रचनाकार : शिखा तैलंग
पालतू कुत्ते की सोच
दोपहर में 2 बजे ममता आएगी मुझे सड़ता हुआ मुंह बनाकर फ्रिज में बचा—खुचा खाना परोस देगी! अब यह बात अलग है कि अगर उस बासे—कूसे खाने को खाने के बाद मेरा पेट खराब हो गया तो मुझे डॉक्टर के पास कौन ले जाएगा?
प्रसून तो मुझे ले जाने से रहा! वह बेचारा वैसे ही काम के बोझ का मारा है! उसे सिंकारा पीना चाहिए था पर पता नहीं कभी —कभी कौन सा ड्रिंक ले लेता है जो झूमता हुआ रात में घर में घुसता है।वह ऐबी है या फरेबी या कुछ और मैं समझ नहीं पाता। मैं बस टुकुर—टुकुर उसको देखता रहता हूं। कम से कम मैं ऐसे—वैसे ड्रिंक तो नहीं लेता! पता नही उसे कौन सा गम सताता रहता है जो उससे गम की भांति चिपक गया है अथवा वह रम में रम गया है!
जो भी हो वह कभी—कभी मुझ पर बहुत एहसान करता है। वह संडे या छुट्टी छपाटी को पूरी फैमिली के साथ अपनी खटारा कार में घुमाने तो ले जाता है जो उसने किश्तों में खरीदी है। बेचारा एक—एक पाई के लिए जमकर मेहनत करता है और देर रात तक जब वर्क लोड से पूरी तरह से निवुड़कर घर पहुंचता है तो ममता उसे अपनी फरमाइशों की लिस्ट थमा देती है जिन्हें उसे हर हाल में पूरा करना होता है। अन्यथा ममता बिलकुल निर्मम बनकर उसे ऐसे—ऐसे ताने मारती है कि कोई भी शर्मसार इंसान चुल्लू भर पानी में डूब मरे!
प्रसून की जिम्मेदारी मुझे नाश्ता देने की है। वह अभी तक उठा नहीं है। फिर पेट भी गुड़गुड़ कर रहा है! तेज भूख भी लग रही है! लगता है उसे कुंभकर्णी निद्रा से जगाना ही पड़ेगा!
भौं भौं भौं भौं!
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प्रसून की सोच
उफ! ये डॉगी फिर से चालू हो गया! सुबह—सुबह आ रही तेज झपकियों का कबाड़ा करने में लगा है। क्या उसे मालूम नहीं कि मैंने रात के दो बजे तक काम किया है फिर नींद लाने के लिए छोटा सा पैग भी लिया था! पर इसे क्या मालूम। डॉगी जो ठहरा! न उसे बॉस का खौफ है न बीवी का! बस, दिनभर भौं—भौं करना और खाने—नाश्ते के लिए पूंछ उठाकर हमलोगों के आसपास मडराना! फिर इसकी वाकिंग—बाकिंग का भी झमेला! अब जब आदमी देर रात तक काम करेगा तो सुबह पांच बजे कैसे उठ सकता है? डॉगी को पैसे थोड़े ही कमाने हैं —बीवी बच्चों को पालने के लिए !
अरे यार! डॉगी कब समझेगा कि इंसान के जीवन में कितनी झंझटें होती हैं। सुबह सात बजे उठो। दफ्तर के इंट्री टाइम 9 बजे के हिसाब से रूटीन के काम निपटाओ! न नाश्ते के स्वाद का पता चलता और न ही दोपहर के लंच में स्वाद आता है। बस वर्कलोड की वजह से जो मिले जैसा मिले ठंडा—बंडा, बस जल्दी जल्दी ठूंस लो!
फिर वर्कलोड की वजह से सिर पर दोधारी तलवार अलग लटकी रहती है। काम में गलतियां रह गईं तो बॉस ऐसी खरी—खोटी सुनाएंगे कि सात पुश्तों तक को नानी याद आ जाए। कभी—कभी तो मैं अपने खडूस बॉस शिवम भंडारी की वजह से बेहद परेशान हो जाता हूं। अरे काम लेना है तो लो न! बच्चे की जान लेने पर क्यों आमादा हो जाते हो? उन्हें यह कहावत भी याद नही रहती कि गलतियां तो इंसान से होती हैं यदि गलती न हो तो इंसान भगवान नहीं बन जाएगा! पर उन्हें इससे क्या?
(क्रमशः )