आखिरी चैप्टर
साहिल — यह काम करने से पहले कम से कम मुझसे पूछ लिया तो होता! मैं मानता हूं कि उन गहनों पर तुम्हारा पूरा हक है। पर एक कुपात्र के हाथ में उन्हें बिना सोचे-समझे तुम्हें नहीं सौंपना चाहिए था। आपस में चर्चा कर लेनी चाहिए थी।
सुनिधि कान पकड़ते हुए बोली — सॉरी डियर! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। पर मैं भी क्या करती? मेरे भाई ने अपनी हालत का ऐसा रोना रोया कि मैं जज्बातों में बह गई। मुझे यह काम करने से पहले आपसे चर्चा कर लेनी चाहिए थी।
साहिल ने देखा कि सुनिधि को बहुत पछतावा हो रहा है तो वह थोड़ा नरम पड़ा। उसने अपने स्वर में कोमलता लाते हुए कहा — सुनिधि! याद है न वह न्यूज स्टोरी! कैसे रजनी अपना मंगलसूत्र बचाने के लिए बदमाश से भिड़ गई थी? मुझे लगा कि तुमने इस स्टोरी से कुछ सीखा होगा पर तुम तो बिलकुल बुद्धू निकली। अपना हित —अहित नहीं सोचा। मेरे बारे में, पिताजी के बारे में, अपने बच्चों के बारे में नहीं सोचा। बस अपने दिल की सुनी और भाई के हाथ में अपना स्त्री धन दे दिया। वह अभी बैचलर है। वह क्या समझेगा कि ये गहने शादी की रात में अग्नि में तपते हुए सात फेरों के लेने के बाद बतौर आशीर्वाद विवाहित जोड़े को मिलते हैं। तुम्हें भी यह ध्यान रखना चाहिए था। मैं तो जब तक घोर इमर्जेसी न होती तब तक तुम्हारे गहनों को कभी हाथ लगाता तक नहीं।
सुनिधि — आई एम वैरी—वैरी सॉरी डियर! अब से ऐसी गलती कभी नहीं होगी। बस मेरी चाहत तो यही है कि वे गहने मुझे कैसे भी वापस मिल जाएं।
साहिल — ठीक है। पर आगे से ऐसी गलती कभी मत करना। मैं कुछ सोचता हूं कि तुम्हें तुम्हारे गहने कैसे वापस मिल सकते हैं।
करीब आधा घंटा दिमाग लगाने के बाद साहिल ने कहा — सुनिधि! ऐसा करना कि उस धोखेबाज किशोर की अंगूठी की रस्म में तुम मोहित के साथ चली जाना। मैं यहां मोहिनी के साथ रुक जाउंगा। मुझे उसकी शक्ल देखने की इच्छा तक नहीं है। कोटा में हफ्ते—दस दिन गुजार कर आ जाना। तब तब मैं यह नौकरी छोड़कर प्रोविडेंट फंड का पैसा निकाल लूंगा और अपने लिए दूसरी नौकरी भी तलाश लूंगा।
सुनिधि — पर इसमें तो अपना ही नुकसान होगा। पीएफ का पैसा निकल जाएगा और उस पर मिल रहे ब्याज से भी हाथ धोना पड़ेगा।
साहिल उसकी बात काटते हुए बोला — पर मुझे कोई लोन नहीं करना पड़ेगा। यदि थोड़ी—बहुत इनकम टैक्स की लायबिलटी आई तो मैं भुगत लूंगा। नई नौकरी में हो सकता है कि मधुर इंटरप्राइजेस से ज्यादा सैलरी मिल जाए। इससे अपना घाटा पूरा हो जाएगा और फिर पीएफ के पैसे से किशोर का लोन चुकाने से तुम्हारे गहने वापस मिल जाएंगे। जब तुम्हारे पापा या किशोर के पास बतौर लोन चुकाए गए पैसों के बराबर रकम इकट्ठी हो जाए तो वे मुझे मेरे पैसे वापस कर देंगे। इससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। लेकिन अपने पापा को यह साफ—साफ कह देना कि यह मेरी तरफ से या हम सबकी तरफ से किशोर के लिए आखिरी सहायता होगी। इसके बाद हम कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे।
सुनिधि ने कोटा पहुंचकर किशोर की अंगूठी की रस्म में भाग लिया। फिर जब कार्यक्रम निपट गया तो उसके दो—तीन दिन बाद अपने पापा के सामने साहिल द्वारा तैयार किया प्लान रखा। यह प्लान सुनकर किशोर और उसके पापा को लगा कि मानो डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। पापा बोले — ठीक है बेटा! इस प्लान से किशोर की मदद भी हो जाएगी और वह रास्ते पर भी आ जाएगा।
किशोर भी प्लान सुनकर पछतावे भरे स्वर में बोला — मैंने सोचा नहीं था कि तुमलोग मेरी इस तरह से मदद करोगे। मैं तुम्हारा और खासकर जीजाजी का अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा जो कि मेरे लिए इतना त्याग कर रहे हैं। मैं भी अपनी बुरी आदतें त्याग दूंगा।
यह सुनकर सुनिधि के परिवारजनों के साथ लीना भी खुश हो गई। उसने कहा — दीदी! मैनी—मैनी थैंक्यू! वैसे आप इन्हें शादी के पहले नहीं सुधारती तो मैं तो इन्हें शादी के बाद सुधार ही देती। यह सुनकर सब हंसने लगे।
साहिल ने अपने प्लान पर अमल करके किशोर को कर्ज मुक्त कराके उसे एक छोटी सी दुकान खुलवा दी। सुनिधि के गिरवी रखे गहने छुड़वा लिए और दोनों परिवारों की तमाम मुश्किलें हल कर दीं। किशोर ने भी अपने आप को बदल लिया और उसके पापा ने कर्ज चुकाने के लिए साहिल द्वारा निकाली गई रकम डेढ़ साल बाद सूद समेत वापस करके कर्ज से छुटकारा पा लिया।
समाप्त
(काल्पनिक रचना)