रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
सावन ने किया कमाल!
कारे कजरारे बदरा घिर घिर आये
मेघ बरसते सावन रिमझिम आये
धरा पे बहने लगती जल की धारा
नाज़ुक बदन से साड़ी लिपटी जाये
उतरे धरती पे कुदरत के नज़ारे
धरती पर हरियाली लहर जाये
अँगड़ाई हिय हिलोरें उठ आयें
सजाने लगी आँखें स्वप्न सुहाने |
पवन दीवानी चूनर उड़ाये
फूल गजरे के महक जायें
पुरवाई शीतल झोंके लाये
जीवन सुर ताल रंग ले आये
मीत मेरे तुम रूठ न जाना
समय सुहाना बीत न जाना
कौशल मदहोशी चढ़ी जाये
मन मलंग मस्ती छाई जाये
सावन में मन मगन हुआ
ठंडा मौसम अगन हुआ
सावन में शुभ लगन हुआ
सचमुच सच्चा सगन हुआ
तेरे साथ सदा सुख पाते
तेरी रूठन से हम घबराते
ख़याल तब मेरे मन में आते
कैसा सावन ने रचा कमाल |
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सावन के झूले पड़े
सावन के झूले पड़े ,ओ गुइयॉं आओ न झूला , झुला
सखियाँ सहेली के साजन आयो
मोर पिया परदेश
हुक उठे सावन में दिल में बाँधूँ
न मै केश
बोल गए थे जल्द आओगे काहे वादा भुला
सावन के झूले पड़े,ओ गुईयॉं आओ न झूला , झुला
दर्द हमारा तू क्या जाने निर्मोही
पत्थर दिल
सावन के रुत बीत न जाए आके पहले मिल
ये मनभावन सावन देखो बाहर यूँ न बीता
सावन के झूले पड़े ,ओ गुईंया आओ न झूला,झुला
शबनम का बेबस दिल मचले
मेरी समझ मजबूरी
चाकरी छोड़ कर पास तो आजा सही न जाए दूरी
मेरे प्यार का न दो प्रियतम अब ये ऐसा सिला
सावन के झूले पड़े,ओ गुईया आओ झूला ,झुला
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मुझ पर विश्वास नहीं पहले जैसा
ऐसा लगता है मुझ पर विश्वास नहीं पहले जैसा
एक संगमें स्वांसजो चलती थी सांस नहीं पहले जैसा
तुम मेरी उमर लंबी करने
ईश्वर से विनती करते थे
कितनी उमर बढ़ती है मेरी
अंगुली पर गिनती करते थे
मेरे लिए तुम करते हो उपवास नहीं पहले जैसा ,,,,
वो बीता सावन याद आए
मधुकर सा मुझपर फिरते थे
पुष्प की डाली में उलझे तुम
उठते थे और गिरते थे
बे मन से आते हो अब मधुमास नहीं पहले जैसा,,,
अब चाँद सितारे छुप से गए
हर तरफ लगे अंधियारा है
शबनम के लिए आ जाओ तुम
कुछ लगे की अब उजियारा है
क्यों लगने लगा की मन का मेरे यह प्यास नहीं पहले जैसा
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याद आती है
ससुराल में याद आती है मेरे गॉंव की
चिड़ियों की चहक कौवे की कांव कांव की
ससुराल में याद आती है मेरे गांव की
खेत या खलिहान में रात या विहान में
याद आती रहती है ममता की छाँव की
ससुलाल में याद आती है मेरे गाँव की
जेठ के महीने में तर बतर पसीने में
सखियों संग मापना नदिया के बहाव की
ससुराल में याद आती है मेरे गांव की
याद है मिट्टी की राह, गुड्डे गुड्डी का विवाह
खेलना सुस्ताना पीपल की ठंडी छाँव की
ससुराल में याद आती है मेरे गांव की
बूढ़ों का वो बैठना आपस में गप्पे हांकना
याद है शबनम मुझे जलते अलाव की
ससुराल में याद आती है मेरे गांव की