रचनाकार : कमलानाथ , मुंबई
चैप्टर-1
सर्दी आई नहीं कि मुझे देखते ही बाबूजी के मुंह से यही निकलता था – “अरे भई, कुछ गर्म पहन लो!.”
जब छोटा था तो खेलकूद, दौड़ भाग में इतना मशगूल रहता था कि कभी सर्दी महसूस ही नहीं होती थी! अक्टूबर के महीने में तो क्या दिसंबर में भी नहीं! तब मेरा यही जवाब होता था – “हाँ, अभी पहन लूँगा.” फिर जब बड़ा हुआ तब भी सर्दी कोई खास नहीं लगती थी. मसरूफ़ियत की वजह से कम, शायद लापरवाही की वजह से ज़्यादा. पर बाबूजी का वही वाक्य हमेशा पीछा करता रहता था! मेरा जवाब भी हर बार वही होता था!.
कभी कभी जब सचमुच सर्दी सी महसूस होती थी तब उनको खुश करने के लिए उनके सामने लाकर एक स्वेटर अपने ऊपर चढ़ा लेता था!. अब कह सकता हूँ, बेशक अच्छा महसूस होता था. और बाबूजी को और भी ज़्यादा कि मुझे सर्दी नहीं लगेगी.! अब सोचता हूँ पता नहीं मैं पहले हर बार ही उनके कहने पर स्वेटर क्यों नहीं पहन लेता था!
मुझे अपने बचपन की याद है जब मैं बहुत छोटा था और उनसे अपनी नंगी पीठ पर हलके हाथ से ‘गुदगुदी’ करवाता था.! हल्की सी झुरझुरी से बड़ा मज़ा आता था!. मुझे मालूम था, बाबूजी मुझको बेहद प्यार करते थे!. उन्होंने कभी मुझको बाँहों में लेकर चिपटाया नहीं था और वे कभी मेरे ऊपर हाथ रख कर सहलाते भी नहीं थे.! फिर भी मुझे हमेशा लगता था वे मुझको बहुत स्नेह करते थे और मेरे लिए चिंतित रहते थे कि कहीं मैं बीमार न पड़ जाऊं.!
प्यार के भावावेश में वे कभी कभी इसका इज़हार भी करते थे!. उनकी इच्छा थी कि मैं जल्दी से जल्दी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, जैसी शायद हर बाप की होती है. पर वे गुज़रते सालों की गति को दो से गुणा करके तेज़ नहीं कर सकते थे और न मैं स्कूल और उसके बाद कॉलेज के इम्तिहान एक साल में दो के हिसाब से पार करके अपने पैरों पर खड़ा हो सकता था!
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी).
रचनाकार का परिचय
कमलानाथ (के.एन.शर्मा भी) हिंदी के जानेमाने व्यंग्य लेखक और कहानीकार हैं । वे जलविज्ञान, सिंचाई तथा जल-निकास, एवं जल-विद्युत अभियांत्रिकी के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, वैदिक ग्रंथों में जलविज्ञान, पर्यावरण आदि विषयों के लेखक तथा साहित्यकार हैं।
कमलानाथ ने जलविज्ञान, जल-विद्युत अभियांत्रिकी व विश्व खाद्यान्न में उल्लेखनीय योगदान के अतिरिक्त वेदों, उपनिषदों आदि वैदिक वाङ्मय में जल, पर्यावरण, पारिस्थितिकी आदि पर भी शोध करके प्रचुरता से लिखा है। हिंदी साहित्य में साठ के दशक से कमलानाथ के नाम से उनके व्यंग्य तथा कहानियां भी देश की विभिन्न पत्रिकाओं में छपते रहे हैं।
अपने कार्यकाल के दौरान आपने विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा की, वहां के सिंचाई, जलनिकास, जलविज्ञान आदि के विकास में योगदान दिया तथा अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं से संबद्ध रहे।
(साभार विकिपीडिया )