रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी “उत्तम”, लखनऊ
सास बहू का संबंध कैसा होना चाहिए ? इस विषय पर कुछ लिखने का मन हो गया है | यदि अच्छा लगे तो प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा |
सबसे पहले सास का संबंध ह्रदय से है जो दिल की धड़कन होती है- सास नही हो शरीर नही | सबसे पहले तो ये समझ लेना चाहिए | सास को English मे कहा गया हैं कि मदर -इन- ला मतलब कानून मे माँ और वही पर बहू को कहा गया हैं कि डॉटर-इन-ला मतलब कानून मे पुत्री| यदि ये बात सबको समझ मे आ जाये तो क्या कहना | जब एक लडकी का आगमन सबसे पहले ससुराल मे होता है तो वो उसका नया विद्यालय के समान होता है | जैसे एक नन्हा बालक जब प्रथम बार विद्यालय जाता हैं तो वो बडा डरा सहमा सा रहता है तो एक अनुभवी गुरू उसके डर को अपने दुलार से निकाल देता हैं | उसी प्रकार से सास अपने दुलार से अपनी बहू का पहले डर निकाल देना चाहिए | जब एक बहू ससुराल आती है तो केवल आप के पुत्र की भार्या बन कर के ही नही आती है वो आप के पितरो को तारने आती है| आपके वंश वृद्धि का कारण होती है | उसके द्वारा जाये ( जन्म देने ) पुत्रो से आप के कुल की वृद्धि होती है | उसके पुत्रो से पितरो को तर्पण प्राप्त होता हैं ज़िससे वो तृप्त होते हैं |
श्री राम चरित मानस मे सास बहू के संबंध का श्री गोस्वामी जी ने बहुत अच्छा चित्रण किया है |
काश वधू प्रवेश की प्रसन्नता हमेशा कायम रहती !!!!
धूप दीप नैबेद बेद बिधि।
पूजे बर दुलहिनि मंगल निधि।।
बारहिं बार आरती करहीं।
ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं।।
बस्तु अनेक निछावरि होहीं।
भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं।।
पुत्रवधू आगमन होते ही माता इतना स्वागत करती है जिसका वर्णन करना कठिन है ।
लेकिन यहाँ वाला भाव सभी आगे नहीं रख पाती है चाहे सास हों या बहू…
“पूजे बर दुलहिनि मंगल निधि”
“हमारी दुल्हन श्रेष्ठ (वर ) है ” इस भाव को खो देती हैं और दूसरे की बहू की बड़ाई …
“हमारी दुल्हन मंगल निधि यानी सुलक्षणा है ” यह भाव सभी आगे नहीं रख पाती।
वधू प्रवेश के बाद के हर अशुभ कार्य को अपनी पुत्रवधू से जोड़ कर देखने लगती हैं और संबंध बिगड़ जाता है।
तुम्हारे पाँव रखते ही ये हो गया !
तुम्हारे पाँव रखते ही वो हो गया !!
वे ऐसे कहने लगती हैं जैसे विधाता किसी के वश में हों !!!
माता कौशल्या आदि के परमानंद देखिए…
पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृतु लहेउ जनु संतत रोगीं।।
जनम रंक जनु पारस पावा। अंधहि लोचन लाभु सुहावा।।
मूक बदन सारद जनु छाई। मानहुँ समर सूर जय पाई।।
एहि सुख ते सत.कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु।
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुल चंदु।।…
पुत्रवधू प्राप्ति यानी जैसे योगी को परम तत्व की प्राप्ति हो गई…पावा परम तत्व जनु जोगीं।
पुत्रवधू प्राप्ति अर्थात् निर्गुण निराकार ब्रह्म को सगुण साकर स्वरूप में प्राप्ति होना। जैसे योगी को ब्रह्म से साक्षात्कार हो वही सुखद अनुभूति हुई पुत्रवधू प्राप्ति पर…
अमृतु लहेउ जनु संतत रोगीं- हर समय रोग से ग्रस्त व्यक्ति को जैसे अमृत मिल जाता है कौशल्या आदि माताओं को पुत्रवधू प्राप्ति से वही परमानंद होता है।
जनम रंक जनु पारस पावा- पारस पत्थर की विशेषता है कि वह जिस लोहे में स्पर्श करे लोहा सोना बन जाता है। पुत्रवधू प्राप्ति अर्थात् वही अमूल्य पारस पत्थर की प्राप्ति है क्योंकि वही वंश वृक्ष को विशालता प्रदान करेगी। मेरी पुत्रवधू सुलक्षणा है यह भाव रहता है।
अंधहि लोचन लाभ सुहावा-पुत्रवधू प्राप्ति अर्थात् जैसे अंधे व्यक्ति को नेत्र की प्राप्ति हुई हो।
मूक बदन सारद जनु छाई- जैसे मूक वधिर के मुख में सरस्वती निवास करें और “मूक होइ वाचाल ” पुत्रवधू प्राप्ति में वही स्थिति हो जाती है।
मानहुँ समर सूर जय पाई- जैसे अपने प्राणों की बाजी लगा कर कोई योद्धा युद्ध करता है और जब वह प्रतिद्वंद्वी पर विजय प्राप्त करता है , उसके उस समय की प्रसन्नता से सैकड़ों गुना अधिक प्रसन्नता पुत्रवधू प्राप्ति में है।
दुल्हन धीरे धीरे चलियो
ससुराल गलिया…
स्त्री को लगता है कि पुत्रवधू के आगमन होते ही मेरे सभी सपने पूरे हो जाएंगे लेकिन वही पुत्रवधू आगे जब प्रतिद्वंद्वी सा व्यवहार करती है तो सभी सपने टूट जाते हैं।
काश! वधू प्रवेश की प्रसन्नता हमेशा कायम रहता!!!!
(समाप्त )