एक छोटा कॉर्पोरेट समूह था — बेनीवाल इंटरप्राइजेस। पांच साल पहले उसका करीब 30 करोड़ रुपये सालाना का टर्नओवर था। शुरू-शुरू में वहां कर्मचारियों या अफसरों के आने-जाने का कोई समय तय नहीं था। इन्क्रीमेंट भी अच्छा हो जाता था। धीरे-धीरे वह समूह थोड़ा बड़ा हुआ ओर टर्नओवर 50 करोड़ रुपये से आगे निकल गया। इसके साथ ही कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ने लगी। यह बात अलग है कि कर्मचारियों की संख्या बढ़ने से कंपनी के प्रॉफिट में कुछ खास इजाफा नहीं हुआ।
इस स्थिति को देखकर बॉस नितिन बेनीवाल ने हुक्म फटकार दिया – सबको समय पर आना है। छुट्टियां कम से कम लेना है। इस आदेश का उल्लंघन करनेवाले कर्मचारी के नाम के साथ आगे की कार्रवाई के लिए रेड मार्क लगा दिया जाएगा।
इस आदेश से कुछ लोग तो बेहद डर गए और अपनी आदतें बदलने में लग गए। नौकरी बचाने के चक्कर में अच्छे-खासे लेट लतीफ भी टाइम के पाबंद हो गए। लोग समय से आने और जाने लगे।
लोगों ने सोचा कि शायद इस बार इन्क्रीमेंट तगड़ा होगा इसलिए बॉस का हुक्म मानने में क्या हर्ज है। वे जानबूझकर बॉस की नजरों में चढ़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय आफिस में ही बिताने लगे। हालांकि वे समय से आने लग गए पर काम उतना ही करते जितना कि पहले कर रहे थे।
इसके साथ ही दफ्तर में एक से बढ़कर एक अफवाहें उड़ने लगीं। कौन कितनी देर वाशरूम में जाता है, कौन अपनी कुर्सी से कितनी देर चिपककर बैठता है, कौन कंप्यूटर के सामने निरंतर टकटकी लगाकर आंखें फोड़ता रहता है, कौन कितनी देर लंच करता है, सबका टाइम नोट किया जा रहा है।
खैर। जैसे-तैसे दो महीने बीते। इन्क्रीमेंट का समय आया। कुछ लोग तो आत्मविश्वास से बहुत लबरेज दिखने लगे कि वे तो बॉस के पक्के हुक्मबरदार हैं, उनका वेतन तो अच्छा बढ़ेगा। पर जब जून की सैलरी आई तो सबके अरमान धराशायी हो गए। सभी का इन्क्रीमेंट शून्य हुआ था। यानी सैलरी में एक रुपये का भी इजाफा नहीं हुआ था।
जब इन्क्रीमेंट के बाद हुई जनरल मीटिंग में कुछ लोगों ने बॉस से इस बारे में हिम्मत दिखाते हुए सवाल किया, तो बॉस बोले- ‘आप लोगों ने उतना ही काम किया जितना कि मैंने कहा था। उससे एक धेले से भी अधिक का काम नहीं किया। अब आप ही बताएं जब काम ही नहीं बढ़ा तो इन्क्रीमेंट किस बात का?’
बॉस के इस जवाब से कुछ कर्मचारी बिफर उठे और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। जबकि कुछ ने सोचा कि वे न केवल आफिस टाइम पर आएंगे बल्कि अपना अधिक से अधिक आउटपुट भी देंगे।
इन कर्मवारियों की लगनशीलता के कारण कंपनी के काम ने गति पकड़ ली और एनुअल बैलेंस शीट में कंपनी का प्राफिट अच्छा खासा दिखने लगा। तब बॉस ने भी उदारता दिखाते हुए ऐसे लगनशील कर्मचारियों को न केवल आउट आफ टर्न प्रमोशन दिया बल्कि उनका इन्क्रीमेंट भी अच्छा खासा किया। बॉस की इस उदारता को सबलोग सराहने लगे।
मोरल आफ द स्टोरी : कंपनी के हित में कभी—कभी ‘कैरट एंड स्टिक’ पॉलिसी अपनानी पड़ती है। इससे खराब कर्मचारियों से छुटकारा मिलता है और अच्छे व लगनशील कर्मवारियों को प्रोत्साहन।
(काल्पनिक कहानी)