रचनाकार : समीर गांगुली, मुंबई
अपनी हिन्दी बाल साहित्य चर्चा के इस अंक में मैं अपनी दो पुस्तकों के बारे में आपको जानकारी दूंगा. लेकिन उससे पहले एक बात कहना चाहूंगा कि हिन्दी बाल साहित्य से बाल पाठकों की बेरुखी का एक कारण है हिन्दी में बाल साहित्य की रोचक, विविधतापूर्ण और बच्चों को पहली ही नजर में आकर्षित करने वाली पुस्तकों का न होना. मैं यह नहीं कह रहा कि किताबें नहीं है. बल्कि किताबें तो अत्यधिक संख्या में है , लेकिन उनमें से ज्यादातर को ऐसे लेखकों ने लिखा है जिन्हें न तो बाल साहित्य की समझ है ना चाहत है न अच्छा बाल साहित्य पढ़ने का धैर्य है. बस पैसा देकर किताब छपवाने का शौक है.
खैर, विषय पर आते हैं. मेरी इन दोनों पुस्तकों के प्रकाशक हैं साहित्य विमर्श प्रकाशन. और पुस्तकों के नाम हैं- आदी पादी दादी और भले भूतों की कहानियां. दोनों ही बाल कहानी संग्रह हैं.
लेकिन दोनों एक दूसरे से बिलकुल हटकर हैं.
आदी पादी दादी में कुल मिलाकर ग्यारह कहानियां हैं. हर कहानी एक विशेष विधा पर है जैसे कि खोज कथा, प्रेम कथा, विज्ञान कथा, खेल कथा, अजब गजब कथा. और हर कहानी की मुख्य पात्र लड़की या स्त्री है.
इस कहानी संग्रह को बाल पाठकों ने बहुत ही उत्साह के साथ स्वीकार किया है. मैंने इसमें बालिकाओं को हर काम में सक्षम तथा लड़कों को टक्कर देने वाली मुद्रा में दिखाया है. उनको हर क्षेत्र में एक कदम आगे दिखाया है. इस पुस्तक की भूमिका में मैंने कहा भी है……….
कहानियों के मैदान में लड़कों की दादागिरी ही क्यों चलेI ऐसी कौन सी शैतानी है जो लड़कियां नहीं कर सकती? मस्ती के कौन से मैदान में लड़कियां अपनी धाक नहीं जमा सकती?
वैसे समझने की बात यह भी है कि लड़कियों की टीम में दादी-नानी, मां-मौसी, चाची-मामी सब आती हैं।
तभी तो इस किताब की कहानियों में मुख्य भूमिका निभाई है लड़कियों ने।
और दादी, नानी, मां, मौसी, चाची-मामी, दीदी, छुटकी सब की सब लड़कियां ही तो हैं।
हां, कहीं-कहीं लड़कों को भी भूमिका या रोल दिए गए हैं लेकिन वे सहायक भूमिकाओं में हैं जिन्हें फिल्मी भाषा में कहा जाता है एक्स्ट्रा हाऽऽहा-हीऽहीऽहीऽहीऽ!!!!
वैसे लड़कियों की दुनिया की इन कहानियों को पढ़ कर लड़कों को भी पूरा मजा आएगा, क्योंकि इन कहानियों की हीरो या हीरोइनें उनकी भी तो दादी-नानी, मां-मौसी, चाची-मामी, दीदी या प्यारी बहन हैं।
क्रमश: