रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
हमारा है यह हिंदुस्तान
गंगा यमुना और हिमालय है इसकी पहचान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
भिन्न भिन्न जाति धर्मो के लोगों
का है बसेरा
अलग अलग रंगो से सबने एक
ही चित्र उकेरा
इस हिंदुस्तान के खातिर सारे दे देंगे जान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई का
प्यारा ये घर
कहीं प्रार्थना, गुरुवाणी और
अजान ,प्रेयर
हम सब भारत वासी का है ये तिरंगा शान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
भारत पर जब आई मुसीबत
सबने ताना सीना है
देश की खातिर नहीं सोचते
मरना है या जीना है
देश की खातिर कितने शबनम हो गए है कुर्बान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
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आजाद वतन
आजाद वतन ये अपना है
आजाद वतन ये अपना है
चिड़ियों की चहक फूलों की महक
आजाद चमन ये अपना है
यहाँ हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
मिल कर रहते हैं जैसे हो भाई
हर घर में जैसे खिचखिच है
वैसे ही यहाँ बस झिकझीक है
नहीं ये दुश्मन अपना है
आजाद चमन ये अपना है
शांत आंगन ये अपना है
आजाद चमन ये अपना है
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इस माटी का मोह
मेरे मन में क्यों न उपजे इस माटी का मोह
जीवन का आरोह यहीं से होगा भी अवरोह
मेरे मन में क्यों न उपजे इस माटी का मोह
यहीं पर जीना यहीं पर मरना
कर्म यही पर करना
इस माटी का तिलक करूँ मैं
परंपरा का कहना
इस माटी से प्रेम करन में कुछ भी न ऊहापोह
मेरे मन में क्यों न उपजे इस माटी का मोह
मेरे पूर्वज ने इस माटी का है
चुकाया मोल
मान दिया सम्मान दिया है
किया न टालमटोल
शबनम इस माटी के कण कण में जीवन का सोह
मेरे मन में क्यों न उपजे इस माटी का मोह
जीवन का आरोह यही से होगा भी अवरोह
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ओ प्रकृति तुम महान हो
ओ प्रकृति तुम महान हो तुम ही तो भगवान हो ,
सदियों सनातन अस्तित्व तुम आदि ना अंत हो !
अजर अमर असीम अनंत अखिलेश महामयी हो ,
जीवन प्रदायनी प्रकृति तुम करूणामयी महादानी हो
मैं नन्हीं सी बूँद ओस की रात तुम पर छा जाती हूँ
बेटी हूँ मैं चाँद कि चाँदनी ले धरा पर मुस्काती हूँ
पत्ता पत्ता बूटा बूटा शाख़ शाख़ शीतल करती हूँ
मैं शबनम भोर कि रश्मि तपिश से होती विलुप्त हूँ
प्रलय काल जब डँसता तुमको प्रकृति नष्ट हो जाती
पानी कहीं तो दलदल कहीं सूखी धरती फट जाती
वृक्ष जीव शिखरांत तक सब टुकड़े टुकड़े हो जाता
हुआ अंत ,पुनर्जन्म तुम्हारा शबनम पल्लवित करती
मैं तुच्छ नन्हीं बूँद तुम्हारी प्राणदायिनी बन जाती
चन्द्र प्रकाश ला पत्तों पे बैठ ऑक्सीजन भर जाती
सूर्य किरण संग कार्बनडॉय ऑक्साईड ले जाती
गरल निकल अमृत दे मैं अल्पायु विलीन हो जाती
समा गई सब चेतन अचेतन सब प्रकृति स्वरूप है
परमशक्ति परा अपरा सपत्नीपरमेश्वर के अधीन है
शबनम दे अनुप्राणित कृतित्व प्रकृति जीवनदायिनी
नीर ही प्राण है शबनम यही शाश्वत सत्य प्रकृति है
देवनादर्शन हो तुम प्रकृति सबका मन हर्षिाती हो
मैं रात चाँदनी मोती बसरा प्रकृति तुमको भाँति हूँ
युग युग से खेल मैं इतराती तुम सिंगार कर जाती
सूर्य चँद्र व तारे गगन में बैठे देख देख मुस्काते हैं
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सावन महिनवा
विधा-झूमटा (झारखंड की लोक धुन पर )
चल सजनवा,सावन महिनवा
देवघर नगरिया ना, हाय राम देवघर नगरिया ना
वहा पर अयिहे उमा व शिव जी नंदी सवारिया ना
बड़ी है पावन, सावन महीना,
पावन है देवघर धाम, हाय राम बड़ी है देवघर धाम
मन के मुताबिक मांग लो उनसे लेकर उनका नाम
छोड़ हिमालय, देवघर शिवालय
बाबा रहे यहां एक मास, हाय राम रहे यहां एक मास
जलवा चढ़ावे आए भगत जे पूरा करे उनके आस