रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
हिंदी की महत्ता
भारत माँ के माथे की बिंदी हमको सिखा रही है हिंदी
ध्वनियों की आत्माअनुभूति संवेदना की अनुगूँज है हिंदी
गर्वीली मातृभाषा बनी संवैधानिक राजभाषा हिंदी
अंग्रेज़ी क़ाबिज़ है तुलना में क्यूँ बनाऊँ दोयम हिंदी
सामाजिक,आर्थिक विषमता से घनिष्ट रूप से जुड़ी हिंदी
ये समान ज्ञान, अनुभव और कौशल रखती अपनी हिंदी
अखंड भारत की साकार परिकल्पना है राष्ट्रभाषा हिंदी
ज्ञान कासृजन कर विश्व में अपना परचम फैलाती हिंदी
अवधी कौरवी हरियाणवी ब्रज हिमाचली भोजपुरी
कुमायूंनी गड़वाली राजस्थानी बघेली बुंदेली मैथिली
कन्नौजी विविधरूपणी सभी भाषाओं कि जननी हिंदी
अंतर्रराष्टीय स्तर पर फैल ज्ञान विज्ञान सिखाती हिंदी
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मुरली लगी है
कृष्ण के होठों मुरली लगी है
ग्वाले बजाए करताल
की राधा नाचे छमा छम—-
गोपी भी नाचे ग्वाले भी नाचे
कोई बजाए रे झाल
की राधा नाचे छमा छम
वृंदा वन की कुंज गालियाँ
कान्हा पर मोहित हर कलियाँ
आज सारे मगन देते हैं देते जांघो पे अपनी ताल
की राधा नाचे छमा छम
राधा किशन की प्रेम कहानी
दुनियाँ दोहराएगी ये ज़ुबानी
सच्ची घटना है रखना सम्भाल के
की राधा नाचे छमा छम
लिख दे कृष्ण कथा ये शबनम
नहीं लेखनी में है वो दम
आज दुविधा ये कान्हा निकाल
की राधा नाचे छमा छम
कान्हा के होठो मुरली लगी है
ग्वाले बजाए करताल
की राधा नाचे छमा छम ,,,
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अधूरी तमन्नाएं
फिर से दिल पर दस्तक देती ,मेरी अधूरी तमन्नाएं
समझ नहीं आता है मुझको , छोड़े या इसे अपनाए
लगता है की सोई तमन्ना
मेरे मन की जवां हुई
पहले वह खामोश थी रहती
अब थोड़ी बा जुबां हुई
उसे अभी एक नई तरंग दूँ , या कुछ दिन को भरमाए
डर भी लगता है दुनिया से
जाने क्या क्या कह डाले
कहीं तमन्ना पूरी करने
पड़ जाए न जान के लाले
सोई हुई थी सोते रहती , क्यों मैंने उसको जगवाए
समय पर पूरी हो न पाई
कोई तमन्ना हुई न पूरी
शबनम घोट गला दो उसका
रह गई है जो खुद से अधूरी
अपनी तमन्ना के वश होकर , क्यों हम प्रतिष्ठा गिरवाए
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नहीं किसी ने दस्तक दी
नहीं किसी ने दस्तक दी ,न ही दी आवाज़ ।
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
न हल्की सी पॉंव की आहट,न ही बजा कोई साज
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
रुख हवाओं ने भी पलटा, बह न सका वह ज़ोर,
न ही उड़ने का दिल चाहा ,न ही मिला परवाज़
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
कतरा कतरा आँसू निकले, पर आँखों में सूख गए,
पोछने वाले बाद में आए,नहीं मिला जांबाज़
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
सूना आंगन सूना उपवन न रिश्तों की डोर,
रही देखती सब अपनों के बदले हुये अंदाज़
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
झुका नहीं पर सर ये हमारा विपदाएं गई लौट
तुमसे मैंने सीख लिया था , जीने का अंदाज़
एक तेरे आने से पहले एक साथ रहने के बाद
पाकर तुमको तृप्त हो गई,अब मैं दुआएँ क्यों माँगूँ
अब तो तेरे खोले हुए मैं पहन लिया है ताज
एक तेरे जाने के बाद एक तेरे जाने के बाद।