रचनाकार : सुनीता मिश्रा , देहरादून (उत्तराखंड)
मैं प्रीत नगर की वासी हूं
तुम ढूंढते आ जाना प्रिये !
जो हो तुम में चरित्र जरा सा ,
तभी हाथ बढ़ाना प्रिये !
मैं घाट-घाट की प्यासी नहीं
मैं सागर सी गहरी हूं प्रिये !
मैं खुशबू रात रानी की हूं
मदहोशी में भी हूं सती प्रिये !
मैं प्रीत नगर की वासी हूं
तुम ढूंढते आ जाना प्रिये !
सामंजस्य का उदाहरण
मैं ही हूं कोई और नहीं ,
जन्म घर को छोड़ आतीं हूं ,
स्वीकार लेती हूं दुनिया नई ।
हर कष्ट झेल मैं लेती हूं ,
पर आत्म सम्मान न त्याग पाती
मैं अड़ जाती हू अक्सर वहां,
जहा इज्जत न मिल पाती ।
मै प्रीत नगर की वासी हूं
तुम ढूंढते आ जाना प्रिये ।
और कितना त्याग करूं मैं ?
जब पिता का उपनाम त्याग दिया
तुम्हें पाने की चाह में हमने
जननी से दूरी स्वीकार किया ।
हर दिन गिनाते रहते हो
अपना दिया दिखाते हो
मेरा दिया भी याद करो ,
जिसपे अपने पुरुषार्थ का
प्रबल बखान तुम करते हो ।
मैं प्रीत नगर की वासी हूं
तुम ढूंढते आ जाना प्रिये !
मैं लक्ष्मी हूं फिर भी तुम्हें,
सामर्थ्य सदैव प्रदान किया
तुम्हें प्रबलता दे दिया मैंने
खुद को निर्बल बना लिया ।
शक्ति हूं तो सामर्थ्यवान हूं
चाहूं तो जग पर राज करूं
ममत्व त्याग दौड़ चलूं तो
प्रबल बन अव्वल मैं करूं ।।
मैं प्रीत नगर की वासी हू
तुम ढूंढते आ जाना प्रिये ! ।।
रचनाकार का परिचय
नमस्कार I मेरा नाम सुनीता मिश्रा हैं। मैं एक गृहणी हूं, किंतु मैं रुचि वश स्त्री मुद्दों को उठाती हुई कहानियां लिखती हूं
तथा साथ में अन्य हिंदी रचनाएं अपने सामर्थ्य के अनुसार भी लिखती रहती हूं । मैं साधारण सी स्त्री हूं, लिखती भी साधारण ही हू,
किंतु साहित्य प्रेमियों का आभार मानती हूं कि उन्हें मेरी रचनाएं पसंद आती है। धन्यवाद!