रचनाकार : सुशीला तिवारी, पश्चिम गांव,रायबरेली
हमें साथ मिल तो गया था किसी का
हमें साथ मिल तो गया था किसी का।
मगर बेवफा हो सका न किसी का ।।
पड़े आग दरिया से उस पार जाना ,
नही खेल आसान ये आशिकी का ।
छिपी दुश्मनी थी चिलमन में उसके,
समझ ही न पाये हम धोखा उसी का।
मौसम की माफिक बदलते रहे रंग ,
भरोसा करें हम कैसे किसी का ।
हुई घोर बारिश आशियाँ मेरा टूटा ,
असर न हुआ कुछ मेरी बन्दगी का।
इन नजरों ने देखे नजारे बहुत से,
हुई तेरी कायल ये लख सादगी का।
गिराओ बिजली कहीं और जाके ,
कहीं जल जाये फिर घर किसी का ।
“सुशीला “ने उसको बहुत बार रोंका,
हुआ वो दीवाना फिर उस कली का ।
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सबकुछ तुम्ही
सबकुछ तुम्ही तुम बिन जीवन कैसा
तुम बन गये हो आदत हमारी ।
मेरे लड़ने – झगड़ने पर मुझे रोंका ,
तुम बन गये हो अदालत हमारी ।
रहे हो साथ में पर पूजा नही तुमको,
तुम बन गये हो इबादत हमारी ।
जब कभी हिम्मत हार कर बैठी ,
तुम बन गये हो ताकत हमारी ।
कहीं जब चले गए तो अहसास हुआ ,
तुम बन गये हो अमानत हमारी ।
तुम्हारे साथ बेफिक्र कोई भय नही ,
तुम बन गये हो हिफाजत हमारी ।
तुम्हारे बिन कुछ भी नही दुनिया है ,
तुम बन गये हो जिन्दगी हमारी ।
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मैं क्या करूँ
देर से रोज आये तो,मैं क्या करूँ।
पर वजह न बताये तो,मैं क्या करूँ।।
जाम नजरों के भर भर पिलाती रही
फिर मयखाने जाये तो,मैं क्या करूँ। 1)
फलसफे जिंदगी के बताये बहुत,
पर समझ में न आये तो,मैं क्या करूँ। 2)
जब भी आती हूँ वो मिलता नही,
बेवजह रूठ जाये तो,मैं क्या करूँ। 3)
जिन्दगी की कदर को समझ न सके,
जिंदगी अब रूलाये तो,मैं क्या करूँ। 4)
झूठ उनकी नजर खुद बयां कर रही,
झूठ को सच बतायें तो, मैं क्या करूँ। 5)
वो जफा कर रहा है वफा हमने की,
वो न उल्फत निभाये तो,मैं क्या करूँ। 6)
वो गया छोड़कर जब से रहबर मेरा,
लौट कर फिर न आये तो मैं क्या करूँ। 7)
है “तिवारी”मुहब्बत का दुश्मन जहां,
इश्क में दिल दुखाये तो,मैं क्या करूँ। 8)
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मैं क्या लिखूं ?
हर पृष्ठ अलौकिक है जीवन का , मैं क्या लिखूं ?
तुम्हे लिखूं तुम संग गीत मधुर मिलन,का मैं क्या लिखूं
सुख की अनुभूति थोड़ी दुख की बहती अविरल धारा,
या लिखें समन्वय इन दोनो का , मैं क्या लिखूं।
कुछ कड़वाहट मन की लिखें ,लिखें बनावट की बातें,
या तुम संग पल कैसे बीते कैसे गुजर गई वो रातें,
लगता है सब कुछ लिख डाला फिर भी मैं क्या लिखूं,
तुम्हे लिखूं तुम संग गीत मधुर मिलन का मैं क्या लिखूं
कुछ अन्तर्मन के भाव लिखूं उन बिखरे जज़्बातों का
या जो मुझ पर भारी पड़ गये उन सारे हालातों का,
कुछ प्रेम लिखा दर्द लिखा बिरहन का ,मैं क्या लिखूं
तुम्हे लिखूं तुम संग गीत मधुर मिलन का,मैं क्या लिखूं
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बहुत ही सुंदर एवं अविश्वस्नीय रचनाएँ