चैप्टर – 4
श्यामलाल – मेरे बेटे लखन की तबियत खराब थी। मुझे उसे दिखाने डाक्टर के पास डिस्पेंसरी बंद होने से पहले जाना था। अत: मैं भी साहब को चाय देकर घर निकल गया था। मेरे निकलते वक्त योगगुरु चाय पीते हुए घड़ी के सेल लगाने में लगे हुए थे।
उसने यह जानकारी देने के बाद सरकारी डिस्पेंसरी में बेटे के उपचार के लिए बना पर्चा बतौर सबूत दिखाया।
इंस्पेक्टर मानवेंद्र – पर तुम्हारी चाय पीकर योगगुरु को नींद कैसे आने लगी? इंस्पेक्टर ने सख्त निगाहों से घूरते हुए श्याम लाल की तरफ सवाल दागा।
सवाल सुनकर श्याम लाल थोड़ा सकपकाया पर जल्द ही खुद को संभालते हुए बोला— साब! योगगुरु शायद उस दिन व्यायाम करके थक गए होंगे। इसलिए उन्हें नींद आने लगी होगी।
उसका जवाब इंस्पेक्टर को ज्यादा संतुष्ट तो नहीं कर सका पर उसने कोई पुख्ता संकेत नहीं मिलने के कारण श्याम लाल को छोड़ना उचित समझा। अब उसकी निगाह में केबल वाला संदिग्ध लग रहा था।
अगले दिन इंस्पेक्टर ने सोसाइटी में लगे सीसीटीवी कैमरों के तमाम फुटेज खंगाले। एक फुटेज में उसे केबल वाले की कैम्पस में आई बाइक का नंबर दिखा। इस नंबर को सुराग मानते हुए इंस्पेक्टर ने पता लगाया। परिवहन विभाग से मिली जानकारी में बताया गया कि यह बाइक नदीम की है जो केबल कनेक्शन देने का काम करता है। अब पूछताछ के लिए नदीम को पकड़ना इंस्पेक्टर के लिए जरूरी हो गया।
वह जल्द ही नदीम के आफिस पहुंचा। नदीम आफिस में बैठा हुआ मिला। इंस्पेक्टर को देखकर वह कुछ पल के लिए चौंक गया पर थोड़ी हिचकिचाहट के साथ उसने पूछा — अरे साहब! आप इधर कैसे?
इंस्पेक्टर ने उसे योग गुरु पर हुए हमले का जिक्र करते हुए पूछा तो तुम उस दिन उनके यहां केबल लगाने गए हुए थे?
नदीम – हां साहब गया था।
इंस्पेक्टर मानवेंद्र – मुंह पर रूमाल बांधकर गए थे?
नदीम – हां मुंह पर रूमाल बांधकर गया था। मुझे सर्दी—जुकाम है न इसलिए।
इंस्पेक्टर मानवेंद्र – हमें घटनास्थल से केबल का करीब डेढ़ फीट लंबा तार मिला है। क्या यह तार तुम्हारा था?
नदीम – तार दिखाना साहब!
इसके बाद इंस्पेक्टर ने बड़ी हिफाजत के साथ अपने पास रखा हुआ तार नदीम को दिखाया।
तार देखकर नदीम बोला — यह तार हमारा नहीं है। यह एलीफेंट ब्रांड है। हम टाइगर ब्रांड का तार लगाते हैं।
इंस्पेक्टर मानवेंद्र – तो फिर यह तार किसका हो सकता है? इंस्पेक्टर सोच में पड़ गया। उसे लगा कि नदीम के अपराधी होने के ज्यादा संकेत नहीं मिल रहे हैं। फिर पता नहीं उसे क्या सूझी उसने पूछा — क्या केबल कनेक्शन लेने के लिए योगगुरु या उनके परिवार वालों ने तुम्हें फोन लगाया था?
नदीम – नहीं साब! फोन किसी ओमप्रकाश ने लगाया था। वह योगगुरु को अपना टीचर बता रहा था। उसने कहा था कि गुरुजी को केबल लगवाना है। जल्दी आ जाना। जब मैं योगगुरु के फ्लैट पहुंचा तो उन्होंने किसी ओमप्रकाश का नाम नहीं सुना होने की बात कही थी। उनसे हुई बातचीत में पता चला था कि योगगुरु को तो टीवी देखना ज्यादा पसंद नहीं है। मैं तो बेकार में ही उनके घर गया था। मुझे मालूम नहीं था कि उनके साथ उसी शाम ऐसा कुछ हादसा हो जाएगा।
इंस्पेक्टर मानवेंद्र – तो फिर तुम उनके घर क्यों पहुंचे?
नदीम – शाम करीब 4 बजे मोबाइल नंबर 9988000xxx से मेरे मोबाइल फोन पर कॉल आया था। कॉल करने वाले ओमप्रकाश की बात पर यकीन करके मैं कैम्पस चला गया था। आखिर कस्टमरों की तादाद बढ़ाना किसे अच्छा नहीं लगता?
अब यह ओमप्रकाश कौन आ गया? इसने केबल वाले को क्यों फोन लगाया? क्या इसे पता था कि योगाचार्य उस समय घर पर अकेले रहने वाले हैं? ऐसे कई सवाल इंस्पेक्टर मानवेंद्र के मन में उमड़ने लगे। नदीम के पास आए नंबर को देखकर इंस्पेक्टर का माथा ठनका। यह नंबर तो ठीक वही है जिससे मुझे योगगुरु पर हुए हमले की जानकारी मिली थी। अब इंस्पेक्टर को नए सिरे से मामले की छानबीन शुरू करनी थी।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )