चैप्टर-1
बीकानेर की वह सुबह कुछ अलग तो नहीं थी पर कुछ हट के जरूर थीं। उस दिन सूरज हर रोज की तरह पूरब से उगा। मुर्गों ने रोज की तरह ही बांग दी। यू-टयूब पर कई लोगों ने पधारो म्हारे देस लोकगीत सुना और चंद धार्मिक जनों ने सुबह उठ कर रोज की ही तरह पूजा-पाठ किया या धार्मिक भजन सुने। इन सबके बीच यहां के दो घरों में माहौल कुछ अलग था। ये घर थे – प्रांजल और परिणिति के। प्रांजल की उमर होगी कोई 19 साल जबकि परिणिति उससे कोई एक साल छोटी। दोनो टीनएजर। दोनों ही के अलग मिजाज। अलग ही तेवर। पर इन दोनों में कुछ बातें काॅमन थीं – वह बात थी दोस्ती। दोनों ही शासकीय काॅलेज में फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट थे। दोनों ही बाॅलीवुड स्टार कैटरीना और रितिक के जबरा फैन थे। जैसे ही उन्हें मालूम चला कि जयपुर में इन दोनों की आगामी फिल्म धूम-4 की शूटिंग होने वाली है, इन्होंने खयाली पुलाव पकाने शुरू कर दिए।
उस अलग सी सुबह से एक रात पहले की बात है। रात 10 बजे के बाद प्रांजल और परिणिति दोनों ही अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। पर रितिक और कैटरीना की शूटिंग की बात ने उनकी नींदें उड़ा दी थीं। बस, फिर क्या था? दोनों ने इस बारे में मैसेजों का आदान-प्रदान करके चैटिंग शुरू कर दी।
प्रांजल – हाय! कैसी हो? मेरी कैटरीना।
परिणिति – हैलो! मेरे रितिक! यहां सब ठीक है।
प्रांजल – तो फिर जयपुर चलें?
परिणिति – हां, मेरी भी दिली इच्छा है।
प्रांजल – तुम्हारे घर वाले परमीशन देंगे क्या?
परिणिति – मेरी तो हां है। घरवालों की घरवाले जाने। ऐसे मौके बार-बार थोड़े ही आते हैं।
प्रांजल – डन!
परिणिति – अब मैं बड़ी हो गई हूं। अपने डिसीजन खुद कर सकती हूं। तुम तो राजी हो न?
प्रांजल – तुम्हारी हिम्मत गजब की है। मेरी भी हां है।
परिणिति – हां, यार! इसी बहाने कुछ एडवेंचर भी हो जाएगा!
प्रांजल – ये घरवाले न! बहुत परेशान करते हैं। दुनिया भर के कानून झाड़ते हैं।
परिणिति – हां मैं भी तंग आ गई हूं।
प्रांजल – तो फिर क्या सोचा?
परिणिति – क्या सोचना? धूमेंगे फिरेंगे ऐश करेंगे और क्या?
प्रांजल – ओके। कुछ रुपये-पैसे हैं?
परिणिति – मेरे पापा ने मेरे पिछले महीने बर्थ डे पर दो हजार रुपये दिए थे।
प्रांजल – ओके। मैंने भी अपना लैपटाॅप गिरवी रखकर एक दोस्त से पांच हजार रुपये जुगाड़ लिए हैं। पापा से कह दिया है कि दोस्त को काम था, अतः वह एक सप्ताह के लिए मेरा लैपटाॅप ले गया है।
परिणिति – तो मिशन जयपुर! ओके?
प्रांजल – ओके ओके!
इसके बाद जब घर के सारे सदस्य सो गए तो दोनों चुपके से अपने-अपने कमरों से निकल कर गोस्वामी चौक तक पहुंचे और वहां से जयपुर के लिए बस में बैठकर रवाना हो चले। उनका लक्ष्य था सुबह 10 बजे से पहले जयपुर पहुंचना ताकि वहां 11 बजे से शुरू होने वाली शूटिंग देख सकें।
इधर, जब परिणिति और प्रांजल के घर वालों ने उस सुबह दोनों को अपने-अपने कमरों में नहीं पाया तो कोहराम मच गया। प्रांजल के पापा अमित त्रिवेदी कभी ऊपर जाते कभी नीचे। कभी आगे के कमरे में जाकर देखते। कभी पीछे के। अमित के साथ-साथ उनकी सहधर्मिणी कनकलता भी बदहवास होकर अपने जिगर के टुकड़े को आवाज देकर ढूंढने में लगी रहीं। पर जवाब नहीं मिलना था सो नहीं मिला।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी )