बीच एक रोज अखबार में पढ़ा कि चोरों ने कूलर में बेहोशी की दवा मिलाकर एक घर से सब सामान चुरा लिया। मैं यह समाचार पढ़कर स्तब्ध रह गया। कूलर खरीदने का विचार मैं त्यागना चाहता था, मगर ऐसा होना संभव नहीं लग रहा था।
बच्चे अब अक्सर मजाक करते। पापा कूलर पर एक किताब लिखेंगे और उस पुस्तक की रायल्टी से कूलर लेंगे। मैं क्या करता चुप रहता। पत्नी मायके जाने की धमकी देती। मगर जाती नहीं। खूब सोच विचार कर मैंने तय किया कि कूलर के बजाय खस की टाटी खरीद ली जाए, मगर खस की टाटी का भाव सुनकर पांव तले की जमीन खिसक गई। फिर वापस कूलर पर विचार विमर्श शुरु किया।
एक लोहे की चद्दर वाला एक्जास्ट फैन वाला कूलर घर ले आया इसमें पानी भरा, चलाया। पानी में इत्र डाला। कमरे में खुषबू ही खुषबू हो गई। मगर यह क्या पूरा परिवार लगातार छींकने लग गया। सब सर्दी, जुकाम से पीड़ित हो गए। बूढ़ी दादी के गठिया का दर्द बढ़ गया। डाक्टर ने कूलर से दूर रहने की सलाह दी।
कूलरों का एक नुकसान ये भी हुआ कि अब जो मेहमान दोपहर में घर आ जाता वो आराम से कूलर की ठण्डी हवा में बैठकर घन्टों जाने का नाम नहीं लेता, हम लोग उन मेहमानों की आवभगत में लगे जाते। कूलर ना हुआ हमारी जान की आफत हो गया। बच्चे अलग झगड़ते कि कूलर वाली खिड़की के पास कौन सोयेगा। एक दिन तो हद ही हो गई। हमारे छोटे साहब कूलर में ही बैठने की जिद कर बैठे, बड़ी मुष्किल से उन्हें समझाया। कभी कदा उसमें पानी भरते समय करन्ट का खतरा भी रहने लगा। मैंने कूलर को बेचने का निश्चय कर लिया।
समाप्त
(काल्पनिक रचना )