रचनाकार : समीर गांगुली, मुंबई
कृषि कॉलेज में शास्त्री सर भी हैं जिनकी बायो टेक्नॉलॉजी की कक्षा सबसे अलग होती थी। जुबिन उनका प्रिय छात्र था। लेकिन उसके गायब हो जाने से वे बहुत दु:खी थे।
नरेश के पास जुबिन के नाम से अच्छे-खासे पैसे आते थे जिन्हें वह जुबिन के घर तक पहुँचा देता था। पहले कोई व्यक्ति देकर जाता था एक बार मनीऑर्डर मुम्बई से आया । लेकिन जुबिन का पता नहीं चल पाया नरेश परेशान था कि जुबिन ने अपना गलत पता क्यों दिया? आखिर वह उसका जिगरी दोस्त था तब भी उसने उससे संपर्क क्यों नहीं किया।परिवार को इतनी तसल्ली जरूर थी कि जुबिन जिंदा है।
एक दिन जुबिन के चाचा ने नरेश को बताया कि जुबिन का फोन आया था। सुन कर नरेश तो उछल ही पड़ा। नरेश ने मोबाइल नम्बर लेना चाहा तो चाचा ने बताया –“ नहीं, मोबाइल पर कोई नंबर ही नहीं आया और उस कॉल के रिप्लाई पर जाकर डायल किया तो फोन लगा ही नहीं।“ नरेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था। नरेश के गायब होने का मसला डेढ़ साल से सुलझ ही नहीं रहा था। वह पैसे नियमित रूप से भिजवा रहा है। जो अनजान आदमी चाचा को पैसे का पैकेट पकड़ा गया था वह भी अचानक गायब हो गया था। पता ही नहीं चला कि वह कौन था।
रहस्य-रोमांच अब और गहराने वाला था। एक दिन नरेश को किसी अनजान का फोन आता है। आदेश दिया जाता है कि आधे घंटे के बाद बस स्टैंड के आगे वाली पुलिया पर मिलो। यह भी कहा गया – अकेले..किसी को बिना बताए… जुबिन के लिए। एक बार को तो नरेश के होशो हवास ही उड़ गए। घने अंधेरे में वह बतायी गई जगह पहुँचा। सामने एक सफेद टूरिस्ट कार थी। दरवाजा खुला और नरेश को बैठने का आदेश दिया गया। नरेश बैठा तो उसने जो देखा उसे देख कर चींख निकलनी ही थी। बगल में जुबिन बैठा था। नरेश की गर्दन में एक छोटा-सा इंजेक्शन चुभा दिया गया। वह बेहोश हो गया। होश में आने पर वह खुद को नये स्थान पर पाता है। घने जंगल के एक कॉटेज पर। जुबिन ने मुस्कुराकर कहा- “मेरे प्यारे दोस्त, एक अनोखी दुनिया में तुम्हारा स्वागत है।“ नरेश को यहाँ कुछ चमत्कार भी देखने को मिलते हैं, मसलन “अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स” के सदस्य के रूप में दो शेरों का आक्रमण और जुबिन के द्वारा आईडी कार्ड दिखाने के बाद उनका रुक जाना। जुबिन ने बताया वह सब दुश्मनों को रोकने और प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए है। इसके बाद ‘मिशन ग्रीन वॉर’ शीर्षक वाले अध्याय म्रें पूरी कहानी का मूल उद्देश्य स्पष्ट होता है, जो है – दुनिया को सुखी देखने के लिए खेती की सुरक्षा, खेती का विस्तार और खेती में अनुसंधान की दिशा में युद्ध स्तरीय काम। इस दिशा में हो रहे अनुसंधानों (जैसे बिना मिट्टी की खेती, खड़े मैदान और उनमें उगी फसलें आदि) की साझा की गई दिलचस्प जानकारी भी मिलती है। आगे चलकर पता चलता है कि विज्ञान की अजीबोगरीब दुनिया में वैज्ञानिकों के दिमाग से वैज्ञानिक जानकारियाँ भी चुराने के प्रयत्न किए जाते हैं। जुबिन से नई प्रकार की कपास की खोज के प्रयत्न की भी जानकारी मिलती है। यहाँ नरेश को एक और अनुभव से गुजरना पड़ता है। मिशन के डेप्यूटी कमांडर के द्वारा नरेश को मिस्टर शास्त्री की हरकतों पर नजर रखने को कहा जाता है। मन में प्रश्न उठता है – क्या शास्त्री सर कोई गद्दारी कर रहे हैं? नरेश अब तक उनका हिस्सा बन चुका था। नरेश को जुबिन से यह भी पता चलता है कि वह प्रिंसिपल खंडूरी के भी सम्पर्क में है और गुप्त ढंग से चल रहे अभियान में कुछ ऐसे विद्यार्थियों को जोड़ रहा है जो कृषि वैज्ञानिक बनना चाहते हैं। उसने यह भी बताया कि दो-तीन साल बाद किसी को गुप्त रूप में लाने की जरूरत नहीं रहेगी। कहानी के इस हिस्से में कुछ और रहस्यों से भी पर्दा उठता है। जुबिन के साथ अब नरेश भी कृषि कॉलेज और हॉस्टल की दुनिया से जुड़ चुके थे।
कथानक में बहुत सा मजेदार बालसुलभ चौंकाने वाला लेकिन विश्वसनीय मसाला पाठक को बाँधे रखता है, तथ्यात्मक विवरण, वैज्ञानिक जानकारी को शुष्क होने से भी बचाता है और रचनात्मकता अर्थात कहानीपन से वंचित भी नहीं होने देता। ’’
पाठक मित्रो, सन 1981 में उस दौर की लोकप्रिय बाल पत्रिका मेला में मेरा एक किशोर उपन्यास प्रकाशित हुआ था ‘‘ जेड. जुइंग की डायरी’’. यह उपन्यास छपते ही खूब चर्चित हुआ था. ( हाल ही में इसे फ्लाईड्रीम पबिल्केशन द्वार प्रकाशित किया गया है. जो कि एक प्रकार से उपन्यास का पुन:लेखन है. साथ ही पुस्तक में सात विज्ञान कथाओं को भी शामिल किया गया है). लेकिन जब फिर से एक विज्ञान संबंधी उपन्यास लिखने की मांग व इच्छा हुई तो मन में स्थिर किया कि इस बार कृषि जगत की भावी चुनौतियों और वहां मौजूद असंख्य अवसरों के बारे में लिखा जाए. कृषि के संभावित भावी स्वरूप की जानकारी एक थ्रिलर जैसे लगने वाले उपन्यास के जरिए दी जाए. फिर तथ्यों की खोज शुरू हो गई. कल्पना के घोड़े दौड़ाए गए.
सन 2022 में प्रकाशित पाठकों तथा समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया उपन्यास है. आशा है यह भविष्य में उन पाठकों तक भी अवश्य पहुंचेगा, जिनके मन में कौतूहल और जिज्ञासा है.
क्रमश: