चैप्टर – 1
जबलपुर में भेड़ाघाट के पास बने कंचन अपार्टमेंट के ब्लॉक नंबर 8 में शाम 5 बजे से जबर्दस्त हलचल बढ़ गई थी। वहां दूर—दूर से लोग झुंड के झुंड में आए जा रहे थे। पुलिस की चार—पांच गाड़ियां भी सायरन बजाते हुए आकर खड़ी हो गई थीं। सब लोगों की निगाहें फ्लैट क्रमांक 102 के सामने बेजान सी पड़ी देह पर लगी हुई थीं। यह देह मशहूर योगगुरु वसुधाकर की थी। उनकी यह हालत देखकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं। कोई कह रहा था कि योगगुरु का मर्डर हो गया है। तो कोई उनके बालकनी से गिर कर बेहोश होने का कयास लगा रहा था। तो कोई समझ रहा था कि योगगुरु की अचानक हृदयगति रुक गई होगी। सच किसी को पता नहीं था। पुलिस इंस्पेक्टर मानवेंद्र भी योगगुरु का यह हाल देखकर हैरान था! उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी ऐसी हालत कैसे हो गई है और क्या वे कहीं सचमुच तो नहीं मर गए? आश्चर्य की बात यह भी थी कि आसपास खून की एक बूंद तक होने का कोई संकेत नहीं था।
इंस्पेक्टर मानवेंद्र ने सोचा कि उसे जांच की शुरुआत करनी ही होगी क्योंकि थोड़ी देर में मीडियावालों का हुजूम घटनास्थल पर पहुंच ही जाएगा और वे तरह—तरह के सवाल पूछेंगे। अगर उन सवालों का जवाब मेरे पास नहीं होगा तो बड़ी भद्द पिटेगी। पुलिस डिपार्टमेंट को लोग कोसेंगे सो वो अलग! इसी उधेड़बुन को विराम देने के निश्चय से उसने पहले फ्लैट नंबर 102 के आसपास के अन्य रहवासियों के बारे में पता लगाने की कोशिश की। लेकिन उसे देखकर निराशा हुई कि आसपास के चार और फ्लैटों पर ताला लगा हुआ है। उनमें से दो तो नहीं बिकने के कारण बिल्डर के पास ही थे। फ्लैट क्रमांक 104 का मालिक राजेश नागपाल था जो कि एनआरआई था और दुबई में अपने परिवार के साथ बस गया था। फ्लैट नंबर 105 का मालिक व्योमकेश साहू कहीं गया हुआ था।
जिस मोबाइल नंबर से इंस्पेक्टर मानवेंद्र को योगगुरु की हालत के बारे में जानकारी मिली थी उसने उस नंबर पर छह—सात बार फोन लगाया। जब भी वह उस नंबर पर कॉल करता उस पर प्रिरिकॉर्डेड वॉइस मैसेज आने लगता कि दिस नंबर डज नॉट एक्जिस्ट्स! यानी यह नंबर अस्तित्व में नहीं है! ऐसे में उसे इस वारदात के बारे में कोई चश्मदीद गवाह मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी। पर पुलिस को मामले की जांच तो करनी ही थी। अत: उसने इसी मकसद से पड़ोस के लोटस कैम्पस में ही रहने वाले अपने दोस्त डॉक्टर अचल भटनागर को फोन लगाया।
डॉक्टर साहब उस समय अपने अस्पताल से लौटकर चाय—नाश्ते की तैयारी कर रहे थे। जैसे ही इंस्पेक्टर मानवेंद्र का फोन आया वे नाश्ता करना भूलकर निकल पड़े घटनास्थल की ओर।
घटनास्थल पर जमा भीड़ को अपने साथ आए पुलिस कर्मियों की मदद से हटाते हुए इंस्पेक्टर ने डॉक्टर के लिए वसुधाकर तक पहुंचने का रास्ता बनाया। डॉक्टर से औंधे पड़े वसुधाकर की नब्ज टटोली। वह मंद चल रही थी। यह देखकर डॉक्टर की सांस में सांस आई और धीरे से बोला ।
डॉक्टर साहब – वसुधाकर जी अभी जिंदा है। पर शायद बेहोश हैं।
उसने चोट का निशान देखने के लिए वसुधाकर के शरीर का उपर से नीचे तक पूरा मुआयना किया। कहीं कोई चोट का निशान नहीं! वसुधाकर की सांस और दिल की धड़कनें भी धीरे—धीरे चल रही थीं। अचानक उसकी नजर योगगुरु के गले पर गई। उस पर किसी तरह की रगड़ के निशान दिखे। डॉक्टर ने संदेह जताया
डॉक्टर साहब – इंस्पेक्टर साब! लगता है किसी ने योगगुरु के गले पर वार किया था। यह वार किस चीज से किया था पता नहीं चल पा रहा है! आप जरा ध्यान से योगगुरु का कमरा चेक कीजिए।
डॉक्टर साब की बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर मानवेंद्र अपने साथ दो कांस्टेबलों और एक फोटोग्राफर को लेकर कमरे के अंदर गया।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )