रचनाकार : शिखा तैलंग
प्रसून की सोच
कभी—कभी तो मैं अपने खडूस बॉस शिवम भंडारी की वजह से बेहद परेशान हो जाता हूं। अरे काम लेना है तो लो न! बच्चे की जान लेने पर क्यों आमादा हो जाते हो? उन्हें यह कहावत भी याद नही रहती कि गलतियां तो इंसान से होती हैं यदि गलती न हो तो इंसान भगवान नहीं बन जाएगा! पर उन्हें इससे क्या?
उनके तीन—चार चमचे—बेलचे हैं — शैलेंद्र, जितेंद्र, राघेंद्र और अरविंद! इन चारों को बॉस अपनी आंख, नाक कान व हाथ कहते हैं। इनकी ही बातों पर भरोसा करते हैं। मेरी तो सुनते ही नहीं है!जब इन्क्रीमे का टाइम आता है तो और लाल—पीले होने लगते हैं!उनकी अंखिया लाल—पीली होने लगती हैं। उनके चमचे और भी बातें बना—बनाकर मेरे खिलाफ कान भरते रहते हैं। कभी—कभी जी में आता है यह दो टके की नौकरी छोड़कर अपनी पान की गुमटी खोल लू।
सुना है पान वाले भी खूब कमाई करते है। अब जयपुर का ही अन्नू पान भंडार है, मैंने सुना है कि उसके पान के दीवाने सदी के मेगास्टार अमितजी भी रहे हैं। काश! मेरी किस्मत ऐसी होती। बेकार में ही एमबीए की पढ़ाई करके इस टुच्ची सी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर बनकर बैठा हूं। बच्चों की फीस इतनी ज्यादा है कि 90 हजार रुपये की सैलरी भी कम पड़ जाती है इसीलिए तो मुझे सेकेंड हैंड कार लेनी पड़ी वह भी किश्तों में!
आफिस में बस थोड़ा सा सुकून मिलता है मालती के पास बैठकर! मालती कौन?
अरे वही, जो मेरी स्टेनो है। काम के बीच—बीच में मैं उसे देख लेता हूं उसके गोरे—गोरे मुखड़े पर नजर डाल लेता हूं तो बस वह बरबस मुस्करा देती है, मुझे पूरे दिन के काम के लिए इनर्जी मिल जाती है।
दूसरी बार इनर्जी तब मिलती है जब मरा—गिरा सा छह सात पर्सेंट का इन्क्रीमेंट हो जाता है। जैसे ही इन्क्रीमेंट का ऐलान होता है मेरा सीना फुलकर 56 इंच का हो जाता है। यह बात अलग है कि उस इन्क्रीमेंट के पहले बॉस मुझे व अन्य एम्लाइज को इतना रगड़ लेते हैं कि उनका बैंक बैलेंस कम से कम 56 पर्सेंट बढ़ जाता है। अपनी तरक्की देखकर मेरी बीवी तो नहीं पर बॉस की बीवी जरूर खुश रहती होगी!
रही बात ममता की तो वह फरमाइशों के मामले में निर्मम जरूर है — अब काजल चाहिए तो 150 म्पये का, लिपिस्टिक चाहिए तो 300 म्पये की! साड़ी चाहिए तो कम से कम 2000 म्पये की! पर मुझे मालूम है जितना मैं उसके पीछे पैसे बहाता हूं उसके दिल में मेरे लिए उतना ही ज्यादा प्यार उमडने लगता है! आखिर वह घर की लक्ष्मी है, उसके लिए लक्ष्मी यानी पैसे को बहाने में मैं क्यों पीछे रहूं? मुसीबत के पलों में मेरा साथ निभाती है! नोटबंदी के टाइम के पर अपनी अलमारी में छिपाकर रखे 2000 रुपये के दस नोट निकालकर मेरे हाथ में फौरन रख दिए जिससे मेरी डूबती नैया को बहुत सहारा मिला था!
फिर मेरे बच्चे भी मुझे बहत सहारा देते हैंं। उनकी मुस्कान मेरे हर गम को हर लेती हैं। यह बात मुझे भी खटकती है कि मैं गम गलत करने के लिए कभी—कभी गलत कदम भी उठा लेता हूं। उल्टा—सीधा खा—पी लेता हूं! बस भगवान! मुझे इसी पाप से बचने की सद्बुद्धि दे!
और सद्बुद्धि से याद आया कि मुझे आज अपनी कंपनी के इमेज मेकिंग इसी नाम के कैमपेन को कामयाब बनाने में जुटना है। भला हो मेरे प्यारे डॉगी का जो मुझे उठाने में लगा है। मैं जल्दी से उठकर उसे घुमाने ले जाता हूं ताकि बॉस की झाड़ से बच सकूं! हां, यह बात खटकती जरूर है कि मेरे पास उसे प्यार करने के लिए बस दो मिनट का वक्त है!
प्रसून गो! गो! गो! गो!
(काल्पनिक रचना )