आखिरी चैप्टर
चिरंजीवी भी उनकी हां में हां मिलाते हुए बोले — हां, भाई साहब! हम सब बेहद मायूस हैं। ऐसा लगता है मानो मैदान ए जंग में बहुत बड़ी मात हुई हो। ये बच्चे भी बेहद उदास हैं।
सुलभा — हां, हॉमको भी बेहोद दुख है! पर टीम इंडिया ने कोशिश तो पूरी की थी मैच जीतने की। शायोद कुछ कोमी रह गया जो हार का मुंह देखोना पड़ा।
निरंजन — होम भी मैच का बेहोद शौकीन! होमको बेहोद भालो लोगता जदि टीम इंडिया जीतता। लेकिन अब तो चार साल के लिए खिताब गोया आस्ट्रेलियार पासे!
दीप्ति — अंकल! समझ में नहीं आ रहा कि इस हार से हम कैसे उबरें।
सुदीप — हां, अंकल! मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मैं डिप्रेशन में चला जाउंगा।
निरंजन —नोईं नोईं! तुमि डिप्रेशन में नोईं जाना! होम नहीं चाहता कि इस हार के कारोण सोब लोग मायूस हो जाए। निराश हो जाए। होमारा टीचर होमको यही सिखाया था स्कूल में।
सुुलभा — अरे! तोम लोगों को मालूम नोईं होगा कि अंकोल स्पोर्ट्स में स्टेट लेवोल तोक खेल चुका है। मालूम वो यहां तोक कैसे पोंचा? डियर अपोनी वो कोहानी बताओ न!
निरंजन — होम तोब दीप्ति औरो सुदीपो की उमर के करीब था। तोब हम 100 मीटर रेस में ओच्छा खेलोता था। जोब होम 11वीं क्लास में था तोब हमारे साथ एक ट्रेजेडी हुआ था।
दीप्ति और सुदीप — वह क्या अंकल?
निरंजन — होम बोताता है। तब हम एनुअल इंटोर स्कूल स्पोर्ट्स चैम्पियोनशिप में भाग लेने भोपाल गया था। वहां होम 12 स्टेट के एथलीट के साथ दौड़ा! होम सोच रोहा था कि बीता रिकार्ड के हिसाब से होम बोढ़िया प्रोदर्शन कोरेगा! पर मालूम क्या हुआ? रेस के सोमय होमारे पैर में मोच आ गया और होम रेस कोरते सोमय फिसोल गया। सोब लोग होमको देखके खूब होंसा! होम शोर्मिंदा होके अपना गोर्दन को घुटोनों के बीच छिपा के बैठ गया। होम तोब नॉर्मल हो पाया जोब हमारा स्पोर्ट्स टीचर लोखन जादव आके होमको संभाला। जादव बोला — क्यों जोनाब! इतने क्यों शोरमा रोहे हो? क्यों मायूस हुए जा रोहे हो? अगले साल भी तो योह चैम्पियोनशिप होगा। तोब तक अपोने को औरो मोजोबूत कोर लो। प्रैक्टिस कोरो। हॉनेस्टी से मेहोनोत करो। देखोना! अगले साल तुम कैसे नईं जीतता? मैंने उनोका बात को गांठ बांध लिया और एक साल तक जोमकर प्रैक्टिस किया। अपनी कोमी को सुधारा। औरो मालूम? जोब अगोले साल होम दौड़ा तो उसी एनुअल इंटोर स्कूल स्पोर्ट्स चैम्पियोनशिप में होम गोल्ड मैडल लाया।
निरंजन की यह कहानी सुनकर सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई। चिरंजीवी बोले — इसका मतलब है कि हार को कभी फुलस्टॉप नहीं मानना चाहिए। उसके आगे भी मौके आएंगे। बस, अपने को तैयार करते रहो। फिर कामयाबी क्यों नहीं मिलेगी?
सुदीप — हां, अंकल! हमें हार से निराश नही होना चाहिए बल्कि अपनी कमियां जानकर, उन्हें दूर करके आगे कामयाब होने की तैयारी करनी चाहिए। अगर हमारा हौसला मजबूत है तो हम होंगे कामयाब एक दिन!
सुलभा — क्यों नहीं बोच्चो! आपो लोगों को हार से निराश नोईं होना चाहिए। हार में ही आगे जीत की सोंभावना के बीज छिपे होते हैं।
दीप्ति — हां आंटी! मैं समझ गई! चलिए इतनी प्रेरक कहानी सुनाने के लिए मैं अंकल का धन्यवाद करती हूं। मम्मी तो दोज मनाने अपने भाई के घर गई हुई हैं। लेकिन जाने से पहले ढेर सारा नमकीन और तरह—तरह की मिठाइयां बनाकर रख गई थीं। मैं आप सबके लिए चाय—नाश्ता लेकर आती हूं।
(काल्पनिक कहानी )