चैप्टर—2
मयंक— मुझे देखो, सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक आफिस का काम संभालना पड़ता है। फिर भी काम बच जाता है तो उसे संडे के दिन निपटाना पड़ता है। अब ऐसे में कैसे मैं अन्य लोगों की तरह एंजॉय कर सकता हूं?
सुकृति — वो मुझे कुछ नहीं मालूम! मैं आज से संडे की छुट्टी रखूंगी! किचन बंद! झाड़ू—पोंछा सब बंद! मैं तुम सबके कपड़े भी नहीं धोउंगी! यदि तुम्हें मेरी जरा भी चिंता है तो आज जब योगेश और मयूरी पिक्चर देखकर घर वापस आ जाएं तो उनसे पूछना कि वे कैसे संडे को फनडे के रूप में मनाते हैं? कैसे उन्हें एंजॉय करने का मौका मिल जाता है। आखिरकार योगेश भी सरकारी आफिस में मुलाजिम है। वह भी नौकरी करता है। फिर मयूरी तो सेंट थामस स्कूल में टीचर है। पर उनकी जिंदगी मुझ फटीचर जैसी नहीं है!
मयंक ने जब देखा कि मैडम का चढ़ा हुआ पारा उतरने का नाम नहीं ले रहा तो वह सन्न रह गया और आफिस की फाइलों में सिर खपाते हुए अपना ध्यान बंटाने और गुस्सा कम करने में जुट गया। पति—पत्नी की इस तू—तू, मैं—मैं की खबर हो हंगामे और शिप्रा की जुबान पर चढ़कर मुकुल तक पहुंच गई। उसने देखा कि आज भइया—भाभी के बीच जमकर वाक—युद्ध हो गया है तो उसने उनका पारा ठंडा करने के उपाय सोचने शुरू कर दिए।
इन्हीं राहती उपायों के तहत मुकुल शिप्रा को लेकर पास ही के सदाशिव रेस्तरां में चला गया और कुछ ही देर में गरमा—गरम समौसे और आधा किलो बंगाली मिठाई खरीद लाया। चूंकि भूख तो सभी को लगी थी अत: पेट की आग से दिमाग में भरी गुस्से की आग समौसे और मिठाई से ठंडी होने लगी। सबने जमकर समौसे और मिठाई का लुत्फ उठाया और शिप्रा को भी बहुत अच्छा लगा कि चाचा ने मम्मी—पापा का पारा ठंडा करने के लिए इतना अच्छा कदम उठाया।
पाठकों को बता दें कि मुकुल अपने भइया’भाभी की बहुत इज्जत करता है। जब भी उनके उपर कोई संकट आता है तो वह हमेशा मदद के लिए तैयार रहता है। उसका स्वभाव अपने भइया—भाभी की तुलना में काफी शांत है और वह कोलार के शासकीय कन्या प्राइमरी स्कूल में टीचिंग करता है। वह अभी अविवाहित है और घर—गृहस्थी के झमेलों से दूर रहता है। जैसे ही उसके हाथ में हर माह सैलरी आती है वह उसमें से एक—तिहाई भाई—भाभी के हाथों में रख देता है और शिप्रा को भी समय—समय पर गिफ्ट आदि दिलाता रहता है। उनके इन्हीं सब गुणों के कारण तमाम परिजन उसे बेहद चाहते हैं। ऐसे में उसने संडे की सुबह हुए वाक—युद्ध को विराम करवाया तो सबने उसे मान भी लिया।
उधर, मयंक को भी लगा कि वास्तव में कहीं वह अपनी नौकरी की आड़ में पलायनवादी तो नहीं बन गया है? या उसने किसी तरह की कम्फर्ट जोन तो तैयार नहीं कर ली है? उसे यह कतई अच्छा नहीं लगा कि सुकृति ने संडे की सुबह—सुबह इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया और दोनों मियां—बीबी के बीच करीब पौन घंटे का वाक्—युद्ध हो गया। उसने तकरार के गीच सुकृति के दिए सुझाव पर गहन चिंतन—मनन आरंभ कर दिया।
उसे वे लम्हे याद आए जब उसकी सुकृति से उसकी शादी की बात चल रही थी। तब उसने सुकृति से कितने वादे किए थे! कितनी आरजुएं की थीं। क्या नहीं कहा था उसे अपने से विवाह करने को राजी करने के लिए!
तुम मेरी जान हो, तुम्हें मैं पलकों की छांव में बिठा कर रखूंगा, तुम्हें मैं रत्ती भर भी परेशान नहीं करूंगा, तुम्हें मैं चांद—तारे तोड़कर ला दूंगा, आदि—आदि। पर तीन साल पहले जब से गुलशन फैक्ट्री में नौकरी पकड़ी है तब से बस काम के भूत के कारण न जिंदगी एंजॉय कर पाता हूं और न ही बीबी—बच्चों के लिए कुछ कर पाता हूं। बॉस गुलशन खरबंदा तो विधुर और निस्संतान हैं। घर—गृहस्थी का अनुभव तो ले चुके हैं पर पत्नी गुलबदन के पांच साल पहले गुजरने के बाद उनकी लाइफ शुष्क हो गई है। उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी की याद भुलाने के लिए खुद को फैक्ट्री के काम के लिए 24 घंटे समर्पित कर रखा है। पर मेरी तो अभी उमर कम है। मैं उनकी तरह शुष्क नेचर का बनना नहीं चाहता। पर बच्ची और गांव तेलियापाड़ा में रहने वाले रिटायर्ड माता—पिता की जिम्मेदारी मेरे सिर पर है क्योंकि उनकी पेंशन बहुत मामूली है। हालांकि मुकुल सहयोग करता है पर घर का बड़ा होने के नाते मेरा फर्ज ज्यादा है।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)