रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
सूर्योदय ( कविता)
जो स्थिर है उसका उदय और कैसे
Table Of Content
होगा अस्त
ये पृथ्वी ही उनके चक्कर में रहती
अति व्यस्त
पृथ्वी के घूर्णन से हम सब को सत्य
ये लगती बात
अस्ताचल उदयाचल से ही होता है
दिन रात
तर्क वितर्क में न भी जाए तब भी सिद्ध
ये बात
कर्म से लक्ष्य से की सिद्धि मिलती कर्म
करो दिन रात
अस्ताचल यह सूर्य सिखाता वृद्ध को दो
सम्मान
यही सूर्य उदयाचल काल में देगा सुखद
परिणाम
सूर्योदय सूर्यास्त में जीवन जीने का है
दर्शन
शबनम ये फलसफा वो समझा जिसने
किया मनन
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“ज्ञान है तो अभिमान नहीं”( कविता)
अंग प्रदर्शन जिससे होता भारत का परिधान नही
कौन दिशा में निकल पड़े है इसका कोई भान नहीं
नकल कोई भी यत्न करो असल हो सकता है नहीं
सम्प्रति आनंद मिलेगा बाद का कोई अनुमान नही
भेड़चाल में मत उलझो अपना विवेक उपयोग करो
तब आने वाले दिन में होगा कभी भी परेशान नहीं
बड़े मूर्ख ही ज्यादा खुद का ज्ञान प्रदर्शन करते है
ज्ञानी कहाँ कभी करते ज्ञान काकुछअभिमान नहीं
जो दंभी है शबनम तेरी बातों को कर देंगे खारिज
सच से नजर चुराने वाले को होता कुछ ज्ञान नहीं
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अंदर अंदर खुश हो निखरती (गीत)
अंदर अंदर खुश हो निखरती
होता विलंब तो आस बिखरती
कुछ भी नही अधूरा करना
वादा करो तो पूरा करना
रह जाता है वरना मन परती
होता विलंब तो आस बिखरती
आशाओं में कैद है ये मन
उस अनुरूप चलेगा ये तन
दुख में आस तन कैसे निखरती
होता विलंब तो आस बिखरती
वादा करके दूर हो गए तुम
क्यों इतने मजबूर हो गए तुम
शबनम तो अब खुद से डरती
होता विलंब तो आस बिखरती
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खामोश जुबॉं (गजल)
खामोश जुबॉं और दिल बेकरार है
बोलूँ किस तरह तुमसे ही प्यार है
अब आपके हाथों में चैनों करार है
मजबूर दिल आप पर ही निसार है
बीती ये रात और सुबह कब हो गई
आपकी ऑंखों में मगर अब खुमार है
मुस्कुराइए आप मेरे सामने बैठ कर
चेहरे पे देखता हूँ कितना निखार है
शबनम है दिल बात जो बोल दीजिए
किस बात को कहने में अब इंतजार है
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आप से तो आज (गजल)
आप से तो आज हरेक बात हो गई
देखिए ना सुबह से अब रात हो गई
दिल तोड़ कर हमारा अहसान कर दिया
ये दर्द उमर भर की एक सौगात हो गई
शायद अकेले रोते तो आँखें ही भीगती
दुनिया रुलाने वास्ते बरसात हो गई
हम सोचते थे प्यार के दुश्मन नहीं ज्यादा
दुश्मन मगर तो पूरी कायनात हो गई
न चाहते हुए भी लो शबनम इस मोड़ पर
अब चलते चलते आज तेरे साथ हो गई