रचनाकार : विजय कुमार तैलंग, जयपुर
मुस्कुराती हुई फोटो हसीन लगती है
छवि कर्मों से नहीं, कैमरे से बनती है!
मुस्कुराती हुई फोटो हसीन लगती है!
हर एक्ट कैमरे में कैद हो जाता है!
बात की बात में वीडियो भी बन जाता है!
आँखों की झुर्रियाँ छुपाते एक्टर भी हैं!
काले चश्मे में नजर आते एक्टर भी हैं!
कभी जो अपनों को न पूछा करते गलती से,
वे महफ़िलों में मिलते कैरेक्टर भी हैं!
शर्ट में सल न पड़े, बालों का रंग काला हो!
कैमरा कान्शीयस ऐसे भी बन्दे होते हैं!
किन्हीं की सूरतें भली और सुन्दर होती हैं,
किंतु मेक अप के उनपर बड़े फन्दे होते हैं!
इधर मेक-अप कंपनियों का भी जवाब नहीं,
प्रौढ़ाओं को वे हीरोइन बना देते हैं!
फोटोग्राफेर्स का धन्धा फिर भी मन्दा नहीं,
प्री-वेडिंग शूट में वे अच्छा कमा लेते हैं!
जो बन्दे उम्र के पतझड़ न छिपा पाते हैं,
वो सोशल मीडिया पे टैलेंट के बल रहते हैं!
छवि निर्मल हो, काइन्ड भी हो और सुन्दर हो,
नेता इसके लिए खर्च बहुत करते हैं!
मीडिया का कमाल इस विषय में कम तो नहीं,
लोगों को तड़का लगा टेस्ट बना देती है!
बात की बात में जो ना जँचा वो बदतर है,
प्रभावशाली को वो बेस्ट बना देती है!
आज के युग में, शो का ही पैशन होता है!
सोशल सर्विसेज का फोटो सैशन होता है!
भले ही काम करें रत्ती भर,
काम करने का “बड़ा” मैन्शन होता है!
आज एक आवाज करोड़ों में पहुँच जाती है,
व्हाट्स-एप यूनिवर्सिटी बहुत काम आती है!
कौन असली है, कौन नकली है?
दुनिया ये भेद, कभी भी न समझ पाती है!
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चाह गुलाब की रखते हो तो
चाह गुलाब की रखते हो तो काँटों से जूझो पहले!
लक्ष्य-निर्धारण से पूर्व, स्व-क्षमता से पूछो पहले!
जितनी ऊँची चाहत है, संघर्ष भी उतना दुष्कर है,
दुर्गम राह है कितनी सामने, ये पहेली बूझो पहले?
उच्च लक्ष्य निर्धारण कोई बात अनोखी होती नहीं!
लगन हो सच्ची, साहस, श्रम से, मंजिल दूर होती नहीं!
कर्मठ हो इन्सान तो लिखा भाग्य भी पलट जाता है!
जो दुर्लभ लगता है, वो लक्ष्य भी तब मिल जाता है!
लक्ष्य प्राप्ति की हठ हो तो बहता लहू भी पानी है!
हार से नहीं है घबराता, जब पाने की जिद ठानी है!
काँटों की परवाह न करते, कर्म के योगी किंचित भी!
दुर्गम राहों पर चल देते, क्षणिक न होते विचलित भी!
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हर दिन जो मिला, वरदान मिला!
जीवन के बदलते रंगों के संग आप भी घुल मिल जाइये!
नाकारा है ये वर्तमान इस बात को न दोराइये!
सबको मिलता नहीं मनचाहा जीवन जो मिला बिताइये!
अतीत तो हाथ आयेगा नहीं, उसको कब तक चिपकाइये?
मरहम जो वक्त का सहज सुलभ, वो घावों पर लगाइये!
जीवन इक नाम है जीने का, हँस कर ही इसे बिताइये!
क्या लालच लोभ में पड़ना है? लेकर के वहाँ क्या जाइये?
सब रखा यहाँ रह जायेगा, जो मिला भोग कर जाइये!
जो पैदा हुआ वो देखेगा, खुद भाग्य न उसका बनाइये!
सबकी खुशियों में शामिल हो, खुद हँसिये और हँसाइये!
जीवन का अर्थ खुश रहने में, इसे रो रोकर न गँवाइये!
क्या होगा? आपके वश में नहीं, व्यर्थ न सर को खपाइये!
हर दिन जो मिला, वरदान मिला, इसका स्वागत कर जाइये!
कितनी श्वासें जीवन में बचीं, उस गिनती पर न जाइये!
जो साथ मिला, किस्मत से मिला, उसके संग खूब निभाइये!
ये भूत भविष्य नहीं हैं सगे, आप वर्तमान सजाइये!
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…और कहीं भटक मत जाना!
मेरे से यदि मिलना है तो पूर्वाग्रह को छोड़ के आना!
स्वार्थ, द्वेष और नफरत का, एक अंश भी साथ न लाना!
दिनकर से किरणों का पुञ्ज तो तुम न ला पाओगे,
श्रद्धा, प्रेम का इक दीपक हाथों में थाम के आना!
मेरे से यदि मिलना है तो अपने “मैं ” को छोड़ के आना!
मेरे को यदि पाना है तो अपने अन्तस में ही पाना!
निर्मल मन, निश्छल आत्मा से मेरा अभिनन्दन कर जाना!
आँखें मूँद कर गहन भाव से मेरे प्रति समर्पित होना!
मुझमें जब तुम स्वयं को पाओ, समझो मैं ही तुममें आया!
मेरा इक अंश आत्मा का मैं तुम सब में छोड़ के आया!
मेरे को यदि पाना है तो उसी अंश की बात मानना!
आत्मा में ही परमात्मा है, और कहीं भटक मत जाना!
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दिलजली कविता! (हास्य-व्यंग्य)
मौत से मिलना भी कोई चाहता है क्या?
जो जिन्दगी न चाहे ऐसा कौन दिलजला?
दस्तक दी इतनी रात गए मेरे द्वार पर!
पूछने पर बोली, “मैं ही खड़ी हूँ द्वार पर! “
कौन हो तुम? मैंने पूछा अचकचा कर!
बोली मैं हूँ मौत, आऊँ क्या, शोर मचाकर?
मैं हँसकर बोला जो भी हो तुम अभी लौट जाओ!
मुझको अभी फुर्सत नहीं तुम फिर कभी आओ!
मैं मौत हूँ, समझा है क्या? मैं रुक के आऊँगी?
इसी समय तुझे मैं साथ लेकर जाऊँगी!
मैंने कहा, कवि हूँ, जरा कविता तो लिखने दे!
या कोई मेरी दिलजली कविता ही तू सुन ले!
वो बोली तू न मुझको ऐसी बातों में उलझा!
दरवाजा खोल और मेरे पास चला आ!
मैं बोला तमक कर मैं मौत से नहीं डरता!
तू भला क्या मारेगी, मैं तो रोज ही मरता!
गर इतनी निडर है तो हमारी भी कुछ सुन ले!
मेरी कोई दिलजली कविता ही तू सुन ले!
मौत बोली चल तू सुना ले अपनी कविता!
इसके बाद न मिलेगा, कोई भी मौका!
जब मैंने कविता खत्म की दस्तक नहीं हुई!
जब द्वार खोला मौत दिखाई नहीं पड़ी!