रचनाकार : सुशीला तिवारी, रायबरेली
जीवन की अनबूझ पहेली
मणिकर्णिका घाट बनारस में बैठी तो
देखा जीवन की अनबूझ पहेली
कुछ ही क्षण में भरी सुहागन जोड़े में
आई थी कोई एक सखी नवेली
देखा होगा जीते जी उसने भी
सौन्दर्य कभी यहां इन घाटों का ।
पर क्या ये सोंचा होगा कि अंत
यही होता नश्वर” काया के ठाठों का।
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करूं वन्दना
करूं वन्दना उस ईश्वर की, जो इस दुनिया में लाया
फिर वन्दन मात पिता को, जिनके द्वारा आया।।
आदि, अनादि ,जगत में व्यापक, तुमको ईश्वर माना
तुम हो सृष्टि संचालक परम हितैषी मात पिता से जाना।
करूं साधना मैं ईश्वर की बस मन हो जाये आनन्दित ,
तुम हो ईश्वर घट घट के वासी सबमें तुम्ही समाहित ।
निशदिन तेरा ध्यान करें चरणों पर जाऊं बलिहारी ,
अब तो पार लगा दो नइया, मैं आया शरण तुम्हारी ।
केवल भक्ति दे दो अपनी, बाकी सब कुछ है पाया ,
करूं वन्दना उस ईश्वर की ,जो इस दुनिया में लाया ।
भक्तिभाव में लगा रहे मन ,ऐसी कृपा प्रभु कर देना,
इस दुनिया से मोह भंग हो, कुछ भी न हो लेना देना ।
दया की दृष्टि हरदम रखना, इस दुनिया ने ठुकराया
करूं वन्दना ईश्वर की, जो इस दुनिया में लाया ।
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वो बीता हुआ कल
अतीत की स्मृतियों में बस गया
वो बीता हुआ कल ।
कभी दुख की बदली छाई,
कभी मिले खुशियों भरे पल।
यादें अक्सर बोध कराती हैं,
क्या खोया क्या पाया
हांथ मलते रह गये कुछ हांथ न आया
ये जीवन यूँ ही हमने गंवाया।
पर समय के साथ स्मृतियों से बाहर निकलना
वर्तमान के साथ पड़ता है चलना
जिंदगी भर हम कोई न कोई जंग लडते हैं
कभी जीत हासिल कभी हार जाते हैं।
सबकुछ छोड़कर जिंदगी जियो बेफिक्र
समय के सफहों पर भर दें कई रंग
जो पाल रक्खे है स्मृतियों के भ्रम
छोड़कर आगे की तरफ बढ़ चले हम ।
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दरकते से रिश्ते
बिछड़ने के पल और मिलने के किस्से।
बहुत याद आते वो दरकते से रिश्ते ।।
कभी घाट पनघट पर जाकर मिलना ,
जरा देर तक उनसे बातें भी करना ,
मिलन फिर जुदाई हुई मेरे हिस्से ।
बहुत याद आते वो दरकते से रिश्ते ।।
जुदाई जब उनसे हुई भी तो ऐसी ,
किया कसमें वादों की खूब ऐसी तैसी ,
“तिवारी” गई आस मिलने की उनसे ।
बहुत याद आते वो दरकते से रिश्ते ।।