रचनाकार: उत्तम कुमार तिवारी “उत्तम “, लखनऊ
माँ
मेरी माँ थी कितनी भोली
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कितनी सुन्दर और संजोली
जब भी मै रोता था
अपने आँचल से मुझको ढक लेती ।
मेरी माँ थी कितनी भोली ।।
रोज़ सुबेरे उठ कर वो
सबसे पहले मेरा मुँह धोती
द्दुधु भैया छोटा भैया
कह कह कर मुझे खिलाती ।
मेरी माँ थी कितनी भोली ।।
मुझको छीक बुखार जो आये
तो राई लोंन उतारा करती थी
मेरे लल्ला को न नज़र लगे
अपने आचरा से छुपाये रहती थी ।
मेरी माँ थी कितनी भोली ।।
दिन भर अपनी कनिया मे लेकर
घर का काम किया वो करती थी
डाल के झूला अपनी धोती का
उस पर मुझे झूलती थी ।
मेरी माँ थी कितनी भोली ।।
आज वही माँ मुझे छोड़ कर
न जाने क्यू वो चली गई
अब अम्मा मै किसे कहूँगा
ये भी नही बता गई ।।
मेरी माँ थी कितनी भोली ।।
लोरी
निंदिया रानी आना हौले हौले आना
दूध कटोरा भर के तुम अपने घर से लाना
मेरा बाबू भूखा है उसको तुम पिलाना
निंदिया रानी आना हौले हौले आना ।।
मेरा बाबू लेटा है उसको लोरी तुम सुनाना
चुपके चुपके आना आँखों मे भर जाना
मेरा बाबू राज दुलारा उसको तुम सुलाना
निंदिया रानी आना हौले हौले आना ।।
निंदिया रानी आना चंदा के संग आना
साथ चांदनी संग तारो को भी लाना
चुपके चुपके आना बाबू को सुलाना
निंदिया रानी आना हौले हौले आना ।।
नीद भरे पंख लिए तुम धीरे से आ जाना
मेरा बाबू अब सोने चला धीरे से दुलराना
प्यारी प्यारी मीठी मीठी लोरी तुम सुनाना
निंदियारानी आना हौले हौले आना ।।
मीठे मीठे सपनो को बाबू को दिखाना
परियो के भेष मे चुपके से आना
चाँद के पालने मे बाबू को झूलाना
निंदिया रानी आना हौले हौले आना ।।
हे माँ
हे मातु सदा तुम वंदनीय ।
मै कैसे तुम्हरा यश गाउ ।।
जब दिया जन्म हमको तुमने ।
मै अम्मा अम्मा चिल्लाऊ ।।
रोया था धरती पर आ कर ।
तब तूने हमको दुलराया ।।
अपना आँचल देकर अम्मा ।
तूने अपना स्तन पान कराया ।।
करि कै छठी और बरहव मेरा ।
अम्मा तूने जग दिखलाया ।।
दे कर गोद पिता की हमको ।
तूने मेरा मान बढ़ाया ।।
रिस्ते नाते दे कर हमको ।
तूने हमको प्यार दिलाया ।।
पकड़ पकड़ कर हाथ मेरा ।
अम्मा तूने चलना सिखलाया ।।
अम्मा ये उपकार तेरा मै ।
जीवन भर नहीं भुला पाया ।।
हे मातु सदा तुम वंदनीय ।
मै कैसे तुम्हरा कैसे यश गाऊ ।।
हे मातु सदा तुम वंदनीय ।
मै कैसे तुम्हरा यश गाऊ ।।
मैं चित्रकार हूँ
मैं चित्रकार हूँ चित्र बनता हूँ
कुछ हसते कुछ रोते कुछ गाते
कुछ ऐसे चित्र बनता हूँ
जिसमे भाव बहुत पर शब्द नही
लेकिन चित्र बहुत कुछ कहते है ।।
माँ की ममता का चित्र बनाया
तो आँखो से आशू निकल पड़े
ये माँ ही है ऐसी दुनियाँ मे
जिसके बलबूते हम खड़े हुए ।।
पिता की मेहनत का चित्र बनता था
तो हाथ मेरे कापने लगे थे
किन रंगो से रंग दूँ उसको
पिता की मेहनत के आगे
सारे रंग मुझको फीके लगते थे ।।
कुछ चित्र बनाये थे ऐसे
जिसमे पिया के रंग मे वो डूबी थी
होंठ गुलाबी हाथ मे मेंहदी
बाहो मे उसके लेटी थी ।।
ये चित्र कला भी कविता जैसी
चित्र भाव से कहता है
चित्रकार भी अपनी कविता
चित्रों के द्वारा कहता है ।।
Shivika means palanquin and Jharokha means window. We have prepared this website with the aim of being a carrier of good thoughts and giving a glimpse of a positive life.